273 वर्षो पुराना हेला ख्याल दंगल शुरू, लालसोट में जुटे राज्यों भर के गायक, शुरू होगा सुरों का महासंग्राम
lalsot hela khayal dangal: हेला ख्याल दंगलों में अपनी अनूठी गायन शैली तथा लोक गायकी की विविध विधाओं के अनूठे प्रदर्शन के लिए दौसा के लालसोट की जमीन सज चुकी है, जहां राज्यों भर के गायक एक साथ सुरों के संग्राम को करते हुए गायकी का हुनर दिखाएंगें.
lalsot hela khayal dangal: हेला ख्याल दंगलों में अपनी अनूठी गायन शैली तथा लोक गायकी की विविध विधाओं के अनूठे प्रदर्शन के लालसोट का हेला ख्याल संगीत दंगल लोक गायकी का अनूठा संगम स्थल बना हुआ है. लोक गायकी में विशिष्टता के कारण 273 वर्षो से लगातार चला आ रहा यह दंगल राष्ट्रीय स्तर पर लालसोट की पहचान बन चुका है.
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शुक्रवार को गणगौर के पर्व की मध्य रात्री को स्थानीय गायक मंडलियों के जरिए भवानी पूजन कर दंगल की औपचारिक शुरुआत की . वहीं बूढ़ी गणगौर 25 मार्च को सवारी निकलने के बाद रात दस बजे से दंगल 36 घंटे तक लगातार चलेगा तथा 27 मार्च की सुबह समाप्त होगा.दंगल समिति के अध्यक्ष रवि हाडा सहित समिति के सदस्य दंगल की सफलता सुनिश्चित करने के काम में लगे हुए है.
273 वर्षो से गणगौर के पर्व पर आयोजित इस संगीत दंगल में हेला ख्याल गायकी ने अनेक करवटे बदलते हुए विविध प्रकार की लोक विधाओं को जन्म दिया तथा सैकड़ों वर्षो से इस पड़ाव में आधुनिक सभ्यता व संस्कृति के बदलते आयामों के बावजूद अपने अस्तिव को बचाए रखकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान कायम करते हुए ख्याती भी अर्जित की .
सांस्कृतिक धरोहर
यह संगीत दंगल सवाई माधोपुर,दौसा,जयपुर तथा टोंक व करौली जिले की सांस्कृतिक धरोहर ही नही अपितु हाड़ोती व ढूंढाडी संस्कृति के संगम के रूप में विख्यात है.
विभिन्न प्रांतों में बसे प्रवासी दंगल में लेते हैं भाग
गणगौर की रात को भवानी पूजन के साथ प्रारम्भ होने वाले तथा बूढ़ी गणगौर की रात से लगातार 36 घंटे तक चलने वाले इस हेला ख्याल दंगल को सुनने के लिए मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़,गुजरात,आन्धप्रदेश कर्नाटक सहित देश के विभिन्न प्रांतों में बसे प्रवासी राजस्थानी समाज के लोग दंगल शुरू होने से पूर्व ही आने लग जाते है.
रजवाड़ा काल में तेल की मशालों की रोशनी में होता था दंगल
रजवाड़ा काल में यह हेला ख्याल संगीत दंगल तेल की मशालों के बीच होता था. इसके लिए तत्कालीन रजवाड़ों द्वारा तेल उपलब्ध कराया जाता था. मशालची तैनात रहते थे. मीठे तेल की जलती मशालों के बीच इस दंगल में लोक गायक अपनी काव्य रचना की बेहतरीन प्रस्तुति देते थे. झरंडे चौक पर दंगल में गायक दल अपनी बेबाक प्रस्तुति दे कर लोगों को मंत्र मुग्ध करते थे.
ज्यों ज्यों समय बीता रजवाड़े समाप्त होते गए. उसके बाद दंगल आयोजन की जिम्मेदारी स्थानीय जनता के हाथो में आ गई. पहले दंगल का आयोजन झरण्डे चौक पर हुआ करता था. कालान्तर में फैलती ख्याती व बढ़ते श्रोताओं की संख्या के कारण 1961 से यह दंगल लालसोट के जवाहर गंज सर्किल पर आयोजित होने लगा.
गायक मंड़लों की बढ़ी तादाद
पहले इस दंगल में तीन बास (खोहरापाडा, जोशीपाडा, तंबाकूपाडा)व चार बास (उपरलापाडा,लांबापाडा,गुर्जर घाटा,पुरोहितपाडा)की गायक मंडलियां भाग लेती थी मगर फैलती ख्याती व बढ़ते स्वरूप में कारण आज इनकी संख्या भी 15से20 के करीब हो गई है.
तुर्रा तलंगी से रचनाओं ने लिया राजनीतिक पुट
उस वक्त दंगल में पौराणिक कथाओं ज्ञान विज्ञान,माया तथा भ्रम व गुढ़ रहस्य की चर्चाए संगीत के माध्यम से हुआ करती थी. वही तुर्रा व कंलगी के गीत भी काफी मशहुर हुआ करते थे. लेकिन समय के साथ साथ गायन शैली में भी परिवर्तन होता गया आज दंगल में गायक दलों द्वारा वर्तमान में घटित राजनितिक व सामाजिक बदलाव पर टिप्पणी की जाती है. जिससे श्रोता काफी तन मन्यता से सुनता है. बदलते स्वरूप के कारण अब दंगल में राजनैतिक क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन के मुददों पर ही गायक मंडलियों का रूझान बना हुआ है. धार्मिक मुददे लगभग गौण होते जा रहे है.
इस दंगल में तकरीबन 30 से 40 हजार श्रौता भाग लेते है. तथा गायक मंडलियों द्वारा पेश की जाने वाली देश भक्ति,देश के राजनैतिक क्षेत्र में आ रही गिरावट,नैतिक मूल्यों के हो रहे पतन सहित भ्रष्टाचार ,आंतकवाद व अन्य सामाजिक व राजनैतिक मुददों पर गायक दंगल संगीतमय रचना प्रस्तुत करते है.
गायन संख्या और वांद्य यंत्र
20 गायक मंडलियां भाग लेती है. प्रत्येक गायक दल में 40 से 50 गायक कलाकार भाग लेते है. तथा गायकी में वाद्ययंत्र बाजा ढप, घेरे, मंजीरा, ढोलक, खरताल, पूंगी, ढ़ोल,चंड चिमटा सहित अनेक पुरातन वांद्य यंत्रो का स्तेमाल होता है.
दंगल ने दिया समरसता व देश रक्षा का संदेश
हेला ख्याल संगीत दंगल न केवल लोगो का मनोरंजन करता है बल्की ग्रामीण कलाकारों के मंडलों द्वारा समय समय पर अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक समरसता व देश रक्षा के बारें में भी संदेश दिया है. लोक कवि स्व. हजारी लाल ग्रामीण द्वारा दंगल में सुनाई गई रचना गणगौर को पूजै वर हीत कन्या कुंआरी, चुड़ला हेतु सुवागण नारी देश हित पूजै दास हजारी, वहीं आई रे गणगौर वहीं सन 1962 में चीन आक्रमण के समय देश के जवानों का उत्साह बढ़ाने में भी गायक दल पीछे नहीं रहे.
उसकी कड़ी इस प्रकार है - हिमालय चाहे तो झुक जाए,सागर सीमा से डिग जाए, दिशाएं इधर -उधर हो जाएं,दिग्पालों की सीमा टूटे नही,हमारी भारत भूमि हमको प्यारी,हजारी बार बार बलिहारी, . देश में समता का नारा भी इस दंगल ने दिया है. संत विनोबा ने प्रेम संदेश तुम तक पहुंचाई,बण ज्याएगा रण का न्यौता जो तलवार उठाई दे दो धनवानों ऐ सरदारों, हक दे आज गरीबों का ,नहीं तो कलयुग में महाभारत होगा दीनों और गरीबों का.
बेलखणो दांत तड़ावै,भौंदू फक्कड़ फूल्या खावै ल्याओं से काकड़ी चोर आई आई रे गणगौर: गणगौर पर गाई गई रचना चढ़ डागलिए बिन ढोला की गौर,काठ की जा रही छी गणगौर,लाल-गुलाबी औढ़ छै औढणी माथा पर सोहे बोर, दौ भंवरा बीच बिंदली चमक घोला दांत कठोर जा रही छी गणगौर. सज धज कर खड़ा बुर्ज के उपर मंद-मंद मुस्काओं बताओं की कुण की छै गणगौर कोई छेडक़र पिट जावें बेलखणो दांत तड़ावै,भौंदू फक्कड़ फूल्या खावै ल्याओं से काकड़ी चोर आई आई रे गणगौर. जैसी रचनाएं सदाबार बनी हुई है.
प्रसिद्घ हेला ख्याल गायक
दंगल को पोषित करने में क्षेत्रीय जनता,स्थानीय गीतकारो व स्थानीय गीतकार स्व.गोपीलाल जोशी,प्यारेलाल जोशी,श्रीनारायण, गैंदालाल कारीगर,मुथरेश जोशी,कल्याण प्रसाद मिश्र,रोशन तेली, मातादीन जोशी, कालीचरण,पं.देवकीनंदन,हुकमचंद,राधारमण,रामप्रताप, देवीसिंह चौधरी,रामबिलास शर्मा पूर्व प्रधानाध्यापक , जैसे कवियों का योगदान रहा है. मगर लोक कवि हजारी लाल ग्रामीण द्वारा दंगल को पौषित करने में जो योगगदान दिया है वो लोगो की जबान पर उनके निधन के बाद भी चढ़ा हुआ है.
दंगल के प्रसार में प्रमुख भूमिका: वहीं पूर्व विधायक स्व.प्रभूलाल पुरोहित , प.नृसिंह प्रसाद बोहरा,पूर्व प्रधान स्व.रामरूप मिश्र, चेयरमैन स्व. रामप्रसाद मिश्र, प्रमुख उद्यौगपति स्व. रामकरण जोशी, पूर्व चेयरमैन राजेंद्र प्रसाद बैनाड़ा,गोविंदनारायण झालानी,हरिनारायण घमडिया, रामेश्वर प्रसाद आसीका, व्यापार मंडल के पूर्व अध्यक्ष केसर लाल वैद, प्रेम शंकर आलोक,पूनम चंद भिंवाल ,स्व.कैलाश पुरोहित,पांचूराम सैनी,बाबा कपील दास ,राजेन्द्र पांखला,स्वर्गीय वैद्य ताराचन्द्र जैन, शिवशंकर जोशी, शंकर लाल शर्मा जमात, महेश सोनी, रतनलाल जैन, चांदमल जैन, पुरषोत्तम जोशी,रामगोपाल आसीका,श्याम लाल जांगि़ड, घनश्याम आलूदिया, लल्लूप्रसाद जांगिड़,राजेंद्र कुमार पांखला, नन्दकुमार पांखला, ,कैलास पुराका, रामजीलाल मोडल्या,अनिल बैनाडा, इतिहासकार ब्रजमोहन द्विवेदी, रामेश्वरप्रसाद ककराला, स्व.कैलास प्रसाद पुरोहित,स्व. प्रहलाद पुरोहित, स्वर्गीय सत्यनारायण पुरोहित, पांचूराम जमादार, गोकुलप्रसाद माली,जगदीश प्रसाद एमडी, जैसे अनेको लोगों ने दंगल के विस्तार व प्रसार में प्रमुख भूमिका का निर्वाह किया है.
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