Chhabra, Baran News: छीपाबड़ौद क्षेत्र के सारथल कस्बे में चल रही भागवत कथा में चौथे दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रही. कथा के दौरान भगवान श्री कृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाया. इस मौके पर जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया.


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यहां गढ़ चौक में चल रही संगीतमय भागवत कथा में कथावाचक सनकादिक रामानंद सन्त आश्रम हरनावदा शाहजी के अभिराम दास त्यागी महाराज ने भक्त और भगवान के बीच संबंध को समझाते हुए कहा कि भगवान हमेशा भक्त के भाव का भूखे रहते हैं. अन्य किसी वस्तु के नहीं. उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण जब दुर्योधन को निमंत्रण देने उसके महल की तरफ जा रहे थे तभी दुर्योधन के मन में विचार आया कि भगवान मेरे घर तब आएं, जब कोई न देखे. 


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दुर्योधन के मन में अहंकार था कि मैं इतना बड़ा राजा यदि कृष्ण की अगवानी करूंगा तो प्रजा के सामने मेरा मान कम हो जाएगा. भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के इस मनोभाव को जानकर अपने रथ को विदुर के घर की तरफ मोड़ दिया. तभी वहां पहुंचे विदुर ने देखा कि विदुरानी भगवान को केले के छिलके खिलाते हुए फल फेंक रही है. उन्होंने भगवान को पेड़ा-मिश्री खिलाना चाहा. मगर भगवान ने मना करते हुए कहा कि जो आनंद छिलके में है, वह पेड़ा-मिश्री में नहीं है. जो प्रेम विदुरानी के हृदय में था, वह विदुर जी के मन में नहीं था. 


प्रभु के प्रेम में विदुरानी अपने तन की सुधि भूल चुकी थी. इसी भाव में उन्होंने दुर्योधन की मेवा त्यागी और साग विदुर के घर खाया. भगवान के विदुर के घर जाने से आहत दुर्योधन ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया कि मेरे 56 प्रकार के भोजन को छोड़कर आप दासी पुत्र के घर भोजन करने चले गए. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजा कोई किसी के यहां भोजन करने जाता है. उसके सिर्फ दो ही कारण होते हैं, एक प्रेम और दूसरा आपदा. इसमें हमारे पर कोई आपदा नहीं है, जिससे मैं आपसे भोजन मांगकर खाऊं. दूसरे तुम्हारे मन में भाव नहीं है, जिससे मैं भोजन करूं. मेरे लिए तो जो भक्त है वही खास है. 


भक्त गरीब हो या अमीर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं तो भक्त का दास हूं, भगत मेरे मुकटमणि हैं. साथ ही श्री कृष्ण जनमोत्स्व बड़ी धूम धाम से मनाया. इस मौके पर भजनों पर श्रद्धालु जमकर झुमते नजर आए.


Reporter- Ram Mehta