Jaisalmer Vidhansabha Seat : राजस्थान ही नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी विधानसभा सीट यानी जैसलमेर का सियासी गणित सबसे निराला है, यहां से चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति अमूमन दूसरी बार जीत हासिल नहीं कर पाता है, हालांकि अब तक यह कारनामा दो विधायक कर चुके हैं. जैसलमेर से 1957 में दूसरी बार विधायक बने हुकम सिंह और 2008 में जीत हासिल करने वाले छोटू सिंह भाटी इस रवायत को तोड़ने में कामयाब रहे हैं.


72 साल में सिर्फ 4 बार जीत पाई कांग्रेस


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जैसलमेर विधानसभा सीट का सियासी गणित बेहद दिलचस्प है. इस सीट ने पिछले 72 सालों में जैसलमेर को 15 विधायक दिए हैं लेकिन सिर्फ 4 बार ही  कांग्रेस कब्जा कर पाई. यहां के लोगों का विश्वास गैर-कांग्रेसी विधायक पर ज्यादा रहा है. इसी की बानगी है कि यहां पर अब तक 5 बार भाजपा, 4 बार कांग्रेस, एक बार जनता दल, तीन बार निर्दलीय और एक बार स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है. हालांकि 2003 से लेकर 2018 तक लगातार तीन बार बीजेपी ने इस सीट से जीत हासिल की, लेकिन बीजेपी के इस गढ़ को 2018 में कांग्रेस के रूपाराम ने 29 हजार से ज्यादा मतों से जीत हासिल करके कब्जा लिया. वहीं बीजेपी के उम्मीदवार सांगसिंह भाटी को करारी हार का सामना करना पड़ा.


जनता नहीं देती दूसरा मौका


जैसलमेर विधानसभा सीट से दूसरी बार जीत हासिल करना बेहद मुश्किल होता है, लिहाजा ऐसे में दूसरा मौका ना जनता और ना ही पार्टी देती है. 1957 में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले हुकम सिंह ने कांग्रेस के उम्मीदवार सत्यदेव को करारी शिकस्त दी थी, हालांकि 1962 में हुकम सिंह कांग्रेस में आ गए और कांग्रेस के टिकट से लगातार दूसरी बार विधायक बने. हालांकि 2008 तक फिर यह कारनामा कोई दूसरा विधायक नहीं कर पाया. साल 2008 में बीजेपी के टिकट से छोटू सिंह भाटी ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद साल 2013 में भी छोटू सिंह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ कर विजय हुए. वहीं साल 2008 में परिसीमन के बाद जैसलमेर विधानसभा सीट दो हिस्सों में बट गई, एक जैसलमेर विधानसभा सीट तो दूसरी पोखरण सीट बनी. यहां से कांग्रेस के विधायक सालेह मोहम्मद ने दो बार जीत हासिल की है.



2018 के विधानसभा चुनाव


2018 में जैसलमेर सीट से कांग्रेस की ओर से रुपाराम थे, तो वहीं भाजपा की ओर से सांग सिंह भाटी को उम्मीदवार बनाया गया था. हालांकि इस चुनाव में रुपाराम की लहर देखने को मिली. बीजेपी की ओर से राजपूत उम्मीदवार होने के बावजूद राजपूत समुदाय का समर्थन रुपाराम को मिला तो वहीं 19 बूथों पर वह मजबूत दिखाई दिए. 2013 में कांग्रेस को इस सीट पर 46.9 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि 2018 में तकरीबन 10 फ़ीसदी की वृद्धि के साथ 56.42% वोट मिले. पिछले चुनाव में यहां कुल 23108 वोट पड़े जिनमें से रुपाराम के खाते में 13372 जबकि सांग सिंह भाटी के खाते में महज 9211 वोट आए यानी जैसलमेर शहर के कुल 27 में से 19 बूथों पर रुपाराम को बढ़त मिली जबकि महज 8 सीट पर ही सांग सिंह बढ़त ले पाए. जिसका सीधा नुकसान पिछले चुनाव में भाजपा को यहां उठाना पड़ा.


2018 में क्यों हारी भाजपा


भाजपा ने सांग सिंह भाटी के रूप में एक राजपूत प्रत्याशी को मैदान में उतारा था, जबकि कांग्रेस ने SC प्रत्याशी के रूप में रुपाराम को अपना उम्मीदवार बनाया था. यहां एक तरफा राजपूत वोट जाने की परंपरा रही है, लेकिन 2018 में इसमें विभाजन देखने को मिला. तकरीबन 10 हजार से ज्यादा राजपूत वोट भाजपा के खाते में ना जाकर कांग्रेस के खाते में गए. जिसका खामियाजा इस चुनाव में भाजपा को उठाना पड़ा. वहीं SC उम्मीदवार होने के बावजूद कांग्रेस की ओर से रुपाराम ने यहां जीत हासिल की. राजपूत वोटों के विभाजन की एक बड़ी वजह जसवंत सिंह जसोल फैक्टर को भी माना गया, जबकि एक दूसरा पहलू राजपूत समाज में आपसी विवाद को भी बताया गया.


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