Chittorgarh: जिले के रावतभाटा में राजस्थान परमाणु बिजली घर अस्पताल की अव्यवस्थाए मरीजों की जान पर भारी पड़ रही है. अस्पताल प्रबंधन की ओर से स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की ड्युती शीफ्टों में लगाई जा रही है. जिससे अस्पताल में आने वाले अधिकांश मरीजों को स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की सेवाओं का लाभ नहीं मिल रहा.


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मरीजों को अस्पताल में मिलने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा
जानकारी के मुताबित रावतभाटा परमाणु बिजलीघर अस्पताल के 29 डोक्टर्स अपनी सेवाए दे रहे हैं. इनमें चिकित्सा अधिकारियों के अलावा एनिस्थेटिक, चाइल्ड स्पेशलिस्ट, सर्जन, आई स्पेशलिस्ट, डेंटिस्ट, दो गायनोलोजिस्ट और एक सोनोलोजिस्ट डॉक्टर शामिल है. परमाणु बिजलीघर अस्पताल में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स और इलाज के लिए आवश्यक हाइटेक संसाधन की कमी नहीं है. इसके बावजूद अस्पताल के मिस मैनेजमेंट की वजह से मरीजों को अस्पताल में मिलने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा.


14 हजार सीएचएस कार्ड होल्डर है
जानकारी के अनुसार रावतभाटा परमाणु बिजलीघर की 6 ईकाइयां, भारी पानी संयंत्र और परमाणु बिजलीघर की सातवीं और आठवीं इकाई निर्माणधीन है. इसके अलावा देश का दूसरा एनफसी संयंत्र भी रावतभाटा में बन रहा है. डिपार्टमेंट और एटोमिक एनर्जी के अधीन आने वाले इन संयंत्रों में कार्यरत परमानेंट और रिटार्ड कर्मचारी, उनके उनके परिवार के सदस्यों सहित 14 हजार सीएचएस कार्ड होल्डर है. जिनका इलाज इसी अस्पताल में होता है.


सोनोलोजिस्ट के अभाव में सोनोग्राफी बंद हो गई
बताया जा रहा है कि साल 2016 तक अस्पताल में मरीजों की सोनोग्राफी की जाती थी. उसके बाद सोनोलोजिस्ट के अभाव में सोनोग्राफी बंद हो गई. लंबे इंतेजार के बाद इसी साल परमाणु बिजली घर की अनुशंसा पर इसी अस्पताल के एक डॉक्टर शशिकांत वर्मा को सोनोग्राफी की ट्रेनिंग के लिए भेजा गया. उनके सोनोलोजिस्ट की ट्रेनिंग लेने के बाद एक बार इसी जून महीने से फिर से अस्पताल में पेट, किडनी, लिवर और अन्य ऑर्गन की बीमारियों से जुड़े रोगियों और प्रसुताओं को सोनोग्राफी का लाभ मिलने लगा. नतीजन अस्पताल में दो से तीन महीने में बड़ी संख्या में मरीजों की सोनोग्राफी हुई लेकिन हाल ही में अस्पताल प्रबंधन ने डॉक्टर की ड्युटी शीफ्ट में लगा दी. जिसके बाद एक बार फिर से मरीजों की सोनोग्राफी अटक गई और मरीजों को कोटा का रास्ता दिखाया जा रहा है.


डॉक्टर्स की कमी का हवाला दिया
इस मामलें में परमाणु बिजलीघर निर्माणधीन परियोजना निदेशक और अस्पताल मैनेजमेंट देख रहे प्रबंधन अधिकारी एस हलदर से बात की तो उन्होंने अस्पताल अधीक्षक डॉ. डी सरकार को इस बारे में ज्यादा जानकारी होने की बात कही. जबकि अधीक्षक डी सरकार खुद की प्रबंधन व्यवस्था में आ रही खामियों को छुपाने के लिए हमसे बात करने को तैयार नहीं है. ऐसे में अस्पताल जाकर सोनोलॉजिस्ट डॉ. शशिकांत वर्मा से बात की तो उन्होंने डॉक्टर्स की कमी का हवाला देकर उनकी ड्यूटी शिफ्ट में लगाने की बात कही, जो सरासर मामलें को दबाने वाली स्थिति नजर आई, क्योंकि अस्पताल में दो दर्जन से ज्यादा डॉक्टर्स कार्यरत है. और इनमें से अधिकांश की ड्यूटी डिस्पेंसरी सहित अन्य ज्यादा गैर जरूरी जगहों पर लगा रखी है.


स्थानीय लोगों और अस्पताल प्रबंधन में तनाव की स्थिति
बताया जाता है कि पहले भी अस्पताल प्रबंधन के मननाने निर्णय मरीजों के लिए दुखदाई साबित हुए है, साथ ही अस्पताल के डॉक्टर्स को भी इससे परेशानी उठानी पड़ती है. जिसे लेकर स्थानीय लोगों और अस्पताल प्रबंधन में तनाव की स्थिति बन जाती है. हाल ही में अस्पताल प्रबंधन की ओर से अस्पताल के एकमात्र नवजात रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मनोज कुमार का तबादला दूसरी साइट पर कर दिया. जिसे लेकर परमाणु बिजलीघर के कर्मचारी, महिलाओं और बच्चों ने अस्पताल परिसर में सांकेतिक धरना प्रदर्शन कर डॉक्टर का तबादला निरस्त करवाने की मांग की थी. लेकिन परमाणु बिजलीघर अस्पताल प्रंबंधन की मनमानी के आगे किसी की एक नहीं चली और डॉक्टर को रावतभाटा से बाहर दूसरी साइट पर भेज दिया गया.


सीएमडी को पत्र लिख कर जांच कमेटी गठित करने की मांग की थी
इसी तरह अस्पताल में प्रबंधन की दो दर्जन से ज्यादा अव्यवस्थाओं और अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए परमाणु बिजलीघर की ट्रेड यूनियन राजस्थान एटोमिक श्रमिक संघ ने भी हाल ही में न्यूक्लियर पॉवर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के सीएमडी को पत्र लिख कर जांच कमेटी गठित करने की मांग की थी. इसके बावजूद हालात जस के तस है. इसी प्रकार अगर सूत्रों की माने तो स्थानीय अस्पताल प्रबंधन की मनमानी और मिस मैनेजमेंट की शिकायते पहले भी मुम्बई मुख्यालय पहुंचती रही.


लंबे समय से अस्पताल प्रबंधन के मनमाने रैवैये से मरीज ही नहीं, बल्कि कई डॉक्टर्स तक परेशान हो चुके है. जिसमें हाल ही में किसी मामलें में एक महिला डॉक्टर ने अस्पताल अधीक्षक और एक सीनियर महिला डॉक्टर के खिलाफ परमाणु बिजलीघर प्रबंधन को शिकायत दी, लेकिन विभागीय कार्रवाई नहीं हुई तो महिला डॉक्टर को थकहार कर उने खिलाफ रावतभाटा थाने में मानसिक प्रताड़ना का परिवाद देना पड़ गया.


गैर जिम्मेदारों के खिलाफ एक्शन लिए जाने की जरूरत
बताया जा रहा है कि इस मामलें उल्टा महिला डॉक्टर पर हे परिवाद लेने का दबाव बनाया जाएन लगा तो मजबूरन महिला डॉक्टर ने परमाणु बिजलीघर मुख्यालय में नौकरी छोड़ने के लिए वीआरएस यानी स्वेच्छिक सेवा निवृति के लिए आवेदन कर दिया. एनेस्थेटिक महिला डॉक्टर के ड्यूटी छोड़ने से अस्पताल में एक और नकारात्म प्रभाव ये पड़ा कि अस्पताल स्पेशलिस्ट सर्जन नकारा हो गए और अस्पताल में होने वाली कॉम्प्लिकेशन डिलेवरी अटक गई. अब सर्जरी डिलेवरी के मामलों में पहले से प्रसव पीड़ा से झूझ रही महिलाओं को भी कोटा रेफर किया जाने लगा.


ऐसे में परमाणु बिजलीघर अस्पताल की बिगड़ती चिकित्सा व्यवस्थाओं को देखते हुए उच्च अधिकारियों को जल्द से जल्द अव्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदारों के खिलाफ एक्शन लिए जाने की जरूरत है.

केस नंबर -1 परमाणु बिजलीघर के कर्मचारी सौरभ ने बताया कि उनकी गर्भवती पत्नी की सोनोग्राफी करवानी थी. सोनोलॉजिस्ट को ड्यूटी नही मिल रही. इस वजह से पत्नी को लेबर पेन के बीच 50 किलोमीटर दूर ले जाना पड़ा. बीच रास्ते में 5 से 10 किलोमीटर तक कदम- कदम पर दो से तीन फीट गड्ढे थे. ऐसे में पत्नी को कोटा ले जाना पीड़ादायक रहा.

केस नंबर-2 भारी पानी संयंत्र के कर्मचारी नीरज ने बताया की पेट में दर्द की वजह से डॉक्टर ने सोनोग्राफी करवाने को कहा. परमाणु बिजलीघर अस्पताल में सोनोग्राफी और सोनोलॉजिस्ट होने के बावजूद एक हफ्ते बाद की डेट दी. एक हफ्ते बाद गए तो पता चला सोनोलॉजिस्ट की ड्यूटी अभी तक शिफ्ट में लगा रखी है फिर आगे की डेट दे दी. अस्पताल अधीक्षक डॉक्टर डी सरकार से सोनोग्राफी रिशेड्यूल करवाने को कहा तो उन्होंने सीधा कोटा रैफर करने की बात कह दी. इस वजह से तकलीफ के बावजूद वे अब तक सोनोग्राफी नहीं करवा सके.

केस नंबर-3 परमाणु बिजलीघर के कर्मचारी के 14 साल के बेटे के पेट में तकलीफ हुई. काफी चक्कर काटने के बावजूद सोनोग्राफी की डेट नहीं मिल सकी क्योंकि सोनोग्राफी करने वाले डॉक्टर शिफ्ट में ड्यूटी दे रहे थे. परिजनों ने खूब मिन्नतें की और आखिर हताश होकर चले गए.


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केस नंबर-4 परमाणु बिजलीघर के सेवा निवृत कर्मचारी चेस्ट की तकलीफ की वजह से सोनोग्राफी करवाने के लिए लगातार अस्पताल के चक्कर काटते रहे, और डॉक्टर उन्हें कोटा रैफर करने की बात कहते रहे. रावतभाटा में अकेले रहने की वजह से कोई साथ जाने वाला नहीं था नतीजन सोनोग्राफी नही हो सकी और तकलीफ बढ़ती गई.


परमाणु बिजलीघर अस्पताल में रोजाना इस तरह के 8 से 10 मरीज अपनी पीड़ा लेकर सोनोग्राफी करवाने आते है, और निराश होकर लौट जाते है. बावजूद इसके न तो अस्पताल प्रबंधन ध्यान दे रहा है, और ना ही परमाणु बिजलीघर प्रबंधन.