दो दिग्गजों की अदावत ! भाजपा के लिए बनी सिरदर्द, मेघवाल की बैठक में बिना बुलाए पहुंचे भाटी
केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल और पूर्व सिंचाई मंत्री देवी सिंह भाटी की अदावत एक बार फिर जग ज़ाहिर हुई. बीकानेर से लेकर प्रदेश की राजनीति में बगावत की चर्चा जोरों पर है. चुनाव से पहले नेताओं की तल्खी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है.
Bikaner: बीकानेर की राजनीति के दो ध्रूव एक साथ नजर नहीं आ रहे हैं. अर्जुन मेघवाल और देवी सिंह भाटी के बीच आपसी खींचतान एक बार फिर से सामने आई है. देवी सिंह भाटी भले ही भाजपा में नहीं है, लेकिन हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ मंच सांझा कर अपनी ताकत दिखा चुके हैं. वहीं अर्जुनराम मेघवाल ने भी भाटी के भाजपा प्रवेश द्वार पर रोक लगाकर अपनी मजबूत स्थिति से रूबरू करवा दिया है.
दरअसल, दो दिग्गजों की अदावत का एक बार फिर चर्चा में है, बुधवार को जब देवी सिंह भाटी अपने तय कार्यक्रम के मुताबिक, कलेक्टर से गौचर में अतिक्रमण मामले को लेकर मिलने पहुंचे तो वहां पहले से अर्जुनराम मेघवाल निगरानी समिति की मीटिंग ले रहे थे. ऐसा माना जा रहा है कि भाटी को इस मीटिंग में नहीं जाना चाहिए था, लेकिन अपने तय कार्यक्रम को वो टाल भी कैसे सकते थे और वो मेघवाल की मीटिंग में जा घुसे. इससे हालात और तनावपूर्ण हो गए.
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मेघवाल की मीटिंग में भाटी की एंट्री
भाटी ने यहां उन मुद्दों पर जोर जोर से बोलना शुरू कर दिया, जिस पर वादा करके भी अर्जुनराम मेघवाल काम नहीं कर सके. खासकर राजस्थानी भाषा को मान्यता और इंदिरा गांधी नहर में पानी का मुद्दा उठाया. भाटी भले ही ऊंची आवाज निकालकर अंतिम पंक्ति तक बैठे पदाअधिकारी तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पांच फीट से भी कम दूरी पर बैठे केंद्रीय राज्य मंत्री मेघवाल उनकी बातों को अनसुनी करते रहे. यहां तक कि उन्होंने भाटी की ओर देखना भी उचित नहीं समझा.
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भाटी पर मेघवाल के खिलाफ प्रचार करने का आरोप
वैसे तो राजनीति में कोई किसी का स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है, लेकिन भाटी और मेघवाल के मामले साफ है कि निकट भविष्य में दोनों नेताओं को मिल पाना संभव नहीं है. ऐसे में देवी सिंह भाटी का भाजपा में आना भी लगभग मुश्किल है, क्योंकि भाजपा ने पार्टी में वापसी करने वाले नेताओं के लिए कमेटी गठित की है और उस कमेटी के मुखिया अर्जुन मेघवाल हैं. राजे समर्थक देवी सिंह भाटी पर आरोप है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अर्जुन मेघवाल के खिलाफ प्रचार प्रसार किया था और हराने का काम किया था. ऐसे में भाटी की घर वापसी होना मुश्किल है. वहीं, भाजपा ने मेघवाल को इस कमेटी का संयोजक बनाकर न सिर्फ भाटी को बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी साफ संकेत दिया है.
चुनाव पर असर दिखना तय
देवी सिंह भाटी खुद और अपनी पुत्रवधु को श्रीकोलायत से भले ही चुनाव नहीं जीता सके हैं, लेकिन बीकानेर की राजनीति पर उनकी पकड़ पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. ऐसे में अगर भाजपा उन्हें पार्टी में नहीं लेती है तो बीकानेर पूर्व, खाजूवाला व कोलायत विधानसभा में इसका सीधा-सीधा असर देखने को मिलेगा. वही, दूसरी तरफ़ अब भाजपा में अर्जुनराम मेघवाल से बड़ा कोई भी नेता बीकानेर की राजनीति में नज़र नहीं आ रहा है, जिसकी केंद्र से लेकर प्रदेश की राजनीति में अच्छी पकड़ है.
अब भाजपा को सोचना होगा बड़े स्तर पर
दो दिग्गजों की अदावत का असर निश्चित तौर पर चुनाव पर दिखेगा. ऐसा इसलिए कि बीकानेर संभाग की कई सीटों पर राजपूत वोटरों पर भाटी की पकड़ अच्छी मानी जाती है. वही अर्जुनराम मेघवाल भी एक बड़ा नाम है. भाजपा नेताओं के बीच की आपसी अदावत जिला और संभाग से उठकर प्रदेश स्तर तक पहुंच है गई है. वहीं, इनके अलावा भी कई नेताओं के बागी तेवर भी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ा हो सकता है. ऐसे में भाजपा प्रदेश स्तर के सामने चुनौती है कि इन अदावतों से कैसे निपटा जाए.
Reporter - Rounak vyas