Pilani Jhunjhunu Vidhansabha Seat : शिक्षा नगरी के नाम से मशहूर शेखावाटी के पिलानी का सियासी इतिहास भी बेहद दिलचस्प रहा है. इसी विधानसभा क्षेत्र में आने वाले चिड़ावा का पेड़ा भी देश-विदेश में मशहूर है. इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता शीशराम ओला दो बार विधायक रह चुके हैं तो वहीं मौजूदा वक्त में भी यह सीट कांग्रेस के पास ही है. इस सीट से कांग्रेस के जेपी चंदेलिया विधायक हैं.


खासियत


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पिलानी विधानसभा सीट की खासियत यह है कि यहां हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में ही महिला विधायक चुनी गई थी. सुमित्रा सिंह यहां से 1962 में विधायक बनी. इसके बाद वह 1965 और 1990 में भी विधायक रहीं. इसके अलावा कांग्रेस के दिग्गज नेता शीशराम ओला 1972 और 1977 में यहां से विधायक चुने गए. इस सीट पर सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड कांग्रेस नेता श्रवण कुमार के नाम है. श्रवण कुमार ने 1993 में निर्दलीय जीत हासिल की. इसके बाद 1998 और 2003 में श्रवण कुमार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते और विधायक बने. इसके अलावा दो बार जीत का रिकॉर्ड हजारीलाल शर्मा, शीशराम ओला, सुमित्रा सिंह और सुंदरलाल के नाम रहा.


2023 का विधानसभा चुनाव


10 साल बाद 2018 में कांग्रेस सीट को वापस पाने में कामयाब हुई. 2008 में हुए परिसीमन के बाद इस सीट के समीकरण बदल गए. इस सीट से कभी ना जीतने वाली भाजपा ने लगातार दो बार जीत दर्ज की. हालांकि यहां से मौजूदा वक्त में कांग्रेस के जेपी चंदेलिया विधायक है और वह एक बार फिर टिकट की दावेदारी जाता रहे हैं, जबकि भाजपा के टिकट पर दो बार चुनाव जीत चुके सुंदरलाल के पुत्र कैलाश चंद ने पिछले दफा भाजपा के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा था हालांकि वो चुनाव हार गए. अब एक बार फिर कैलाश चंद बीजेपी से दूसरा मौका देने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में मुकाबला एक बार फिर से दिलचस्प देखने को मिल सकता है. क्योंकि इस बार यहां मुकाबला कड़ा होने वाला है.


पिलानी विधानसभा क्षेत्र का इतिहास


पहला विधानसभा चुनाव 1951


1951 के विधानसभा चुनाव में पिलानी विधानसभा क्षेत्र चिड़ावा विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. यहां से कांग्रेस ने हरलाल सिंह को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं राम राज्य परिषद की ओर से वेद कन्हैयालाल चुनावी मैदान में उतरे. वहीं कृषक लोक पार्टी से मूलचंद ने ताल ठोकी. इसके अलावा तीन अन्य निर्दलीय भी चुनावी मैदान में थे. चुनाव में कांग्रेस के हरलाल सिंह को 7093 मत मिले तो वहीं कृषक पार्टी के मूलचंद कुछ ही मतों से चूक गए और उन्हें 7,012 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ. वहीं राम राज्य परिषद के वैध कन्हैयालाल चौथे स्थान पर रहे. इस चुनाव में हरलाल सिंह की जीत हुई और वह यहां से पहले विधायक चुने गए.


दूसरा विधानसभा चुनाव 1957


1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सुमित्रा सिंह को टिकट दिया तो वहीं निर्दलीय के तौर पर हजारी लाल शर्मा चुनावी मैदान में उतरे. इसके अलावा कम्युनिस्ट पार्टी के माता दीन ने भी ताल ठोकी. चुनावी नतीजा आए तो कांग्रेस की सुमित्रा की जीत हुई और उन्हें 12,963 मत मिले जबकि निर्दलीय के तौर पर उतरे हाजरी लाल शर्मा दूसरे और कम्युनिस्ट पार्टी के मातादीन तीसरे स्थान पर रहे.


तीसरा विधानसभा चुनाव 1962


1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से हरलाल को ही टिकट दिया तो वहीं निर्दलीय के तौर पर हजारी लाल शर्मा एक बार फिर मैदान में उतरे. इस चुनाव में हजारीलाल को कामयाबी हासिल हुई और उन्हें 18,249 मत मिले जबकि कांग्रेस से पूर्व विधायक रह चुके हरलाल सिंह सिर्फ 10279 मत हासिल करने में कामयाब हुए और उसके साथ ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा,


चौथा विधानसभा चुनाव 1967


1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर हर लाल सिंह पर ही भरोसा जताया तो वहीं स्वराज पार्टी की ओर से मुलचंद कटेवा चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी और हरलाल सिंह 17,277 ही हासिल कर सके जबकि स्वराज पार्टी के मुलचंद कटेवा 23,115 मतों से जितने में कामयाब हुए और पिलाने का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.


पांचवा विधानसभा चुनाव 1972


1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शेखावाटी के बड़े नेता शीशराम ओला को पिलानी से टिकट दिया. यहां पिछले दो चुनावों से लगातार कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा था. वहीं निर्दलीय के तौर पर एक बार फिर सामने हजारीलाल थे. चुनाव में हजारीलाल ने शीशराम ओला को बेहद कड़ी टक्कर दी. हजारीलाल के समर्थन में 22,487 मत पड़े तो वहीं शीशराम ओला को 22,596 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ और कुछ ही मतों के अंतर से शीशराम ओला जीत की इबारत लिखने में कामयाब हुए.


छठा विधानसभा चुनाव 1977


1977 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला एक बार फिर हजारीलाल शर्मा बनाम शीशराम ओला हुआ. हजारीलाल शर्मा ने फिर से निर्दलीय ही ताल ठोका तो कांग्रेस ने शीशराम ओला को एक बार फिर चुनावी जंग में भेजा. इस चुनाव में शीशराम ओला हजारीलाल शर्मा को पटकनी देने में फिर कामयाब हुए और 22,820 मतों से विजय हुए, जबकि हजारीलाल शर्मा 19,640 मत ही हासिल कर सके.


सातवां विधानसभा चुनाव 1980


1980 के विधानसभा चुनाव में हजारी लाल शर्मा जनता पार्टी जेपी का टिकट लेकर चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं मूलचंद कटेवा एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरे और उन्होंने जनता पार्टी सेकुलर के टिकट पर चुनाव लड़ा तो वहीं कांग्रेस ने हरिराम को टिकट दिया. इस चुनाव में कांग्रेस जीत हासिल करने में नाकामयाब हुई जबकि जनता पार्टी सेकुलर के मूलचंद कटेवा भी चुनाव हार गए. इस चुनाव में हजारीलाल शर्मा ने जीत हासिल की और दूसरी बार विधायक चुने गए.


आठवां विधानसभा चुनाव 1985


1985 के विधानसभा चुनाव में सुमित्रा सिंह लोक दल की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी तो वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर उम्मीदवार बदला और विमला को टिकट दिया यानी इस बार मुकाबला महिला शक्ति के बीच था. इस चुनाव में कांग्रेस की विमला को 20,343 वोट मिले तो वहीं सुमित्रा सिंह 39,754 वोटो के साथ जितने में कामयाब हुई और पिलानी से विधायक चुनी गई.


9वां विधानसभा चुनाव 1990


1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर उम्मीदवार बदला और राम अवतार दांद को टिकट दिया तो वहीं सुमित्रा सिंह अबकी बार जनता दल के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी. इस चुनाव में सुमित्रा सिंह को 60,022 मत मिले वहीं राम अवतार दांद 36,121 मत ही हासिल कर सके और कांग्रेस को फिर से करारी हार का मुंह देखना पड़ा और इसके साथ ही सुमित्रा सिंह लगातार दूसरी बार पिलानी से विधायक चुनी गई.


दसवां विधानसभा चुनाव 1993


1993 के विधानसभा चुनाव में सुमित्रा सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी जबकि निर्दलीय के तौर पर श्रवण कुमार ने चुनौती पेश की. इस चुनाव में सुमित्रा सिंह को 24,430 मतदाताओं का समर्थन ही हासिल हो सका जबकि श्रवण कुमार को 27,412 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया और विधान सभा भेजा.


 


11वां विधानसभा चुनाव 1998


1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने निर्दलीय चुनाव जीत चुके श्रवण कुमार को टिकट दिया तो वहीं निर्दलीय के तौर पर राजेंद्र भालोतिया चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार 29,063 मत ही हासिल कर सके तो वहीं कांग्रेस के श्रवण कुमार को 54,565 मतदाताओं का समर्थन मिला और उसके साथ ही श्रवण कुमार की इस चुनाव में एक बार फिर जीत हुई. साथ ही कांग्रेस लंबे अरसे बद पिलानी में वापसी कर सकी.


12वां विधानसभा चुनाव 2003


2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से श्रवण कुमार को ही चुनावी मैदान में उतरा तो वहीं भाजपा की ओर से डॉक्टर मूलचंद शेखावत ने ताल ठोकी. चुनाव में डॉक्टर मूलचंद शेखावत 44,453 मत हासिल करने में कामयाब हुए जबकि श्रवण कुमार 53,367 मतों से जीतने में कामयाब हुए और उसके साथ ही श्रवण कुमार लगातार तीसरी बार पिलानी से विधायक चुने गए.


13वां विधानसभा चुनाव 2008


2008 के विधानसभा चुनाव में परिसीमन के चलते परिस्थितियों बदल गई और नए उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में यह सीट सामान्य से बदलकर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई, लिहाजा ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी की ओर से नए चेहरे चुनावी मैदान में उतरे. कांग्रेस ने हनुमान प्रसाद को टिकट दिया तो वहीं भाजपा की ओर से सुंदरलाल चुनावी मैदान उतरे. इस चुनाव में हनुमान प्रसाद 40,260 मत ही हासिल कर सके, जबकि भाजपा के सुंदरलाल 43,506 मतों के साथ विजयी हुए और उसके साथ ही इस सीट पर पहली बार भाजपा ने जीत दर्ज की.


14वां विधानसभा चुनाव 2013


2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर सुंदर लाल को ही टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस की ओर से मदन लाल चुनावी ताल ठोकते नजर आए. इसके अलावा निर्दलीय के तौर पर जेपी चंदेलिया चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को सिर्फ 4,691 मत मिले और इसके साथ ही कांग्रेस की जमानत जप्त हो गई. वहीं जेपी चंदेलिया 40 फीसदी मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे. तो वहीं बीजेपी के सुंदरलाल 72,914 मतों से जीतने में कामयाब हुए.


15वां विधानसभा चुनाव 2018


2018  के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जेपी चंदेलिया को टिकट दिया. कांग्रेस के इस दांव ने बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी. हालांकि भाजपा ने भी कैलाश चंद को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में 10 अन्य उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में उतरे. हालांकि मुख्य और करीबी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच देखने को मिला. कांग्रेस के जेपी चंदेलिया 84,715 मतों के साथ विजयी हुए जबकि भाजपा के कैलाश मेघवाल को 13,539 मतों के अंतर से चुनावी शिकस्त का सामना करना पड़ा और उसके साथ ही कांग्रेस की 10 साल बाद पिलानी में वापसी हुई.


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