Bari sadri: बिलड़ी के चारभुजा मंदिर प्रांगण में शनिवार को सुबह 11:00 बजे शुरू हुए गवरी नृत्य मनोरंजन प्रसंगों को आसपास के गांवों के सैकड़ों ग्रामीणों ने बड़े उत्साह के साथ देखा. गवरी नृत्य में प्रमुख प्रसंग बंजारा - बंजारी, कान्हा - गुजरी, राजा - रानी, कालका माता, हटिया - डालना, देवी अंबा, कालू कीर, वरजु - काजरी, भोपा - भोपी, गाडोलिया, मीणा - बंजारा आदि नाटक का मंचन किया. गवरी राई नृत्य कलाकार बिलड़ी गरदाना एवं आसपास के गांव के थे.


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राई कलाकार मुखिया मंगनी राम भील ने बताया कि यह गवरी लोक नृत्य हम पिछले कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. हम भी इस गवरी नृत्य को आगे बढ़ा रहे हैं. सरकार ने गवरी नृत्य को बढ़ावा देने हेतु आज तक कोई पहल नहीं की है.


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भीम सेना जिला प्रभारी शंकरलाल मेघवाल बिलड़ी ने आदिवासी प्राचीन गवरी नृत्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि गवरी नृत्य मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि प्राचीन संस्कृति का संजीव चित्रण हैं. इसका मंचन आदिवासी भील समाज द्वारा किया जाता है. राजस्थान में कई सरकारें आईं कई सरकारें गईं लेकिन राई गवरी लोक नृत्य कलाकारों को कोई महत्व नहीं दिया गया. जिससे यह कलाकार दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं. राज्य सरकार इन कलाकारों को प्रोत्साहित करे जिससे लोक नृत्य आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सजीव चित्रण के रूप में बचा जा सके. इस को ध्यान में रखते हुए जिला प्रभारी मेघवाल ने मुख्यमंत्री को पत्र मेल कर मेवाड़ के गवरी नृत्य कलाकारों को विशेष पैकेज देने की मांग की.


Reporter- Deepak Vyas