Dausa News: आवारा पशुओं का आतंक बना सिरदर्द, बढ़ रही दुर्घटनाएं, जिम्मेदार बने लापरवाह
दौसा जिले में आवारा पशुओं का आतंक इतना है कि अब लोग इन से भयभीत होने लगे हैं. पिछले दिनों दौसा जिले के छोकरवाड़ा गांव में गंगू राम सैनी नाम के किसान पर हमला कर मौत के घाट उतार दिया था.
Dausa: राजस्थान के दौसा जिले में आवारा पशुओं का आतंक इतना है कि अब लोग इन से भयभीत होने लगे हैं. पिछले दिनों दौसा जिले के छोकरवाड़ा गांव में गंगू राम सैनी नाम के किसान पर हमला कर मौत के घाट उतार दिया था. वहीं गंगू राम को बचाने के लिए दौड़े करीब आधा दर्जन लोगों को भी सांड ने जख्मी कर दिया था जिनका अस्पताल में उपचार करवाया गया.
आवारा पशुओं के आतंक की समस्या जिले के गांव और ढाणियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि शहरों और कस्बों की भी अमूमन यही हालत है. दौसा जिला मुख्यालय की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई मार्ग हो जहां पर आवारा पशुओं का जमावड़ा नहीं रहता हो, यहां तक की गली मोहल्लों में भी आवारा पशु विचरण करते हैं. वहीं जिले के लालसोट, बांदीकुई, सिकराय और महुआ उपखंड क्षेत्रों की बात करें तो यहां भी आवारा पशु बहुतायत में है जो आए दिन राह चलते लोगों पर हमला करते हैं या फिर आवारा सांड आपस में लड़ते हुए दिखाई देते हैं जिसके चलते उन रास्तों से गुजरने वाले लोग हादसों का शिकार हो जाते हैं.
दौसा जिले में आवारा पशुओं के जमावड़े की समस्या कोई नई नहीं है यह पिछले लंबे समय से चली आ रही है और अब तक इन आवारा पशुओं ने जिले में दर्जनों लोगों को जख्मी किया है. वहीं कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया लेकिन सिस्टम है आंखें मूंदे बैठा हुआ है. ऐसा नहीं है कि जिम्मेदार लोगों को इन आवारा पशुओं के जमावड़े का पता नहीं हो जिले के अधिकारी हो या जनप्रतिनिधि वह भी इन रास्तों से लग्जरी कारों में बैठे कर गुजरते हैं लेकिन उन्हें आवारा पशुओं का जमावड़ा रास्तों पर दिखाई नहीं देता.
शहरों में आवारा पशुओं को पकड़ कर नंदी शाला या गौशाला में पहुंचाने का जिम्मा नगर निकायों का है. वहीं ग्रामीण क्षेत्र में पंचायत समिति या ग्राम पंचायत प्रशासन का है लेकिन वह सभी अपनी जिम्मेदारियों से विमुख हैं. आवारा पशु आए दिन लोगों को जिले में जख्मी कर रहे हैं या मौत के घाट उतार रहे हैं लेकिन जिम्मेदारों को इसकी कोई परवाह नहीं लोग बेवजह काल के आगोश में समा रहे हैं. मौत की नींद सो रहे हैं फिर भी जिम्मेदारों के जूं तक नहीं रेंग रही है.
सूत्रों की मानें तो प्रतिवर्ष नगर निकायों द्वारा आवारा पशुओं को पकड़ने के टेंडर भी किए जाते हैं ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि अगर आवारा पशुओं को पकड़ने के टेंडर किए जाते हैं तो निकायों द्वारा संबंधित ठेकेदार को लाखों रुपये का भुगतान भी किया जाता होगा फिर क्या यह खेल कागजों में ही दौड़ रहा है या धरातल पर भी आता है यह जांच का बड़ा विषय है.
फिलहाल आवारा पशुओं के आतंक से कब किसकी जान चली जाए कोई पता नहीं, कब कौन किस रास्ते से गुजरते समय इन आवारा सांडों की चपेट में आ जाए और वह हमेशा हमेशा के लिए उसे दुनिया से अलविदा कह दें, जिले के लोग लंबे समय से आवारा पशुओं को शहर कस्बों से बाहर निकालने की मांग उठाते आए हैं लेकिन इस ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया जिसके चलते शहर के लोगों को आवारा पशुओं से बचाया जा सके.
Reporter: Laxmi Sharma
यह भी पढ़ें -
अपने जिले की खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें