Pokhran Vidhansabha Seat : परमाणु नगरी के नाम से विश्वभर में विख्यात पोखरण के विधानसभा सीट का इतिहास भले ही 15 साल पुराना हो, लेकिन यह वह सीट हैं जहां 2018 में योगी बनाम फकीर लड़ा गया. इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की पैनी निगाहें हैं और वह हर हाल में चाहती है, इसमें भाजपा की विजयी हो. दरअसल 2008 में विधानसभा सीटों के परिसीमन के बाद जैसलमेर से अलग होकर पोकरण नया निर्वाचन क्षेत्र बना. जहां 3 में से दो बार कांग्रेस ने जीते हासिल की जबकि एक बार भाजपा ने परचम लहराया.


पोकरण सीट का इतिहास


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

2008 के विधानसभा चुनाव


परिसीमन के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार सालेह मोहम्मद ने भाजपा के शैतान सिंह को मजह 339 वोटों से शिकस्त दी थी, जहां सालेह मोहम्मद को 42,756 वोट पड़े तो वहीं शैतान सिंह 42,417 वोट ही मिले.


2013 के विधानसभा चुनाव


साल 2013 में एक बार फिर भाजपा की ओर से शैतान सिंह को उम्मीदवार बनाया गया, जबकि कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक सालेह मोहम्मद तक विश्वास जताते हुए चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में शैतान सिंह में सालेह मोहम्मद को करारी शिकस्त देते हुए जीत हासिल की. इस चुनाव में जहां शैतान सिंह को 85010 वोट पड़े वही सालेह मोहम्मद को 50566 वोट मिले. दोनों के बीच वोटों का अंतर 34000 से भी ज्यादा का रहा.


2018 के विधानसभा चुनाव


2018 के विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प रहे. 2018 में यहां योगी बनाम फकीर का मुकाबला देखने को मिला. जहां भाजपा की ओर से नाथ संप्रदाय के नामी सन्यासी प्रताप पुरी चुनावी मैदान में थे, तो वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर सालेह मोहम्मद पर विश्वास जताया. यहां एक बार फिर करीबी मुकाबला देखने को मिला. सालेह मोहम्मद के खाते में 82,964 वोट आए तो वहीं प्रताप पुरी को 82,092 वोट मिले. दोनों के बीच 872 वोटों का अतंर रहा.



पोखरण का जातीय गणित


बता दें कि पोकरण में 1,94,000 मतदाता है जिनमें से लगभग 54,000 मुस्लिम है. वहीं जैसलमेर जिले की 25% आबादी मुस्लिम है. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जैसलमेर में मेघवाल उम्मीदवार उतारा, तो पोखरण में मुस्लिम उम्मीदवार उतारा और मुस्लिम-मेघवाल गठबंधन के बदौलत कांग्रेस दोनों ही सीटें जीतने में कामयाब रही. लिहाजा ऐसे में सालेह मोहम्मद पिछली बार के मुकाबले 13.23% अधिक वोट लेने में कामयाब हुए.


बता दें कि सालेह मोहम्मद के पिता गाजी फकीर का इस इलाके में दबदबा रहा है. गाजी फकीर पाकिस्तान के सिंधी धर्मगुरु पीर पगारा के भारत में प्रतिनिधि हैं. जैसलमेर में कांग्रेस के भीतर फकीर परिवार से 1985 के बाद किसी ने सीधी टक्कर नहीं ली. जिसने भी टक्कर लेने की जुर्रत कि तो बाद में उन्हें मजबूर होकर कांग्रेस छोड़नी पड़ी. रणवीर गोदारा से लेकर जितेंद्र सिंह जैसे तमाम उदाहरण मौजूद है. जो जितेंद्र सिंह 1993 में फकीर परिवार की मर्जी के बिना कांग्रेस का टिकट लाए थे. उन्हें भी बाद में वापिस बीजेपी में जाना पड़ा और 1998 में बीजेपी की टिकट पर जैसलमेर विधानसभा से मैदान में उतरना पड़ा और हार का स्वाद भी चखना पड़ा.


ये भी पढ़ेंः 


बीकानेर से वरिष्ठ नागरिक तीर्थ यात्रा का पहला जत्था रवाना, 400 नागरिकों को मिला पहला मौका


राजस्थान- CM गहलोत ने सरकारी नौकरी पाने का सपना किया और भी आसान, आवेदन शुल्क में दी ये बड़ी राहत