Nagaur Vidhansabha Seat : राजस्थान की सियासत का सबसे प्रभावशाली जिला नागौर रहा है और नागौर जिले की नागौर विधानसभा सीट सबसे अहम रही है. नागौर के कुचेरा कस्बे से संबंध रखने वाला मिर्धा परिवार लंबे वक्त से केंद्र और सूबे की सियासत में दखल रखता आया है. यहां से मौजूदा वक्त में संघ पृष्ठभूमि से आने वाले मोहन राम चौधरी विधायक हैं, जबकि यहां से नाथूराम मिर्धा, उनके भतीजे रामनिवास मिर्धा और बाद में रामनिवास के बेटे हरेंद्र मिर्धा भी विधायक रह चुके हैं.


खासियत


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नागौर विधानसभा सीट से अब तक छह बार जाट और पांच बार मुस्लिम विधायक चुने गए हैं. नागौर से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड मोहम्मद उस्मान, हरेंद्र मिर्धा और हबीब उर रहमान के नाम रहा है. इन तीनों नेताओं ने दो-दो बार यहां से जीत हासिल की. जबकि सबसे खास बात यह भी है कि नाथूराम मिर्धा यहां से 1957 में विधायक रहे. उसके बाद उनके भतीजे रामनिवास मिर्धा भी यहां से 1962 में विधायक चुने गए, जबकि उनके पुत्र हरेंद्र मिर्धा 1993 और 1998 में लगातार दो बार यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. हालांकि हरेंद्र मिर्धा को इसके बाद 2003, 2008 और 2013 में हार का सामना करना पड़ा.


जातीय समीकरण


नागौर विधानसभा सीट पर को मुस्लिम बाहुल्य सीट माना जाता है. इस सीट पर सबसे ज्यादा संख्या मुस्लिम मतदाताओं की है. इसके बाद जाट, मूल ओबीसी, माली और अन्य जातियां हैं. यहां से छह बार जाट, पांच बार मुस्लिम, दो बार ब्राह्मण और एक-एक बार राजपूत और यादव प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है.


2023 का विधानसभा चुनाव


2023 के विधानसभा चुनाव बेहद खास रहने वाले हैं, यहां हनुमान बेनीवाल के राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के एंट्री से त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है. कांग्रेस की ओर से सहदेव चौधरी चुनावी ताल ठोक सकते हैं, तो वहीं बीजेपी एक बार फिर संघ पृष्ठभूमि से आने वाले मोहन राम को रिपीट कर सकती है. इसके अलावा आरएलपी की ओर से सुरेंद्र डोटाड चुनावी मैदान में उतार सकते हैं, माना जा रहा है इस बार तीनों ही पार्टियों से जाट उम्मीदवार चुनावी मैदान में ताल ठोक सकते हैं, ऐसे में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होंगे.


नागौर विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास


पहला विधानसभा चुनाव 1951


1951 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से आदित्येंद्र ने चुनावी ताल ठोकी तो वहीं कृषक लोक पार्टी से गोपी लाल यादव चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार आदित्येंद्र को 13,811 मतदाताओं का समर्थन मिला तो वहीं गोपीलाल यादव 14,477 मतों के साथ नागौर की 45% जनता का समर्थन प्राप्त करने में सफल हुए और इसके साथ ही गोपी लाल यादव नागौर के पहले विधायक चुने गए.


दूसरा विधानसभा चुनाव 1957


1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से दिग्गज नेता नाथूराम मिर्धा ने चुनावी ताल ठोक तो वहीं राम राज्य परिषद की ओर से भोपाल सिंह उम्मीदवार बने. इस चुनाव में नाथूराम मिर्धा ॉको 66% से ज्यादा जनता का समर्थन प्राप्त हुआ और उन्हें 17,822 वोट मिले. इसके साथ ही नाथूराम मिर्धा नागौर के दूसरे विधायक चुने गए. वहीं राम राज्य परिषद के भोपाल सिंह को सिर्फ 7,924 मतदाताओं का ही समर्थन प्राप्त हो सका.


तीसरा विधानसभा चुनाव 1962


1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नाथूराम मिर्धा की जगह भतीजे रामनिवास मिर्धा को टिकट दिया. इस चुनाव में जन संघ से संपत मल ने चुनाव लड़ा. इस चुनाव में संपत मल को 5,037 वोट ही प्राप्त हुए जबकि कांग्रेस के रामनिवास मिर्धा को तकरीबन 60 फ़ीसदी यानी 17,031 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ और इसके साथ ही रामनिवास मिर्धा नागौर से विधायक चुने गए.


चौथा विधानसभा चुनाव 1967


1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मोहम्मद उस्मान को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं स्वराज पार्टी से बंसीलाल ने ताल ठोकी. इस चुनाव में बंसीलाल को 19,523 मत मिले तो वहीं कांग्रेस के मोहम्मद उस्मान 20,767 मतों से चुनाव जीतने में कामयाब हुए.


पांचवा विधानसभा चुनाव 1972


1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मोहम्मद उस्मान पर एक बार फिर दांव खेला तो वहीं निर्दलीय के तौर पर लोकमा राम चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में लोकमा राम को 20591 वोट मिले तो वहीं मोहम्मद उस्मान 22,898 वोटों के साथ चुनाव जीते और नागौर का प्रतिनिधित्व करने दूसरी बार राजस्थान विधानसभा पहुंचे. वहीं लगातार दो बार जीत हासिल करने का पहला रिकॉर्ड भी मोहम्मद उस्मान के नाम ही रहा.


छठा विधानसभा चुनाव 1977


1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तीसरी बार मोहम्मद उस्मान को टिकट दिया, जबकि जनता पार्टी की ओर से बंसीलाल चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के मोहम्मद उस्मान को 19,968 वोट मिले तो वहीं जनता पार्टी के बंसीलाल 22,559 वोट लेने में कामयाब हुए और उसके साथ ही बंसीलाल ने मोहम्मद उस्मान का विजय रथ रोक दिया.


सातवां विधानसभा चुनाव 1980


1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जबरदस्त गुटबाजी के दौर से गुजर रही थी तो वहीं जनता पार्टी के हालात भी बहुत अच्छे नहीं थे. इस चुनाव में कांग्रेस आई ने मोहम्मद उस्मान को चुनावी रण में उतारा तो वहीं जनता पार्टी सेकुलर से महाराम चुनावी मैदान में उतरे वहीं बंसीलाल ने जनता पार्टी जेपी से ताल ठोकी. इस बेहद रोमांचक त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस के मोहम्मद उस्मान और जनता पार्टी के बंसीलाल को 30-30 फीसदी मत ही हासिल हो सके. जबकि 35 फ़ीसदी मतों के साथ जनता पार्टी सेकुलर के महाराम को 18,493 वोट हासिल किए और इसके साथ ही महाराम विधानसभा पहुंचे.


आठवां विधानसभा चुनाव 1985


1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दामोदर दास आचार्य को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं जनता पार्टी की ओर से बंसीलाल ने ताल ठोकी. इस चुनाव में कांग्रेस की रणनीति सफल हुई और उसके उम्मीदवार को 24,357 वोट मिले जबकि जनता पार्टी के बंसीलाल 23,119 मतों के साथ चुनाव हार गए.


9वां विधानसभा चुनाव 1990


1990 के विधानसभा चुनाव में नागौर के दिग्गज नेता रहे गुलाम मुस्तफा खान जनता पार्टी के टिकट पर चुनावी ताल ठोकने उतरे. कांग्नेस फिर से दामोदरदास आचार्य को ही अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में कांग्रेस के दामोदर दास आचार्य को 21,842 मिले तो वहीं जनता पार्टी के गुलाम मुस्तफा खान 22,570 वोट लेने में कामयाब हुए और इसके साथ ही गुलाम मुस्तफा खान नागौर से भी विधायक चुने गए.


दसवां विधानसभा चुनाव 1993


1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया और हरेंद्र मिर्धा को उम्मीदवार बनाया. वहीं बीजेपी ने बंसीलाल पर दांव खेला. यह चुनाव बेहद रोमांचक रहा. इस चुनाव में कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा बीजेपी के बंसीलाल पर 21 साबित हुए. बंसीलाल को 37,543 वोट मिले तो वहीं हरेंद्र में मिर्धा 43,457 वोट लेने में कामयाब हुए और उसके साथ ही हरेंद्र मिर्धा ने अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ाते हुए जीत हांसिल की.



11वां विधानसभा चुनाव 1998


1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से हरेंद्र मिर्धा को चुनावी जंग के लिए भेजा तो निर्दलीय के तौर पर गजेंद्र सिंह चुनावी ताल ठोकने आए. वहीं इस चुनाव में बीजेपी ने एक बार और बंसीलाल पर ही दांव खेला जबकि अबकी बार गुलाम मुस्तफा खान समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में कूद पड़े यानी मुकाबला चतुष्कोणीय हो चला था. इस चुनाव में हरेंद्र मिर्धा ने एक तरफ जीत हासिल की और उन्हें 42% से ज्यादा जनता का समर्थन मिला. हरेंद्र मिर्धा को 42,053 वोट मिले तो वहीं निर्दलीय उम्मीदवार गजेंद्र सिंह दूसरे, बीजेपी के उम्मीदवार बंसीलाल तीसरे और सपा उम्मीदवार गुलाम मुस्तफा चौथे स्थान पर रहे.


12वां विधानसभा चुनाव 2003


2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने गजेंद्र सिंह को टिकट दिया जबकि कांग्रेस ने हरेंद्र मिर्धा को रिपीट किया. कांग्रेस की रणनीति इस बार फेल हो गई और बीजेपी के गजेंद्र सिंह की जीत हुई, जबकि हरेंद्र मिर्धा 54,455 वोट पाकर भी चुनाव हार गए.


13वां विधानसभा चुनाव 2008


2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया और हबीब उर रहमान को चुनावी मैदान में उतारा. कांग्रेस का विश्वास हरेंद्र मिर्धा पर ही कायम रहा. चुनाव में हरेंद्र मिर्धा को 46,569 वोट मिले तो वहीं बीजेपी के हबीब उर रहमान 53,069 वोट लेने में कामयाब हुए. इसके साथ ही हबीब उर रहमान जीतकर राजस्थान विधानसभा पहुंचे.


14 विधानसभा चुनाव 2013


2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर हबीब उर रहमान को ही टिकट दिया, जबकि इस चुनाव में हरेंद्र मिर्धा ने निर्दलीय ही ताल ठोकी. वहीं बात कांग्रेस की करें तो कांग्रेस शौकत अली के तौर पर एक नया चेहरा लेकर आई. इस चुनाव में कांग्रेस की करारी हर हुई और उसे महज पांच प्रतिशत वोट ही हासिल हो सके. जबकि बीजेपी के हबीब उर रहमान को निर्दलीय के तौर पर ताल ठोक रहे हरेंद्र मिर्धा ने कड़ी टक्कर दी. इस चुनाव में हरेंद्र मिर्धा को 61,288 वोट मिले तो वहीं हबीब उर रहमान को 67,143 वोट मिले. इसके साथ ही भाजपा के हबीब उर रहमान की जीत हुई.


15वां विधानसभा चुनाव 2018 


2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक नया चेहरा लेकर आई और उसने मोहन राम को टिकट दिया जबकि बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले हबीब उर रहमान कांग्रेस की टिकट पर चुनावी मैदान में कूद पड़े. इस चुनाव में बीजेपी की एक बार फिर जीत हुई और कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी. कांग्रेस के हबीब उर रहमान को 73,307 वोट मिले तो वहीं मोहन राम 86,315 वोट लेने में कामयाब हुए और उसके साथ ही मोहन राम नागौर से 15 विधायक के तौर पर राजस्थान विधानसभा पहुंचे.