सुहागिनों के सुहाग की रक्षा करती हैं बरवाड़ा की चौथ माता, करवाचौथ पर जुटती है भारी भीड़
चौथ माता को लेकर सुहागिन महिलाओं में माता के प्रति गहरी आस्था है और महिलाएं चौथ का व्रत रखकर अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं.
Sawai Madhopur: वैसे तो पूरे भारतवर्ष में करोड़ों मंदिर हैं और लोग अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार देवी-देवताओं में आस्था रखते हैं. कोई विष्णु उपासक है तो कोई शिव उपासक है तो कोई देवी उपासक है मगर सुबे के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा कस्बे में मां अंबे का एक ऐसा मंदिर है, जिसे लोग चौथ माता के रुप में पूजते हैं.
यहां आने वाले भक्त माता पर अथाह आस्था रखते हैं तभी तो साल भर माता के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है. विशेष कर हिन्दी महीनों की हर चौथ और करवा चौथ पर माता के दरबार में श्रद्धा का सैलाब उमड़ता है. राजस्थान सरकार द्वारा भी चौथ माता मंदिर को प्रदेश के प्रसिद्ध 11 बडे मंदिरों में शामिल किया गया है.
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सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा की पहाड़ियों पर करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर विराजमान चौथ माता जन-जन की आस्था का केंद्र है और यहां आने वाले श्रद्धालु मां अंबे के इस रुप को चौथ माता के रुप में पूजते हैं. माता के दर्शन के लिये प्रदेश से ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों से भी वर्ष भर लाखों की तादात में श्रद्धालु यहां आते हैं.
यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि चौथ माता भक्तों की हर मुराद पूरी करती है कोई भी भक्त माता के दरबार से खाली हाथ नहीं लौटता माता सबकी झोली भरती है. कोई संतान प्राप्ति तो कोई सुख-समृद्धि की कामना लेकर माता के दरबार में आता है और माता सबकी पुकार सुनती है. विशेष कर महिलाओं में चौथ माता को लेकर खासी आस्था है महिलाओं का मानना है कि चौथ माता उनके सुहाग की रक्षा करती है यहां आने वाली महिला श्रद्धालु माता से अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं और हिन्दी महीनों की हर चौथ और विशेष कर करवा चौथ को महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए माता का उपवास रखती है. दिन भर व्रत रखने के बाद महिलाएं शाम को चांद देखकर और माता के अर्घ्य देकर अपने पति का चहरा देखती है और पति की सूरत में माता के रुप को देखकर ही व्रत खोलती हैं.
कई किवदंतियां हैं प्रचलित
चौथ माता मंदिर को लेकर यहा के लोगों में कई प्रकार की किवदंतियां प्रचलित हैं. साथ ही माता के मंदिर की स्थापना को लेकर भी लोगों के अलग-अलग मत हैं. अधिकतर लोगों का मानना है कि चौथ माता मंदिर की स्थापना 1451 में यहां के तत्कालीन शासक भीमसिंह के द्वारा की गई थी और 1463 में मंदिर मार्ग पर बिजल की छतरी तथा पहाड़ी की तलहटी में तालाब का र्निमाण करवाया गया था. सोलहवीं शताब्दी में यह कस्बा चौहान वंश से मुक्त होकर राठौड वंष के अधीन आ गया था. इस वंष के शासकों में भी माता के प्रति गहरी आस्था थी. कहा जाता है की राठौड वंष के शासक तेजसिंह राठौड ने 1671 में मुख्य मंदिर के दक्षिण हिस्से में एक तिबारा बनवाया था हाड़ौती क्षेत्र के लोग हर शुभ कार्य करने से पहले आज भी माता को निमन्त्रण देने आते हैं. प्रगाढ़ आस्था के कारण बूंदी राजघराने के समय से ही चौथ माता को कुल देवी के रुप में पूजा जाता है. माता के नाम पर कोटा में चौथ माता बाजार भी है.
जयपुर राजघराने के द्वारा कराई गई थी मंदिर की स्थापना
वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि चौथ माता मंदिर की स्थापना जयपुर राजघरानें के द्वारा कराई गई थी, जब राव माधोसिह ने सवाई माधोपुर बसाया था उसी दौरान यहां मंदिर भी बनवाया गया था क्योंकि राव माधोसिह माता को कुलदेवी के रुप में पूजते थे कहा जाता है कि एक बार लड़ाई के दौरान मातेश्री नामक एक महिला के पति की मौत हो गई थी. इस पर महिला ने अपने पति के साथ सती होने की जिद की तो राव माधासिंह ने सती प्रथा पर रोक लगा दी और महिला को सती नहीं होने दिया गया. इस पर महिला ने माता के दरबार में गुहार लगाई की है मां या तो मुझे मौत दे दो या फिर मेरे पति को जीवनदान दो इस पर माता ने महिला के पति को जीवनदान देकर जीवित किया. तभी से पूरे राजस्थान में महिलाएं माता के नाम से चौथ माता का व्रत करती हैं और तभी से महिलाएं करवा चौथ का उपवास रखती हैं और अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती है. राव माधोसिंह ने ही इस कस्बे को माली समाज के लोगों को गद्दी के रुप में भेट कर दिया था तभी से यहां माता की पूजा माली समाज के द्वारा ही की जाती है.
करवा चौथ पर करती हैं पूजा
देवस्थ विभाग भी मंदिर की देख-रेख के साथ ही कस्बे के विकास की पहल में जुटा हुआ है. चौथ माता को लेकर सुहागिन महिलाओं में माता के प्रति गहरी आस्था है और महिलाएं चौथ का व्रत रखकर अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती है. करवा चौथ पर माता के दरबार में श्रृद्धालुओं की विशेष भीड़ रहती है.