Mother`s Day Special : सरदारशहर के इन श्रवणकुमारों ने पेश की ऐसी मिसाल, कि हर मां कह रही- बेटे हो तो ऐसे
आज मदर्स डे है, हर कोई अपने अपने तरह से मां को याद कर रहा है, मां के सम्मान में इस दिन को सेलिब्रेट कर रहा है. लेकिन कहीं ना कहीं बदलते वक्त के साथ-साथ आज हमारी सोच में भी बदलाव आया है.
Mother's day: आज मदर्स डे है, हर कोई अपने अपने तरह से मां को याद कर रहा है, मां के सम्मान में इस दिन को सेलिब्रेट कर रहा है. लेकिन कहीं ना कहीं बदलते वक्त के साथ-साथ आज हमारी सोच में भी बदलाव आया है. सोशल मीडिया पर बेटे अपनी मां के साथ फोटो डालकर मदर्स डे की बधाइयां देते है लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर नजर आती है. मां बाप अपने बच्चों को हर खुशी देते हैं, उनका पालन-पोषण के साथ अच्छी शिक्षा देकर बच्चों को कामयाब बना कर खुश होते हैं, लेकिन वही बच्चे बूढ़े मां बाप को सहारा बनने से कतराते हैं. इसे समाज में बढ़ती कुरीति कहें या माता पिता और बच्चों के बीच रिश्तों की कमजोर होती डोर, लेकिन, इस तरह के मामलों के आंकड़े बूढ़े मां-बाप का दर्द बखूबी बयान कर रहे हैं.
आज के आधुनिक होते भारत की विडंबना यही है कि बूढ़े मां बाप का सहारा बनने वाले बच्चों की तादाद कम होती जा रही है. आज बच्चे अपने माता-पिता को एक बोझ की तरह देख रहे हैं. ऐसा बोझ जिसे वो ढोना नहीं चाहते. लेकिन मदर्स डे पर आज हम आपको सरदारशहर के श्रवण कुमारों से मिलाने जा रहे हैं जो इस कलयुग में अपनी माता की सेवा कर एक अलग उदाहरण पेश कर रहे हैं. यूं तो मदर्स डे पर हर किसी को अपनी माता याद आ जाती है और सोशल मीडिया के जरिए माताओं को शुभकामनाए देकर इस अवसर को सेलिब्रेट लोग कर लेते हैं,
और जब बात बूढे हो चुके मां बाप की सेवा करने की आती है तो हर कोई अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागते हैं, लेकिन सरदारशहर का झिकनाड़िया परिवार इस मामले अलग ही है. दरअसल झिकनाड़िया परिवार की 65 वर्षीय चंदादेवी पिछले 17 सालों से (पैरालाइज) लकवे का शिकार है. जिसके चलते वह चलने फिरने उठने बैठने में असमर्थ है, ऐसे में पिछले 17 सालों से लगातार उनके तीन बेटे उनकी दिन-रात सेवा कर रहे हैं, इनके दैनिक कामों से लेकर इनको तीर्थ यात्रा कराना हो या फिर घर पर ही भजन कीर्तन भागवत कथा इत्यादि करवानी हो हर धार्मिक कामों में जैसी भी चंदादेवी की इच्छा होती है उसी के अनुरूप उनके तीनों पुत्र काम करते हैं. इस सेवा के काम में उनकी तीनों पुत्र वधूए भी बखूबी अपना कर्तव्य निभा रही है.
17 सालों से चल फिरने में असमर्थ है चंदा देवी
सरदारशहर के गणेश नगर में रहने वाली 65 वर्षीय चंदा देवी ने बताया कि वे पिछले 17 सालों से चलने फिरने में असमर्थ हैं नहाने से लेकर हर काम उनके तीनों बेटे व उनकी पुत्र वधूए ही करती है. ऐसे में यह बताते बताते 65 वर्षीय चंदा देवी की आंखें भर आती है कि आज के समय में भी इस प्रकार से कोई संतान अपने माता की सेवा करता है क्या ? चंदा देवी ने बताया कि मेरे तीन बेटे हैं लक्ष्मीनारायण, सत्यनारायण ओर रामस्वरूप ओर तीन पुत्रवधु है उर्मिला देवी, मधु देवी व हेमलता देवी. हालांकि काम के सिलसिले में अब बड़ा बेटा सूरत में काम करता है जबकि दो छोटे बेटे हैं वह उनके पास ही रहकर उनकी सेवा कर रहे हैं ऐसे में वह अपने तीनों पुत्रों को पाकर बेहद खुश हैं.
नगरपालिका अध्यक्ष राजकरण चौधरी ने की तारीफ
नगरपालिका अध्यक्ष राज्य करण चौधरी ने बताया कि जिस प्रकार से आज के समय में पुत्र अपने माता पिता के साथ नेगेटिव व्यवहार करते हैं वही उसके विपरीत सरदारशहर का झिकनाड़िया परिवार एक आदर्श मिसाल पेश कर रहा है . इस परिवार से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं. भागदौड़ भरी जिंदगी में जिस प्रकार से हमारे जीवन मूल्य गिर रहे हैं उसके अनुसार यह परिवार आज हमें एक बड़ी सीख दे रहा है.
मैं भी एक बार चंदादेवी जी के घर गया था तब देखा था कि किस प्रकार से इनके तीनों पुत्र और पुत्र वधू अपनी माता की सेवा कर रही है यह वाकई में सराहनीय है. इसका हर बेटों को अनुसरण करना चाहिए. चौधरी ने आगे कहा कि जो मां हमें इस धरती पर लेकर आई, उस मां की हमें अंतिम सांस तक सेवा करनी चाहिए. इस प्रकार से मोहनलाल जी झिकनाड़िया परिवार तीन बटे तीन बहुए अपनी मां की सेवा कर रही हैं वह साधुवाद के पात्र है.
सभी करे अपने बूढ़े मां बाप की सेवा
चंदादेवी के सबसे छोटे पुत्र रामस्वरूप ने बताया कि मेरी माता के आशीर्वाद से हमारा सब काम हो रहा है. आज हम संपन्न है. मेरी माता को सबसे पहले 2001 में परेशानी हुई थी, हमने 2001 से लेकर 2005 तक देश के सभी हॉस्पिटलों में इनका इलाज करवाया, लेकिन मेरी मौत सही नहीं हो पाई आखिरकार 2005 में डॉक्टरों ने कहा कि अगर ऑपरेशन करवाओगे तो आपकी मां जिंदा नहीं बचेगी इसलिए इसी अवस्था में रहने दो, उसके बाद मेरी मां कभी सही हो ही नहीं पाई, उनको नहलाना, खाना खिलाना, उठाना-बिठाना सब काम हमें ही करना पड़ता है.
उनके दोनों हाथ पैर काम नही करते हैं,लेकिन हम उनकी सेवा कर के खुश हैं और यह उम्मीद करते हैं कि हमारे सिर पर हमारी माता का यूं ही साया बना रहे. हमारी मां की सेवा कर हमारा पूरा परिवार खुश है और मैं यह सभी से उम्मीद करता हूं कि जिस प्रकार से हमारा परिवार हमारी मां की सेवा कर रहा हैं उसी प्रकार से सभी को अपनी बूढ़ी मां बाप की सेवा करनी चाहिए.
सामाजिक कार्यकर्ता मोनिका सैनी ने बताया
मां जो शब्द है उसकी व्याख्या नही की जा सकती. हम मा के बारे में कितना ही लिख ले, हम उसे पूर्ण नही कर सकते हैं. मा सब्द एक भावना होता है एक अहसास होता है जो सिर्फ महसूस किया जा सकता हैं. मां-बाप बच्चों के लिए अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान करके रख देते हैं. लेकिन अकसर बच्चों की ओर से वो एफर्ट नहीं नजर आता. लेकिन आज भी कई ऐसे बच्चे हैं जिन्हें कल्युग का श्रवण कुमार भी कहा जाए, तो भी कुछ गलत नहीं होगा, ऐसा ही झिकनाड़िया परिवार है. चंदा देवी के तीन ओर पुत्र वधुए जिस प्रकार से अपनी मां की सेवा कर रहे हैं वह बड़ी बात है सही मायने में उनके लिए हर दिन मदर्स डे है.
वहीं परिवार की पुत्र वधू मधुदेवी ने बताया कि मेरी शादी को 13 साल हो गए हैं जब से शादी करके आयी हु तभी से मैंने अपनी सास को इसी अवस्था में देखा है, मेरी शादी से पहले मेरी जेठानी हमारी सास की सेवा करती थी उसके बाद मैंने शुरू कर दी, अब मेरी देवरानी भी सेवा कर रही है. हमने कभी अपनी मां और सास में फर्क महसूस नहीं किया, हमें हमारी सास की सेवा करके बहुत खुशी महसूस होती है. परिवार की सबसे छोटी बहू हेमलता ने बताया कि हम सभी मिलजुल कर हमारी सास की सेवा करते हैं उन्हें समय पर खाना खिलाना नेहलाना सहित सभी दैनिक काम हम मिल जुल कर करते हैं हमारी सास भी हमें हमारी बेटियों की तरह ही मानती है.
वाकई में जहां आज एक और इस प्रकार की खबरें हर दिन सुनने को मिलती है की मां बाप को वृद्धाश्रम में भेज दिया, घर से निकाल दिया. वहीं दूसरी ओर सरदारशहर का झिकनाड़िया परिवार एक अलग लकीर खींच रहा है और सभी के सामने यह उदाहरण पेश कर रहा है कि हमारे मां बाप से बढ़कर और कुछ नहीं होता. हर किसी को इस परिवार से सीख लेने की आज आवश्यकता है. इसमें एक बात गौर करने वाली यही भी है कि जो आज हम कर रहे हैं वही कल हमारे बच्चे हमारे साथ करेंगे. ऐसे में जिस प्रकार का व्यवहार आज हम हमारे मां-बाप के साथ कर रहे हैं कल वही व्यवहार हमारे बच्चे हमारे साथ रखेंगे. ऐसे में सभी को वृद्ध मां-बाप का सहारा बनना चाहिए.