Diwali 2022 Laxmi Puja Prasad: खौलते तेल से निकलकर चाशनी में डुबकी लगाती जलेबी का स्वाद तो आप सभी ने चखा होगा, लेकिन भीलवाड़ा जिले में लगी सैकड़ों भट्टियों पर इन दिनों देशी घी में एक खास मिठाई तैयार हो रही है. साल में केवल 20 दिन बनने वाली ये मिठाई दशहरा से दीपावली तक ही बिकती है. डिमांड इतनी होती है कि 1000 दुकानों का माल भी कम पड़ जाता है. धन की देवी माता महालक्ष्मी को उड़द की दाल से बनी हुई मिठाई बेहद प्रिय है. यह मिठाई मावा और दूध के बगैर बनती है और यह शत प्रतिशत शुद्ध होती है.


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जलेबी है या इमरती
मिठाई की शेप ऐसी है कि पहली बार देखने वाला कंफ्यूज हो जाए. समझ में नहीं आएगा कि जलेबी है या इमरती. ये हैं भीलवाड़ा के फेमस मुरके. यहां के लोग दीपावली के दिन धन की देवी महालक्ष्मी को भी इसी मिठाई का भोग लगाते हैं. करीब 100 साल से तैयार हो रहे इस जायके के गुजराती से लेकर मराठी लोग भी दीवाने हैं.


गुजराती से लेकर मराठी लोग है इसके दीवाने
नवरात्रि तक भीलवाड़ा में मिठाई के केवल 60-70 दुकानें होती हैं, लेकिन दशहरा की शुरुआत होते ही शाम तक अचानक सैकड़ों भट्टियों से देशी घी की महक उठने लगती है फिर शुरू होता है भीलवाड़ा के मशहूर मुरके निकालने का सिलसिला. हल्का भूरा होने पर चाशनी में डुबोकर बाहर निकलते ही पूरा माल बिक जाता है. पूरे भीलवाड़ा में अगले 20 दिनों तक मुरकों का स्वाद लोगों की जुबान पर छाया रहता है.


लक्ष्मी पूजन में मुरके का प्रयोग
इस मिठाई को जब कोई बाहरी व्यक्ति पहली बार देखता है तो इसे जलेबी ही दिखती है या फिर इमरती बताने लगता है लेकिन जब स्वाद लेता है तो समझ आता है कि न तो यह जलेबी है और न ही इमरती. बल्कि मुरके हैं, जो मैदा नहीं, उड़द की दाल से तैयार होते हैं. हल्की सर्दी की दस्तक के साथ इसका स्वाद जुबान पर चढ़ने लगता है. इसके स्वाद का अंदाजा इस बात से ही लगता है कि शहरभर में केवल 20 दिन के लिए इसके हजार से ज्यादा काउंटर लग जाते हैं. वैसे तो बाकी मिठाइयां सालभर मिल जाएंगी, लेकिन मुरके विजयदशमी से दीपावली के दौरान ही मिलते हैं.


उड़द की दाल से बनती है खास मिठाई
हलवाई जानकी लाल सुखवाल बताते हैं कि ये जायका 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. जिले में भूरालाल काबरा नाम के हलवाई ने प्रयोग कर इस मिठाई को पहली बार बनाया था. जिले के कोटड़ी क्षेत्र में उड़द दाल का उत्पादन काफी होता है. इसी सीजन में उड़द की दाल फायदेमंद भी होती है, इसलिए यह मिठाई दशहरा से लेकर दीपावली तक ही बनती है. लक्ष्मी पूजन और गोवर्धन पूजन पर इसी मिठाई से ही भोग लगाते हैं. भीलवाड़ा शहर सहित जिले के मांडल, शाहपुरा, कोटड़ी, गुलाबपुरा, हमीरगढ़ कस्बों के गांव-गांव में भी कहते हैं कि दीपावली पर सभी मिठाई खाई और मुरके नहीं खाए तो क्या खाया? यहां के मौसम और जलवायु के चलते यह मिठाई इसी क्षेत्र में ही अपना रूप और स्वाद दे पाती है. उड़द की दाल होने से अन्य इलाकों में इस मिठाई का कुरकुरापन नहीं रह पाता.


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इसे शुद्ध माना जाता है
पुश्तैनी मुरके की मिठाई बनाने वाले भैरूलाल पाटनी कहते हैं कि पहले यह मिठाई उनके दादाजी बनाते थे, फिर उसके बाद उनके पिताजी और अब वो बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि अब तक उनको 40 साल हो गए हैं, इस मिठाई को बनाते हुए. भीलवाड़ा में पहले इस मिठाई की काफी कम दुकानें थीं, लेकिन हर वर्ष दीपावली पर इसकी बढ़ती मांग ने आज शहर के हर चौराहे पर मुरके की दुकान मिल जाती है. यह मिठाई मावा और दूध के बगैर बनती है, जिसके चलते इसे शुद्ध माना जाता है, क्योंकि दिवाली सीजन में मावे की मिठाइयों में मिलावट बहुत होती है. इसके साथ ही इसमें मैदा का कोई उपयोग नहीं होता है बल्कि उड़द की दाल का प्रयोग किया जाता है जो काफी स्वास्थ्यवर्धक होती है.


कहते हैं माता लक्ष्मी को है बेहद प्रिय
वहीं दूसरी ओर मिठाई बनाने वाले हलवाई भंवर सिंह ने बताया कि वो इस मिठाई को 35 सालों से मनाते आ रहे है, इस मिठाई की सबसे खास बात यह है कि यह उड़द की दाल की बनती है और दूसरी मिठाइयों से काफी सस्ती भी होती है और बनाने में भी आसान होती है. इस पर मिठाई खरीदने चित्तौड़ से आए कन्हैयालाल खटीक कहते हैं कि वैसे तो मेवाड़ की मिठाइयों का अंदाज ही कुछ अलग है, यहां पर मुख्य रूप से मुरके का प्रचलन ज्यादा है क्योंकि भीलवाड़ा में लक्ष्मी पूजन में मुरके का प्रयोग ज्यादा किया जाता है, यह शत प्रतिशत शुद्ध होती है और बाजार में कहीं भी मिल जाती है. इसमें ना तो किसी प्रकार के मैदा का प्रयोग होता है और ना ही मावे का, जिससे कि इसमें मिलावट होने की कोई शिकायत नहीं हो सकती.


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बड़े चाव से लोग पसंद करते हैं
एक वक्त था जब भीलवाड़ा जिले की प्रसिद्ध मिठाइयों में मलाई बर्फी का नाम शामिल था लेकिन मिलावट खोरी और लोगों के स्वाद में आते बदलाव ने इस धारणा को बदल दिया आज भीलवाड़ा जिले में यदि दिवाली के समय की बात की जाए तो मलाई बर्फी के मुकाबले कई गुना ज्यादा दुकान है और स्टॉल मुरके की लगाई जाती है और इस मिठाई को बड़े चाव से लोग पसंद भी करते हैं और यह स्वाद लोगों की जबान पर भी चढ़ चुका है यही कारण है कि मलाई बर्फी की जगह मुरके ने ले ली है और अब भीलवाड़ा जिले की प्रसिद्ध मिठाई भी मुरके ही बन चुके हैं.


Reporter-Mohammad Khan