Alwar: अलवर की पहचान या तो सरिस्का से है या फिर कलाकंद से यानी मिलककेक से जिसे अलवर का मावा भी कहते है, अब कलाकंद देश के अलग अलग हिस्सों में भी सहज उपलब्ध हो पायेगा इसके लिए सरस डेयरी ने कार्य योजना शुरू कर दी है.


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अलवर की पहचान अलवर की मिठास से है
अलवर का कलाकंद अब देश के अलग अलग हिस्सों में भी उपलब्ध हो पायेगा, दरअसल अलवर की पहचान अलवर की मिठास से है यानी कलाकंद से है. अलवर के कलाकंद की मांग देश मे चारो तरफ रहती है, जिसे देखते हुए अब सरस डेयरी अलवर ने एक कार्य योजना बनाई है. डेयरी चेयरमैन विश्राम गुर्जर ने बताया कि सरस डेयरी में कलाकंद बनाने की तैयारियां तेज कर दी गयी है जिसे जल्द ही अमलीजामा पहनाया जाएगा. देश मे कलाकंद की मांग को देखते हुए सरस डेयरी इसके उत्पादन और देश मे इसके वितरण की कार्य योजना तैयार की जा रही है.


मिलावटी दूध से अलवर बदनाम हुआ है
विश्राम गुर्जर ने बताया कि अलवर जिले में कई भागों में मिलावटी दूध से कलाकंद बनाया जाता है जिससे अलवर बदनाम होता है. जहां गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा जाता है. अब क्वालिटी के साथ गुणवत्ता पूर्ण कलाकंद बनाने का मानस सरस डेयरी ने बना लिया है. पहले चरण में देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर इसकी मांग की मात्रा का पता लगा रहे है. इसके बाद इसके उत्पादन की कार्य योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा. यह काम बड़े स्तर पर होगा, अलवर के कलाकंद देश भर में गुणवत्ता के लिए जाना जाएगा.


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मध्यप्रदेश में सरकारी डेयरी में भी मावा तैयार किया जाता
इसी तर्ज पर मध्यप्रदेश में सरकारी डेयरी में भी मावा तैयार किया जाता है जिससे पेड़ा बनाकर उसे बेचा जाता है उसे खूब पसंद किया जाता है. अलवर दूध में फैट अधिक होने से उससे बनने वाले मावे की गुणवत्ता बेहतर होती है इस मावे और दूध से बनने वाला कलाकंद के स्वाद को बढ़ाता है. सरस डेयरी द्वारा कलाकंद बनाने के निर्णय से यहां पशुपालको को भी फायदा होगा, दूध की खपत बढ़ेगी जिससे उनकी आय भी बढ़ेगी.


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