Jhunjhunu Vidhansabha Seat: शेखावाटी की सबसे वीआईपी सीट यानी झुंझुनू विधानसभा सीट का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. यहां तकरीबन 40 सालों तक कांग्रेस का एक तरफा राज रहा, लेकिन उसके बाद यहां की जनता का मिजाज बदला और जनता की आस्था पार्टी के साथ बदलती चली गई. हालांकि 2008 के बाद से ही एक बार से यहां की जनता का समर्थन कांग्रेस के पक्ष में आ गया है. यहां से मौजूदा वक्त में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे शीशराम ओला के पुत्र बृजेंद्र ओला विधायक है.


खासियत


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झुंझुनू विधानसभा सीट पर अब तक हुए 15 विधानसभा चुनाव और एक उपचुनाव में 12 बार कांग्रेस की जीत हुई तो एक बार जनता दल और एक बार निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहा. वहीं भाजपा के हाथ भी सिर्फ एक विधानसभा चुनाव में ही जीत हासिल हो सकी और एक उपचुनाव में भी बीजेपी जीतने में कामयाब रही. यहां से सबसे अधिक बार जीतने का रिकॉर्ड दिग्गज नेता सुमित्रा सिंह के नाम रहा. सुमित्रा सिंह 1962 में यहां से पहली मर्तबा विधायक चुनी गई. उसके बाद 1967, 1972 और 1977 तक लगातार चार बार विधायक रहीं इसके बाद 1998 में सुमित्रा सिंह निर्दलीय और 2003 में भाजपा की टिकट पर चुनाव जीत हासिल की. उनके नाम कुल 6 बार जीत का रिकॉर्ड है.वहीं इस सीट से तीन बार शीशराम ओला भी जीतने में कामयाब रहे. 1980, 1985 और 1993 में यहां से शीशराम ओला विधायक रहे और 2008 से उनकी यह लेगसी उनके पुत्र बृजेंद्र ओला आगे बढ़ा रहे हैं.


जातीय समीकरण


झुंझुनू विधानसभा सीट पर शहरी इलाके में मुस्लिम मतदाताओं की आबादी अधिक है तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में जाट मतदाता है वहीं स माली और राजपूत समाज का भी दबदबा माना जाता है. इस सीट पर मुस्लिम और जाट ही हार और जीत तय करते हैं.


2023 का विधानसभा चुनाव


2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से एक बार फिर बृजेंद्र ओला की मजबूत दावेदारी है, तो वहीं मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष एमडी चोपदार भी दावेदारी जता रहे हैं. वहीं भाजपा में टिकट दावेदारों की एक लंबी फेहरिस्त है, जिसमें राजेंद्र सिंह भाभूं की देवदारी मजबूत दिखाई देती है. इसके अलावा जिला परिषद सदस्य पंकज धनकड़ निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. इस चुनाव में ऊंट किस करवट बैठता है यह देखना दिलचस्प होगा.


झुंझुनू विधानसभा क्षेत्र का इतिहास


पहला विधानसभा चुनाव 1951


1951 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से नरोत्तम लाल जोशी उम्मीदवार बने तो वहीं कृषिकार लोक पार्टी से शिव नारायण सिंह चुनावी मैदान में उतरे, जबकि भारतीय जनसंघ से गिरधर गोपाल को टिकट मिला. चुनाव में कांग्रेस के नरोत्तम लाल जीत हासिल करने में कामयाब रहे और उन्हें 7,181 मत मिले जबकि शिव नारायण सिंह दूसरे और गिरधर गोपाल तीसरे स्थान पर रहे. इसके साथ ही नरोत्तम लाल जोशी झुंझुनू के पहले विधायक चुने गए.


दूसरा विधानसभा चुनाव 1957


1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का विश्वास नरोत्तम लाल पर कायम रहा तो वहीं निर्दलीय के तौर पर महावीर प्रसाद ने उनके सामने चुनौती पेश की. चुनाव में नरोत्तम लाल 12,923 मत हासिल करने में कामयाब हुए तो वहीं महावीर प्रसाद 11,755 मत ही पा सके और चुनाव हार गए.


तीसरा विधानसभा चुनाव 1962


1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलते हुए सुमित्रा सिंह को टिकट दिया तो वहीं उन्हें सबसे कड़ी टक्कर सीताराम से मिली. इस चुनाव में सीताराम 13,347 मत हासिल कर सके तो वहीं कांग्रेस की सुमित्रा सिंह 17,643 मतों से जीतने में कामयाब हुई और झुंझुनू की पहली महिला विधायक चुनी गई.


चौथा विधानसभा चुनाव 1967


1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर सुमित्रा सिंह को ही टिकट दिया तो कांग्रेस से बागी होकर नरोत्तम लाल निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर गए. इस चुनाव में नरोत्तम लाल 13,515 मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में कामयाब हुए, लेकिन 20,465 मतों के साथ सुमित्रा सिंह एक बार फिर जितने में कामयाब हुई.


पांचवा विधानसभा चुनाव 1972


1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से एक बार फिर सुमित्रा सिंह को ही टिकट मिला तो वहीं निर्दलीय ही कन्हैया लाल चुनौती पेश करने उतरे. इस चुनाव में कन्हैया लाल को 21,533 वोट मिले जबकि सुमित्रा सिंह 25,576 मत हासिल करने में कामयाब हुई और इसके साथ ही सुमित्रा सिंह ने जीत की हैट्रिक लगाई.


छठा विधानसभा चुनाव 1977


1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से चौथी बार सुमित्रा सिंह पर दांव खेला गया तो वहीं जनता पार्टी की ओर से सांवरमल वर्मा ने ताल ठोक दी. इस चुनाव में कन्हैयालाल 18,629 मत हासिल कर सके. सुमित्रा सिंह 25,478 वोटो के साथ जितने में कामयाब हुई.


सातवां विधानसभा चुनाव 1980


1980 के दौर में कांग्रेस जबरदस्त गुटबाजी के दौर से जूझ रही थी. एक ओर कांग्रेस इंदिरा गांधी के नेतृत्व में चुनाव में उतरी तो दूसरा खेमा इंदिरा गांधी के खिलाफ था. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने शीशराम ओला को टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस यूनाइटेड की उम्मीदवार सुमित्रा सिंह बनीं. इस चुनाव में सुमित्रा सिंह को 23,762 मत मिले तो वहीं शीशराम ओला 31,192 मत हासिल करने में कामयाब हुए और उसके साथ ही इस चुनाव में शीशराम ओला जीतने में कामयाब हुए जबकि लगातार चार बार झुंझुनू से विधायक रहने वाली सुमित्रा सिंह को की झोली में हार आई.


आठवां विधानसभा चुनाव 1985


1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से शीशराम ओला उम्मीदवार बने तो वहीं उन्हें झुंझुनू के पहले विधायक रहे नरोत्तम लाल जोशी ने चुनौती दी. चुनाव में नरोत्तम लाल जोशी 22,574 मत मिल तो गए लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए. इस चुनाव में शीशराम ओला 47,039 मतों से जीतने में कामयाब हुए.


9वां विधानसभा चुनाव 1990


यह चुनाव कांग्रेस के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित होने वाला था. कांग्रेस ने एक बार फिर शीशराम ओला को ही टिकट दिया तो वहीं जनता दल की ओर से मोहम्मद माहिर आजाद चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में जनता दल के मोहम्मद माहिर 50,092 मत हासिल करने में कामयाब हुए. जबकि शीश ओला 38,462 मत पाकर भी चुनाव हार गए. यह कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा झटका था. क्योंकि 1952 से लेकर 1985 तक झुंझुनू में कांग्रेस एक तरफा जितती आई थी लेकिन यह पहली मर्तबा था जब झुंझुनू की जनता ने कांग्रेस उम्मीदवार को सिरे से नकार दिया.


दसवां विधानसभा चुनाव 1993


1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर शीशराम ओला पर दांव खेलने का ठाना तो उन्हें बीजेपी के सावरमल वर्मा से चुनौती मिली. सांवरमल वर्मा इससे पहले जनता पार्टी की ओर से भी चुनाव लड़ चुके थे. चुनावी नतीजे आए तो सांवरमल वर्मा को 24,731 वोट मिले तो वहीं शीशराम ओला 47,629 मत पाने में कामयाब हुए और उसके साथ ही शीश राम ओला ने झुंझुनू में कांग्रेस की एक बार फिर वापसी कराई.


उपचुनाव 1996


1996 में शीशराम ओला झुंझुनू से सांसद बन गए, लिहाजा ऐसे में झुंझुनू विधानसभा सीट खाली हो गई. चुनाव आयोग ने चुनाव की घोषणा की. इस चुनाव में शीशराम ओला के पुत्र बृजेंद्र ओला चुनाव में उतर गए, लेकिन उन्होंने ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस से ताल ठोकी. बीजेपी से डॉ. मूल सिंह उम्मीदवार बने. चुनाव में बृजेंद्र सिंह ओला 30,645 मत हासिल करने में कामयाब हुए तो वहीं डॉ. मूल सिंह 43,052 मतों के साथ जितने में कामयाब हुए और उसके साथ ही यहां एक बार फिर कांग्रेस को शिकस्त का सामना करना पड़ा और बीजेपी की जीत हुई.



11वां विधानसभा चुनाव 1998


1998 के विधानसभा चुनाव में बृजेंद्र ओला को कांग्रेस ने टिकट दिया तो कांग्रेस की दिग्गज नेता सुमित्रा सिंह बागी होकर निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतरी. इस चुनाव में बृजेंद्र ओला को एक बार फिर शिकस्त का सामना करना पड़ा और उन्हें 41,976 मत मिले तो वहीं सुमित्रा सिंह 42,874 मतों के साथ जितने में कामयाब हुई.


12वां विधानसभा चुनाव 2003


2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से बृजेंद्र ओला पर ही भरोसा जताया तो वहीं कांग्रेस की बागी सुमित्रा सिंह को भाजपा ने टिकट दिया. इस चुनाव में बृजेंद्र ओला 53,036 मत हासिल करने में कामयाब हुए जबकि सुमित्रा सिंह 54,621 मत हासिल कर अपना दमखम दिखाया और एक बार फिर जीतने में कामयाब हुई.


13वां विधानसभा चुनाव 2008


2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना विश्वास बृजेंद्र ओला पर ही कायम रखा तो वहीं बीजेपी ने उम्मीदवार बदला और मूल सिंह शेखावत को एक बार फिर टिकट दिया. इस चुनाव में डॉ. मूल सिंह शेखावत कुछ कमाल नहीं कर पाए और 29,255 मत ही हासिल कर सके, जबकि बृजेंद्र ओला 38,571 मत हासिल कर लंबे अर्से बाद कांग्रेस की वापसी करवा पाए.


14वां विधानसभा चुनाव 2013


2013 के इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी मोदी लहर पर सवार थी, तो वहीं कांग्रेस के खिलाफ राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे देश भर में माहौल था. इस चुनाव में कांग्रेस ने बृजेंद्र ओला को ही टिकट दिया तो वहीं भाजपा की ओर से राजीव सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में मोदी लहर के बावजूद राजीव सिंह सिर्फ 42,517 मत ही हासिल कर सके, जबकि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद बृजेंद्र ओला 60,929 मत हासिल करने में कामयाब हुए और उसके साथ ही कांग्रेस यह सीट को जीतने में कामयाब रही.


15वां विधानसभा चुनाव 2018


2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से बृजेंद्र ओला को ही चुनावी मैदान में भेजा तो वहीं बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बदला और राजेंद्र सिंह भांभू को चुनावी ताल ठोकने उतारा. चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र सिंह 35,612 में ही हासिल कर सके और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा, जबकि बृजेंद्र ओला 76,177 मतों से जीतने में कामयाब हुए और इसके साथ उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई.


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