लोगों ने दिए ताने..नहीं मानी हार, दोनों हाथ गंवाने के बाद भी छीनी `सरकारी सफलता` दिव्यांग ने लोगों के मुंह पर जड़े ताले
Motivation Story: लोगों ने राजस्थान की लड़की को खूब ताने दिए लेकिन उसने हार नहीं मानी. दोनों हाथ गंवाने के बाद भी दिव्यांग ने मेहनत कर सफलता पाई.
सरदारशहर, चूरू: समस्याएं किसके सामने नहीं आती, लेकिन इन समस्याओं में कोई निखर जाता है तो कोई बिखर जाता है. ऐसी ही एक कहानी बताते हैं जिसे जानकर हर युवा प्रेरित हो सकता है. आज के समय में आए दिन खबरें आती है छोटी-छोटी समस्याओं से परेशान होकर अवसाद में आकर युवा मौत को गले लगा रहे हैं.
आए दिन अखबारों टीवी चैनलों में देखने सुनने को मिलता है कि बड़े बड़े शिक्षण संस्थान, कोचिंग संस्थानों में पढ़ रहे छात्र जरा सी परेशानी में आते ही जिंदगी की जंग हार कर आत्महत्या जैसा पाप कर बैठते हैं, ऐसे नौजवानों के लिए उम्मीद की किरण है छोटे से गांव की दिव्यांग कमला मेघवाल. कमला के सामने पहाड़ जैसी चुनौती थी लेकिन उसने अपने संघर्ष की डोरी को पकड़े रखा और कभी भी हिम्मत नहीं हारी और आज वह हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई.
साधारण सी कमला आखिर क्यों बन गई इतनी खास
दरअसल गांव अमरसर की रहने वाली 25 साल की दोनों हाथों से दिव्यांग कमला मेघवाल की संघर्ष की एक लंबी कहानी है. जिसे सुनकर हर किसी को अपनी समस्याएं छोटी लगेगी. कमला जब आठवीं क्लास में पढ़ रही थी तब एक हादसे ने कमला की खुशियां ही छीन ली, ऐसे में कोई और होता तो शायद वह बिखर जाता लेकिन कमला ने अपने आप को संभाले रखा, हादसे में अपने दोनों हाथ गंवाने वाली कमला ने कभी भी अपने आप को टूटने नहीं दिया और संघर्ष के उस लंबे पड़ाव को पार करते हुए आज कमला ने जो अपने लिए सपना देखा उसे पूरा करते हुए सरकारी अध्यापिका बन गई, कमला का तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती में चयन हो गया है.
हादसे में कभी नहीं भरने वाले मिले जख्म
14 अप्रैल 2009 को हुए एक हादसे ने कमला की पूरी जिंदगी बदल दी. कमला बताती हैं कि उस समय मै आठवीं क्लास में पढ़ती थी, उस दिन जब में छुट्टी के बाद स्कूल से घर आ रही थी उस दौरान रास्ते में 11 हजार केवी की बिजली की लाईन के तार बहुत नीचे झूल रहे थे उस वक्त मेरे हाथ तारों के लगने से दोनों हाथ खत्म हो गए.
कमला को यूं मिली प्रेरणा
अपने दोनों हाथ हादसे में खोने वाली कमला को यूं तो कमल के माता पिता और भाई ने कदम कदम पर साथ दिया. विशेष रूप से कमला के भाई ने कमला का हर जगह हौंसला बनाए रखा. कमला मेघवाल हादसे के दो वर्ष तक अपने घर पर ही रही. एक दिन जब कमला टीवी देख रही थी तो टीवी में दिखाया गया की उतरप्रदेश का एक युवक हाथों के बिना ही है कुछ कागज पर लिख रहा हैं.
इसके बाद कमला बताती है कि मेरे माता-पिता सहित बड़े भाई जगदीश ने कहा कि आप ही यूं पढाई-लिखाई कर सकती हो अभ्यास करो बेटा हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, तब से ही मैने हाथ में रस्सी से पैन बांधकर अभ्यास करना शुरू किया तो मेरा हौसला बुलंद होता गया. इसके बाद सन 2012 में कक्षा 10 वीं की मैने प्राइवेट परीक्षा दी. इस दौरान मेरे 60 प्रतिशत अंक हासिल करते हुए सफलता हासिल कर ली.
लोग देते थे ताने क्या करेगी पढ़ लिख कर
कमला ने जब संघर्ष का रास्ता चुना तो ऐसा नहीं है कमला को सफलता एकदम से मिल गई. कमला के सामने अनेकों चुनौतियां आई लेकिन कमला ने हर बाधा को पार किया. कमला ने बताया कि मैने पढ़ाई शुरू की तो कुछ लोग मुझे ताने दे देते थे कि यह अब पढाई करके क्या करेगी, सही हाथ वालों को भी नौकरी नहीं मिलती है, इसको कैसे नौकरी मिलेगी.
मेरे पास में बैठने से भी मेरे साथी विद्यार्थी कतराते थे. उस समय बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा. कक्षा-11,12 मेंने हमारे पैतृक गांव गोगासर में पढ़ाई की थी, इस गांव में अब मेरे दादा-दादी सहित कुछ परिवार के लोग रहते है. सरदारशहर मितल कॉलेज से बीए की उसके बाद बीकानेर जिले की नाल से बीएसटी की पढ़ाई की, अभी वर्तमान में मितल कॉलेज से एमए प्रथम वर्ष की पढ़ाई चल रही है.
विश्वास था में बनूंगी शिक्षिका
कमला मेघवाल का बचपन से सपना था शिक्षिका बनने का, लेकिन हादसे ने कमला को अंदर तक तोड़ दिया. पर जब दिव्यांग कमला ने फिर से वही शिक्षिका बनने का सपना देखा तो उस सपने को पाने के लिए कमला ने दिन-रात मेहनत शुरू कर दी. कमला ने बताया कि मेरे को मेरी मेहनत पर पूरा भरोसा था, जब भी तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती का रिजेल्ट आयेगा उस वक्त मेरा 100 प्रतिशत चयन होगा और हुआ भी यही.
सफलता पाने के लिए मैंने दो वर्ष तक सीकर में रहकर पढ़ाई की, इस दौरान में 15 से 18 घंटे तक पढ़ती, रात को नौटस तैयार करती थी ताकि मेरी लिखाई का अभ्यास यूं ही जारी रहे. इससे पहले मैने 2021 में पेपर दिया था उस वक्त बहुत कम अंक से मैं असफल रही. उस दौरान ही मैने सोच लिया था कि अबकि बार जब ही शिक्षक भर्ती होगी उसमें मेरे को 100 प्रतिशत फसलता हासिल होगी. कमला अपनी सफलता का श्रेय अपने माता -पिता,भाई सहित गुरूजनों को देती हैं..
कमला सहित पांच भाई बहिन है,कमला सबसे छोटी है
कमला मेघवाल दलित समाज से आती है, कमला के पिता वह भाई खेती-बाड़ी कर किसी तरह अपना जीवन यापन करते हैं. कमला की माता भंवरीदेवी, पिता भभूताराम मेघवाल ने बताया कि बेटी को सफलता मिलने के बाद अब कुछ मेरी चिंता दूर हुई है. खुशी इस बात की है की बेटी की मेहनत आखिर कार रंग लाई और बेटी का शिक्षक भर्ती में चयन हो गया. पहले लोग कहते थे कि यह नौकरी कैसे लग सकती है लेकिन मेरी बेटी ने सभी को गलत साबित किया हैं.
कमला की माता ने बताया कि मेरे तीन बेटियां व एक बेटा है. कमला सबसे छोटी बेटी है. बड़ी बेटी का नाम दुर्गा, मैना, रेणु, बेटे का जगदीश नाम है. दो बेटी अनपढ़ है जबकि रेणु व जगदीश ने कक्षा 8 वीं तक पढ़ाई की थी. कमला की सफलता के पीछे जगदीश की बहुत ज्यादा मेहनत है. यहीं इनको परीक्षाओं में पेपर दिलाना सहित हर कमला का हर छोटा बड़ा काम करता था.
बच्चों को देती है मेहनत करने की सीख
छोटे से गांव अमरसर में रहने वाली कमला बिना हाथों के ही पढ़ाई लिखाई के साथ साथ घर का काम भी करती हैं. कमला घर में सब्जी बनाना, झाडू निकालना, पानी भरना सहित घर का कार्य भी कर लेती है.
शहर से काफी दूर गांव होने के चलते कमला के गांव के सरकारी विद्यालय में शिक्षकों की भी हमेशा कमी रहती है ऐसे में स्कूलों में शिक्षक नहीं होने के चलते घर के बच्चों को कमला पढ़ाती है. कमला ने बताया कि जो भी व्यक्ति अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगन से मेहनत करे तो सफलता खुद आपके पास चलकर आएगी, लेकिन जो आपको जिम्मेदारी के साथ काम करना है उसमें किसी प्रकार की लापर्रवाही नहीं करें.
पंचायत समिति सदस्य इन्द्रसिंह शेखावत ने बताया कि जहां हम छोटी-छोटी परेशानियों में निराश और हताश हो जाते हैं, वहीं हमारी पंचायत की कमला मेघवाल ने हमारी पंचायती ही नहीं पूरे राजस्थान का नाम रोशन किया है, कमला युवाओं के साथ-साथ हमारे लिए भी प्रेरणा स्रोत बनी है, डॉक्टर रिजवाना खान ने बताया कि पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों में उड़ान होती है, और यह कर दिखाया है कमला मेघवाल ने, कमला मेघवाल ने हमें सिखा दिया कि कोई भी परेशानी बड़ी नहीं होती अगर किसी भी समस्या का डटकर मुकाबला किया जाए तो एक दिन सफलता अवश्य मिलती है.
सरदारशहर के शिवचंद साहू और समाजसेवी रमेश सोनी ने कहा कि इंसान छोटी सी परेशानी में भगवान और किस्मत को कोसता है, लेकिन कमला मेघवाल को देखकर हमें बहुत कुछ सीखने का और आगे बढ़ने का हौसला मिला है. कमला उन दिव्यांगों के लिए एक उम्मीद की किरण बनी है जो घरों में निराश बैठे हैं.
कमला उन लोगों के लिए एक नई रोशनी है जो छोटी-छोटी समस्याओं से परेशान हो जाते हैं. कमला आज हमें सीख देती है की कोई भी समस्या बड़ी नहीं होती बस आप हौसला बनाए रखें सफलता आपके कदम चूमेगी.
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