Asind News: कहते हैं कि मजबूरी जो न कराये सो कम है. लाचारी व बेबसी का ऐसा ही एक उदाहरण भीलवाड़ा जिले के बदनोर में देखने को मिला है. जिन कंधों पर स्कूल का बैग होना चाहिए था, वे अब परिवार के खर्च को संभालने की जिम्मेदारी उठाने को मजबूर है. कलम की जगह उनके हाथों में किस्मत का तराजू है. बीमार पिता के इलाज और दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए मासूम के पास अब घर खर्च चलाना दुश्वार हो रहा है.


गिरधरपूरा पंचायत के ठूमिया गांव की घटना


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बदनोर के गिरधरपूरा पंचायत के ठूमिया गांव से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जो दिल को झकझोर देने वाली है. यहां 4 मासूम भाई बहन लाचारी व बेबसी के कारण बीमार पिता को एक वक्त की रोटी नसीब नहीं करवा पा रहे हैं. पिता बीमार है और मासूम बेटा आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे है. यहां एक 13 बर्षीय बालिका पूजा वह 12 साल के पुत्र हगाम नाथ अपने 10 बर्षीय बहन लक्ष्मी के साथ आस पड़ोस में काम करके गुजारा चला रहे है. 4 भाई बहन अपनी मासूम निगाहों से आते जाते लोगों को देखकर रोते नजर आते हैं.


समाजसेवी संवार लाल गुर्जर की नजर पड़ी


 चारों बच्चों की लाचारी व बेबसी देख समाजसेवी संवार लाल गुर्जर से रहा नहीं गया. यह देख उनके दिल को झकझोर गई तो उनके पास पहुंचे. स्थानीय लोगों ने बच्चों की मनोदशा को देखते हुए उसने जानकारी ली इस बीच बेबसी का कारण पूछा तो पता चला कि उनके पिता पुरण नाथ बीमार हैं. वे ही थे, जो मजदूरी कर व सब्जी बेच कर घर का खर्च चलाते थे लेकिन बीमारी के कारण वो महेनत वाला काम नहीं कर पा रहे. घर में न राशन है और न ही रुपये. ऊपर से कोई मदद भी नहीं कर रहा है.


8 महीने पहले ही बीमारी के चलते मौत हो गई


ऐसे में चारों भाई बहन बीमार पिता, छोटे-छोटे भाई बहनों के की खातिर सड़क पर निकल पड़े. बच्चों के पिता पूरण नाथ ने बताया कि वह मजदूरी कर व सब्जी बेचकर परिवार को पाल रहे थे. घर में उनकी पत्नी थी जो 8 महीने पहले ही बीमारी के चलते मौत हो गई. बड़ी बेटी पूजा व बड़ा बेटा हगाम नाथ और छोटी बेटी लक्ष्मी और उस से छोटी बेटी फूलवंती बेटी है.


अब पूरण नाथ से चला नहीं जाता


करीब 1 साल पूर्व पूरण नाथ को खून की उल्टी हुई. उसके बाद से घुटनो में दर्द और चलने में दिक्कत आने लग गई. जिसका सरकारी अस्पताल से इलाज करवाया पर अब पूरण नाथ से चला नहीं जाता है. घर में जितने पैसे रुपए थे वह इलाज में खर्च हो गए. लॉक डाउन खुलने के बाद कुछ दिन काम कर सके कि बीमारी ने आकर जकड़ लिया. काम धंधा बन्द हो गया. आर्थिक रूप से और कमजोर हो गए. बड़े बेटे हगाम नाथ ने हालातो को देखते हुये बेटे व भाई होने की जिम्मेदारी निभाने की बात कही. मजबूरी वश व परिवार की खातिर हगाम नाथ को पढ़ाई छोड़ कर परिवार के पालन पोषण के लिए मजदूरी करने के लिए हां करनी पड़ी.


जिसके बाद हगाम नाथ अपने छोटे भाई बहन को पिता के पास छोड़ कर आस पास से पिता और भाई बहन को 2 वक्त की रोटी खिला रहा है. गांव के ही मेंहद्र सिंह ने बताया की हगाम नाथ पढ़ाई में काफी होनहार लड़का है लेकिन मजबूरी के चलते वह स्कूल भी नहीं जा पा रहा है. यदि कोई सामाजिक संस्था या भामाशाह आगे आए और इस परिवार की मदद करें तो हगाम नाथ पढ़ लिखकर कुछ बन सकता है.


टीन शेड व पन्नी की छांव में रहने को मजबूर परिवार


एक तरफ छोड़ने वाली सर्दी है तो दूसरी और खुले में सोने को मजबूर है परिवार. वहीं हगाम नाथ के घर की हालत काफी खस्ताहाल है घर के दरवाजे नहीं है. छत के नाम पर गली हुई टीन शेड व तनी हुई पन्नी के बीच पूरा परिवार रहने को विवश है. हगाम नाथ ने बताया कि सरकार से मिलने वाले आवास का लाभ भी नहीं मिला है और न ही अन्य सुबिधाएं. फिलहाल पूरा परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. सरकार से आस लगाए बैठा है किसी तरह उसकी सुनवाई हो जाये और सरकार से मिलने वाली योजनाओं का लाभ उन्हें भी मिल सके. 


परिवार की मदद की गुहार लगाई


समाजसेवी संवार लाल गुर्जर ने बताया कि वो काम से जा रहे थे. इस बीच छोटे-छोटे बच्चों पर उनकी निगाह ठिठक गई. कम उम्र में बच्चों को रोता देख उनसे रहा नहीं गया. जब बच्चों से कारण जाना तो पता चला कि बच्चों के पिता पूरण नाथ बीमार हैं. घर जाकर देखा तो परिवार की स्थिति दयनीय मिली. समाजसेवी ने बताया कि मौके पर परिवार के लिए जितन हो सकता था वो उन्होंने किया है. समाजसेवी ने जनप्रतिनिधियों व अन्य समाजसेवियों से परिवार की मदद की गुहार लगाई है.


Reporter- Rohit Soni