Dausa: दौसा जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर की दूरी पर nh21 पर निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज में गुरुवार को हुए हादसे में घायल मजदूरों ने जयपुर में उपचार के दौरान दम तोड़ दिया. जैसे ही उनकी मौत की खबर उनके अन्य साथियों को मिली तो वह गमजदा हो गए. कल से वह अपने दो साथियों की मौत के गम में भूखे प्यासे बैठे हुए हैं लेकिन किसी भी पुलिस प्रशासन के अधिकारियों ने उनकी सुध नहीं ली.


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मजदूर काम में नहीं लेते सुरक्षा उपकरण


यहां तक की कंपनी के कार्मिक भी उनसे दूरी बनाए हुए हैं हालांकि कंपनी के लाइजनर मैनेजर अजय शर्मा का कहना है काम के दौरान सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखा जाता है लेकिन फिर भी जो घटना हुई है वह दुर्भाग्यपूर्ण है. मजदूरों का कहना है कि उन्हें काम के दौरान कोई भी सुरक्षा के उपकरण नहीं दिए हुए हैं. जबकि कंपनी के कार्मिकों का कहना है कि उन्हें सभी उपकरण मुहैया करवाए हुए हैं लेकिन वह काम में नहीं लेते .


जब मौके पर पहुंचकर मृतकों के अन्य साथियों से बात की तो उनका कहना था दोनों मजदूरों को हाइड्रो क्रेन के ट्रॉली बांधकर करीब 40 से 50 फीट की ऊंचाई पर चढ़ाया गया. जहां वह दीवार पर पुट्टी करने का काम कर रहे थे. हाइड्रो पर लगी ट्रॉली अचानक टूट कर नीचे गिर गई इसके चलते दोनों मजदूर घायल हो गए. जिन्हें जिला अस्पताल पहुंचाया गया. जहां से प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें जयपुर रेफर किया गया.


बिहार के थे दोनों मृतक


जयपुर में उन्होंने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया जब मीडिया में खबर चली तो पुलिस को घटना की जानकारी मिली. घटना के करीब 15 घंटे बाद दौसा सदर थाना पुलिस ने मौके पर पहुंचकर मजदूरों से घटना की जानकारी ली तो वहीं मृतक मजदूरों के परिजनों को भी सूचना दी गई है. जिनके आने के बाद मृतकों का पोस्टमार्टम हो सकेगा. मृतक मुकेश और चंदन दोनों ही बिहार के रहने वाले हैं


14 हेक्टेयर जमीन में 325 करोड़ रुपए की लागत से निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज में इस तरह का हादसा होना कहीं न कहीं बिल्डर की लापरवाही दर्शाता है हालांकि कंपनी के लाइजनर मैनेजर अजय शर्मा का कहना है कि कंपनी द्वारा मजदूरों के काम के दौरान सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखा जाता है. जो सुरक्षा के लिए उपकरण दिए जाते हैं वह मजदूर काम में नहीं लेते. मोबाइल कंपनी के कार्मिक हादसे के बाद बेशक कोई भी दलील दे रहे हो लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन 2 मजदूरों की मौत का जिम्मेदार कौन है. सैकड़ों किलोमीटर दूर से चलकर यहां मजदूर अपने परिवार के पालन पोषण के लिए मजदूरी कर रहे थे. ऐसे में फिर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि इन मजदूरों की मौत के बाद इन के परिवारों की जिम्मेदारी का बोझ कौन उठाएगा


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