Barmer News : रावल श्री मल्लीनाथ जी के नाम से चले आ रहे तिलवाड़ा पशु मेले में श्री राणी भटियाणी मन्दिर संस्थान (जसोल), श्री रावल मल्लीनाथ श्री राणी रूपादे संस्थान (तिलवाड़ा) की ओर से संचालित भोजनशाला का समापन किया गया. वरिया महंत श्री गणेश पूरी जी महाराज के सानिध्य में ध्वजारोहण व मेला उद्घाटन के साथ शुरू हुई भोजनशाला का समापन किया गया. संस्थानों द्वारा भोजनशाला दिनांक 18 मार्च से 23 मार्च 2023 तक 6 दिन चलाई जिसमे प्रतिदिन 4000 मेलार्थी भोजन प्रसाद ग्रहण करते थे. इसी बीच मे दिनांक 21 मार्च 2023 को महाप्रसादी का आयोजन किया गया. जिसमे कन्या पूजन-भोजन, तिलवाड़ा ग्राम पंचायत के ग्रामीणों व मेलार्थियों समेत 8000 लोगों ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया. इस महाप्रसादी के माध्यम से संस्थानों द्वारा शिक्षा का संदेश तिलवाड़ा ग्राम पंचायत को दिया था. इस दौरान रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि सन्त परम्परा का जीवंत क्षेत्र तिलवाड़ा समूचे मारवाड़ व मालाणी को गौरवान्वित करता है. 


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जसोल रावल कल्याणमल के चौथी पीढ़ी में रावल शिवदानसिंह के छोटे भाई हम्मीरसिंह के वंशज थान मल्लीनाथ में स्थापित हुए. उन्ही के वंशज स्वर्गीय ठा. शेरसिंह के दानवीर पुत्र श्री ठा.दलपतसिंह, ठा.चन्दनसिंह, ठा.भगवतसिंह, ठा.ईश्वरसिंह, ठा.गुलाबसिंह पौत्र समुंदरसिंह, धनपतसिंह, राजुसिंह, हीरसिंह, गजेंद्रसिंह, स्वरूपसिंह, शिवराजसिंह, घनश्यामसिंह, हर्षवर्धनसिंह पड़पौत्र कृष्ण पालसिंह, हरिराजसिंह इन भामाशाहों ने धार्मिक अनुदान का निर्वहन करते हुए अपने हिस्से की 5 बीघा जमीन चैत्र शुक्ल पक्ष बीज को श्री रावल मल्लीनाथ श्री राणी रूपादे संस्थान (तिलवाड़ा) को भेंट की. जो भविष्य में संस्थान की ओर से भोजनशाला व अन्य कार्यों में काम आ सकेगी. साथ रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि श्री मल्लीनाथ जी का ये मेला सदियों से चली आ रही हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखने का कार्य कर रहा है. स्वर्गीय ठा. शेरसिंह के परिवार की ओर से जो जमीन भेंट की गई उंसके लिए मन्दिर संस्थान हमेशा आभारी रहेगा.


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नवरात्रि पर जसोलधाम में वैदिक मंत्रों की गूंज - नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना दुधेश्वर मठ वेद विद्यापीठ के आचार्य मुकेश शुक्ला व पंडित मनोहर लाल अवस्थी के द्वारा वैदिक विधी विधान के साथ करवाई गई. मंदिर परिसर में अठारह पंडितो के द्वारा नोकुंडिय शतचण्डी यज्ञ में आहुति दी जा रही है. वैदिक मंत्रों की गूंज से वातावरण भक्तिमय बन गया. शास्त्रों के अनुसार माँ नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से ज्ञान व वैराग्य की प्राप्ति होती है देवी पार्वती ने नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी. इस कठिन तपस्या के कारण इन्हे तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया. भोजनशाला के समापन कार्यक्रम में श्री श्री 1008 महंत श्री पदमाराम जी आश्रम सांडा (पाली) आँजना समाज, गणपतसिंह सिमालिया, हड़मतसिंह नौसर, गजेंद्रसिंह जसोल, मांगुसिंह जागसा, सुमेरसिंह वरिया, गुमानसिंह मेवानगर, गुमानसिंह वेदरलाई सहित छतीशी कौम के सैकड़ों गणमान्य लोग मौजूद रहे.