Alwar: जिले की भूमि को तपो भूमि कहा जाता है, क्योंकि उज्जैन के राजा भृतहरि ने राजपाट छोड़ यहीं आकर वैराग्य धारण किया था. सरिस्का के जंगलों में तपस्या की यहीं पर राजा भृतहरि समाधि में लीन हो गए थे. जिले में राजा भृतहरि को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है. सरिस्का की वादियों में स्थित भृतहरि बाबा की समाधि पर हर साल लक्खी मेले के आयोजन होता है. जहां देश भर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं. 


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क्यों बने भृतहरि लोक देवता, क्या  है अमृतफल की कहानी


त्याग और तपस्या की मिसाल बने महाराज भृतहरि को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है. जिले के सरिस्का मार्ग पर अलवर से करीब 30 किमी दूर सरिस्का की वादियों में स्थित भृतहरि बाबा का स्थान है. जहां उज्जैन के प्रतापी महाराजा भृतहरि ने राजपाट छोड़कर सन्यास ग्रहण किया था. भृतहरि जिले के तिजारा होते हुए, सरिस्का के जंगलों में आ गए जहां उन्होंने तपस्या की और यही समाधि में लीन हो गए. भृतहरि ने राजपाट छोड़ वैराग्य धारण करने में उनके गुरु गोरखनाथ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.  कहा जाता है महाराजा भृतहरि अपनी तीसरी पत्नी पिंगला से अत्यधिक मोह रखते थे, जिसके चलते भर्तहरि अपने कर्तव्यों को भी भूलने लगे थे. 


ऐसे में एक दिन गुरु गोरखनाथ उनके यहां आए, महाराजा ने उनकी अच्छी आवभगत की जिससे प्रसन्न होकर गुरु गोरखनाथ ने उन्हें एक अमृतफल दिया और कहा इससे तुम हमेशा जवान रहोगे और जनता की सेवा कर पाओगे. लेकिन महाराजा सबसे ज्यादा अपनी पत्नी पिंगला से अथाह प्रेम करते थे तो वह फल पत्नी पिंगला को दे दिया. जिससे वह हमेशा सुंदर बनी रहे. 


लेकिन पिंगला महाराजा की जगह कोतवाल पर ज्यादा मोहित रहती थी, जिसके चलते उसने वह फल कोतवाल को दे दिया, लेकिन कोतवाल का भी एक वेश्या से में सम्पर्क था, तो कोतवाल ने सोचा वह यह फल वेश्या को दे देगा तो वह हमेशा सुंदर और जवान बनी रहेगी और कोतवाल ने वह अमृत फल एक वेश्या को दे दिया. वेश्या ने सोचा कि सारी जिंदगी जवान रहकर इस नरक जैसी जिंदगी को क्यों भोगु इसकी आवयशता तो उज्जैन के महाराजा को है जो जनता की सेवा करते है. वेश्या ने महाराजा भृतहरि के दरबार में पहुंच वह फल वापस भृतहरि भेंट कर दिया.


महाराजा भृतहरि अमृत फल को वेश्या के पास देख कर चौंक गए, उन्होंने वेश्या से अमृतफल के बारे में जानकारी ली तो पता चला कोतवाल ने दिया है. महाराजा ने कोतवाल को बुलाकर पूछा तो उसने रानी पिंगला द्वारा दिया जाना बताया. तब राजा की आंखे खुली की जिससे वह अटूट प्यार करते है, उस महारानी पिंगला ने उससे छल किया है. उसके बाद महाराजा भृतहरि ने राजपाट की जिम्मेदारी अपने भाई विक्रमादित्य को सौंपी और वैराग्य धारण कर सन्यास पर निकल पड़े.


तिजारा की गुम्बद में की तपस्या


सन्यास के दौरान उन्होंने अलवर के तिजारा में बन रही एक गुम्बद में मजदूरी करते और शाम को खाना खाकर उसी गुम्बद में ही तपस्या करते. आज उस गुम्बद को भृतहरि गुम्बद के नाम से जाना जाता है. महाराजा भृतहरि जंगलों से घूमते घूमते अलवर के सरिस्का के जंगलों में पहुंचे, जहां उन्होंने कठोर तपस्या की और यहां समाधि में लीन हो गए. 


4 सितंबर को लक्खी मेले का होगा आगाज 


आज यह स्थान देश भर में मशहूर है, महाराजा भृतहरि की तपोस्थली पर उनकी समाधि है. जहां हर साल लक्खी मेला भरता है. इस बार भी अलवर में 4 सितंबर को यहां मेला भरा जाना है. जिले के इस लक्खी मेले में राजस्थान सहित अन्य राज्यों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं. इसमे नागा साधुओं से लेकर नाथ सम्प्रदाय सहित हजारों की संख्या में साधु संत शामिल होते हैं. बाबा भृतहरि के नाम से विख्यात इस स्थान पर श्रद्धालु डंडोति लगाते हुए पहुंचते है और मन्नत पूरी होने पर लोग यहां आकर सवामणी व भंडारे के आयोजन करते हैं. सरपंच पति पेमाराम सैनी ने बताया कि कोरोना के चलते पिछले दो साल से मेले का आयोजन नहीं हो पाया था, इसलिए इस बार ज्यादा भीड़ आने की उम्मीद है. वहीं मौसमी बीमारियों को देखते हुए, मेला स्थल पर साफ सफाई की व्यवस्थाओं पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है.


प्रशासनिक स्तर पर भी मेले की तैयारियां की जाती है. जिला कलेक्टर जितेंद्र कुमार सोनी व एसपी तेजस्वीनी गौतम ने वहां पहुंच कर व्यवस्थाओं की जानकारी ली. वहीं पिछले दिनों आये रेंज आईजी उमेश दत्ता ने भी मौके पर पहुंचकर सुरक्षा व्यवस्थाओं का जायजा लिया.


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