चित्तौड़गढ़: अहाता ए नूर मे कव्वाल हज़रात बारी-बारी से अपना कलाम पेश कर रहे थे तो आस्ताना के बाहर महफिले मीलाद का दौर दौरा जारी था तो कही हुसैनी बैण्ड से तो कोई बैण्ड बाजो के साथ चादर पेश कर रहा था. हजारो की तादाद मे लोगो ने मिन्नत के धागे बांधे तो कई बच्चो को गुड, खोपरे, सुखे मेवे, फल से तोलकर मिन्नते उतारी. जगह-जगह पर लंगर तकसीम हो रहा था. मेला ग्राउण्ड मे 300 से उपर अस्थाई दुकाने लगी. औलिया मस्जिद, अहाता ए नूर मे नमाजियो की कतारे तो आस्ताना ए आलिया मे खामोशी से मुल्क मे अमनो सुकून और घरो मे रहमतो नूर की बारीश की दुआ के साथ ही चादर, फूल, ईत्र पेश करने का सिलसिला देर रात्री तक चला. ऐसे सुकून का माहोल था की बरबस यह शेर याद आ जाता है. ’’दीवाने की याद आई है, सांसो जरा आहिस्ता चलो ,धड़कनो से भी ईबादत मे खलल पड़ता है.’’


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हाईवे से लेकर स्टेशन तक जायरीन की रेलमपेल रही व गाड़ियो का जमावडा लगा रहा. दरगाह वक्फ कमेटी के सदस्य अब्दुल वहीद अंसारी, असलम शैख, हाजी अर्ब्दुरहमान मंसूरी, अशफाक तुर्किया, सैयद अख्तर अली, हाजी शरीफ मेवाती छाया, पानी के इंतजाम मे लगे रहे. दरगाह परिसर मे दरगाह कर्मचारी, स्वयं सेवक एवं 40 सिक्यूरिटि गार्ड के साथ ही पुलिस जाब्ता भी तैनात रहा.


रिपोर्टर- सुनिल सरकार