Siwana: मारवाड़ की मरू गंगा लूणी नदी के सटे इलाके के किसानों के लिए भागीरथी से कम नहीं हैं, लेकिन विगत अरसे से पाली जोधपुर और बालोतरा की औद्यौगिक इकाइयों से लगातार केमिकल युक्त दूषित पानी के नदी में निस्तारण से अन्नदाता परेशान है.


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भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ी किसानों की जमीनें दूषित पानी के जल रिसाव और सिंचाई से बेशकीमती कृषि भूमि बंजर चुकी हैं, हालात यह हैं कि सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की उपलब्धता के बाद भी फैक्ट्रियों से छोड़ा गया केमिकल युक्त दूषित पानी के प्रभाव से जीरा, इसबगोल, रायड़ा और गेहूं की पैदावार ना के बराबर है. हर साल की तरह भाचरणा, धुंधाड़ा, रामपुरा, गोदों का बाड़ा, महेश नगर ढ़ीढ़स, खरंटिया, कोटड़ी, मजल, पातों का बाड़ा, अजीत, भलरों का बाड़ा, चारणों का बाड़ा, भानावास, रानी देशीपुरा, समदड़ी, करमावास, बिठूजा, सांकरणा, जसोल, तिलवाड़ा, सिणधरी, गुड़ामालानी और गांधव सहित कई गांवों के किसान प्रशासन को ज्ञापन सौपते हैं, लेकिन हालात तो जस के तस बने हुए हैं.


बंदरबांट का खामियाजा भुगत रहे किसान


ओद्यौगिक इकाइयों से निस्तारित केमिकल युक्त दूषित पानी का निस्तारण कायदे से वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में होना चाहिए, जबकि वास्तविकता अलग है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और CETP (वॉटर पॉल्युशन कंट्रोल एंड रिसर्च ट्रस्ट) के बीच सांठगाठ और पैसों की बंदरबांट का खामियाजा किसान और उनके बच्चे भुगत रहे हैं. बालोतरा, बिठूजा, जसोल, पाली और जोधपुर में गठित वाटर पॉल्युशन कंट्रोल एंड रिसर्च ट्रस्ट (सीईटीपी) से औद्योगिक क्षेत्र की हजारों इकाइयां जुड़ी हुई हैं. इन इकाइयों में कपड़ा तैयार करने के दौरान निकलने वाला प्रदूषित पानी नियमों में तो वहां लगे प्लांट में पानी को उपचारित किया जाता है. रिट्रीट पानी को 85 फीसदी तक वापस काम में लिया जाता है, यह पानी ट्रस्ट कम दर में वापस उद्यमियों को उपलब्ध करवाता है, जबकि ट्रस्ट इन तथ्यों के क्रियान्वयन से कोसों दूर हैं. क्योंकि ट्रस्ट राजनितिक में हस्तक्षेप और धनबल की सांठगांठ से करोड़ों रुपये का गबन कर बंदरबांट करते हैं.


सीईटीपी ट्रस्ट सभी फैक्ट्रियों की मॉनीटरिंग, रखरखाव और प्रदूषण नियंत्रण का कार्य करती है. इसकी कार्यकारिणी का कार्यकाल 3 साल तक होता है. ऐसे में पूरी इंडस्ट्री पर वर्चस्व को लेकर ट्रस्ट के आम चुनाव के दौरान उद्यमियों में होड़ देखने को मिलती है. यह स्वभाविक भी है क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मार्फत सत्ता के गलियारों तक ट्रस्ट के दबदबे का दंश आखिकार मरूगंगा के तटवर्तीय किसान भुगतते हैं.


लूणी नदी के बहाव क्षेत्र से जुड़े जनप्रतिनिधियों की बात करें तो आश्चर्यजनक पहलू देखने को मिलेगा. लूणी विधायक महेंद्र बिश्नोई पर्यावरण सरंक्षण के लिए जाने जाते हैं और तो और राजस्थान विधानसभा की पर्यावरण समिति के सदस्य भी हैं. सिवाना विधायक हमीर सिंह भायल स्वयं को किसान नेता कहते हैं और राजस्थान विधानसभा की पर्यावरण समिति के सदस्य हैं. पचपदरा विधायक मदन प्रजापत विधानसभा में मुद्दे को बड़े जोर शोर से उठाते है, लेकिन धरातल पर किसानों को राहत नहीं. जबकि सांचौर विधायक सुखराम बिश्नोई राजस्थान सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय संभाल चुके हैं, फिलहाल श्रम एवं बॉयलर मंत्रालय और बाड़मेर जिला प्रभारी का दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं. इसके बाद भी अगर मरू गंगा गंदी हो रही है तो किसी न किसी की तो जवाबदेही बनती है. क्योंकि प्रत्येक वर्ष नदी में फैक्ट्रियों से निस्तारित दूषित जल प्रवाह के दौरान जनाक्रोश को देखते हुए जनप्रतिनिधि प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर और मीडिया के सामने प्रशासन की विफलता पर और आरोप-प्रत्यारोप के साथ रोष प्रकट कर इतिश्री कर लेते हैं.


किसानों को तो अब एक ही आसरा नजर आ रहा हैं, वो हैं गुड़ामालानी विधायक किसान केसरी हेमाराम चौधरी जिन्होंने अभी हाल में मंत्रिमंडल फेरबदल में राजस्थान सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का जिम्मा संभाला हैं उनसे किसानों की जरूर उम्मीद बंधी हैं की फैक्ट्रियों के दूषित पानी का स्थाई हल अब अवश्य होगा।


किसानों की हो रही अनदेखी


बाड़मेर-जैसलमेर और जोधपुर संसदीय क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद कैलाश चौधरी और गजेंद्र सिंह शेखावत जो की केंद्र सरकार में कृषि एवं जल शक्ति मंत्रालय का दायित्व संभाल रहे हैं, जवाबदारी और जिम्मेदारी के प्रति इनकी उदासीनता के कारण ही फैक्ट्रियों से निस्तारित केमिकल युक्त दूषित पानी का लूणी नदी में अरसे से धड़ल्ले से जल प्रवाह हो रहा है. जीरा, इसबगोल, रायड़ा और गेहूं की पैदावार ना के बराबर है. अगर नेता अपने दायित्व का निर्वाह करें तो मरू गंगा लूणी नदी के क्षेत्र में किसान जीरे की रिकॉर्ड पैदावार से मिशाल पेश कर सकते हैं, लेकिन किसानों से वोट बटोरने के अलावा उनके हित और अधिकारों की बात रखना क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले जनप्रतिनिधि के लिए बेमानी हो गया हैं.


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