Bharatpur: उड़ीसा के कटक के एक गांव से सोमेश्वर दास मानसिक स्थिति खराब होने के चलते 25 साल पहले घर से निकल गए. परिजनों ने कई साल तक उन्हें तलाश किया, लेकिन कहीं कोई पता नहीं चला. परिजनों ने सोमेश्वर दास के मिलने की उम्मीद छोड़ दी. आखिर में सामाजिक रीति-रिवाज के अनुसार, 24 साल बाद उन्हें मृत समझकर उनका ब्रह्मभोज भी कर दिया.


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पत्नी अपने पति को मृत समझकर विधवा की तरह जीवन जीने लगी, लेकिन एक माह पहले अपना घर आश्रम से पहुंचे एक फोन ने उनके जीवन में फिर से खुशियां भर दी. सूचना पाकर कटक से सोमेश्वर दास का बेटा उन्हें लेने के लिए अपना घर आश्रम पहुंचा और पिता को देखकर खुशी से रोने लगा. बेटा अपने पिता को साथ लेकर खुशी-खुशी अपने घर के लिए रवाना हो गया. 


अपने पिता को लेने अपना घर आश्रम पहुंचे बेटा संतोष दास ने बताया कि करीब 25 साल पहले उनके पिता मानसिक स्थिति खराब होने की वजह से कटक स्थित उनके घर से निकल गए. कई साल तक उनको तलाश किया, लेकिन कहीं पर कोई पता नहीं चला. संतोष दास ने बताया कि उनके यहां एक मान्यता है यदि 12 साल तक कोई लापता व्यक्ति नहीं मिले, तो उसे मृत समझकर बृह्मभोज दिया जाता है, लेकिन माता को विश्वास था कि सोमेश्वर दास जरूर मिलेंगे. आखिर में 24 साल गुजरने के बाद उन्हें सामाजिक मान्यता के अनुसार, सोमेश्वर दास को मृत समझ लिया और इनका ब्रह्मभोज कर दिया. 


इतना ही नहीं, सोमेश्वर दास की पत्नी सोनालता ने खुद के पति को मृत समझकर विधवा की तरह जीवन जीना शुरू कर दिया, लेकिन अचानक से 1 महीने पहले परिजनों को भरतपुर के अपना घर आश्रम से फोन पहुंचा और उन्हें सूचना दी कि उनके परिजन सोमेश्वर दास जीवित और स्वस्थ अवस्था में अपना घर आश्रम में हैं. 


अपना घर आश्रम बबिता गुलाटी ने बताया कि जिस समय परिजनों को सोमेश्वर दास के जीवित होने की सूचना दी गई, तो उनके परिजन एक बार तो विश्वास ही नहीं कर पाए. आखिर में उन्हें पूरी जानकारी दी गई तब जाकर उन्हें यकीन हुआ कि सोमेश्वर दास जीवित हैं. 


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शनिवार शाम को सोमेश्वर दास का बेटा संतोष दास अपने एक अन्य परिजन के साथ अपने पिता को लेने अपना घर आश्रम पहुंचा. रविवार सुबह जब सोमेश्वर दास को उनके बेटे संतोष दास से मिलाया तो वो अपने बेटे को पहचान नहीं पाए. असल में जिस समय सोमेश्वर दास अपने घर से निकले थे उस समय उनका बेटा महज 14 साल का था और अब वो 39 साल का हो गया है. 


पिता को देखकर बेटा संतोष दास भाव विह्वल हो गया और फूट-फूट कर रोने लगा. आश्रम की सभी जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद संस्थापक डॉ बी एम भारद्वाज और अन्य सदस्यों ने सोमेश्वर दास को अपने बेटे के साथ उड़ीसा के कटक स्थित अपने घर भेज दिया. 


Reporter- Devendra Singh


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