Dholpur News: कौमी एकता की मिसाल माने जाने वाले इस मेले में तीर्थराज मचकुंड के साथ पहाड़ वाले अब्दाल शाह बाबा का उर्स भी आयोजित होता है, जिसमे उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के आस-पास के क्षेत्रों से जायरीन भाग लेते है. ऋषि पंचमी के मौके पर शुरू होने वाले दो दिन के लक्खी मेले में बड़ी संख्या में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन की और से भी खास इंतजामात किए गए है. 


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पुलिस प्रशासन की ओर से इस बार तकरीबन चार सौ पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है. साथ ही प्रशासन ने भी सौ से अधिक कर्मचारी मेला में लगाए हैं, जो दो दिन-रात लगातार मेले की सुरक्षा में मौजूद रहेंगे.


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मचकुंड रोड पर ही पहाड़ वाले बाबा की दरगाह है. यह दरगाह हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों की श्रद्धा का केन्द्र है. हर गुरुवार को यहां बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं. यहां सालाना उर्स पर आगरा, ग्वालियर, झांसी, मथुरा, दिल्ली आदि स्थानों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आकर दरगाह पर शीश नवाते हैं. 


सभी तीर्थो का भांजा कहे जाने वाले मुचकुन्द के लक्खी मेले में लाखों श्रद्धालुओं ने आज डुबकी लगाकर पुण्य लाभ प्राप्त किया. साथ ही बड़ी संख्या में नव युगल परिवार संग मेला में पहुंचे और शादी-ब्याह की कलंगी और मौहरी का सरोवर विसर्जन कर उनके जीवन की मंगलकामना की.
 
देवछठ के मौके पर लगने वाले मुचकुन्द के लक्खी मेले कि मान्यता है कि देवासुर संग्राम के बाद जब राक्षस कालयवन के अत्याचार बढ़ने लगे तब लीलाधर श्रीकृष्ण ने कालयवन को युद्ध के लिए ललकारा. इस युद्ध में लीलाधर को भी हार का मुंह देखना पड़ा तब लीलाधर ने छल से मुचकुन्द महाराज के जरिए कालयवन का वध कराया था. इसके बाद कालयवन के अत्याचारों से पीड़ित ब्रजवासियों में खुशी कि लहर दोड़ गई, जिसके बाद से ही आज तक मुचकुन्द महाराज कि तपोभूमि मुचकुन्द में सभी लोग देवछठ के मौके स्नान करते आ रहे है. जहां इन नवविवाहित जोड़ों के सहरे की कलंगी को सरोवर में विसर्जित कर उनके जीवन की मंगलकामना की जाती है.


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मान्यताओं के अनुसार, जब देवों और असुरों के बीच युद्घ हो रहा था, तब युद्घ मे लड़ते हुए महाराज मचकुंड थक चुके थे तो उन्होंने भगवान इन्द्र से आराम करने की जगह मांगी तब इन्द्र ने उन्हें धोलागढ़ स्थित अरावली की पर्वत श्रृंखला में एक गुफा बताई. यहां मचकुंड महाराज को आराम करने भेज दिया. आराम करने साथ उन्हें एक वरदान भी दिया गया था कि जो भी उनकी नींद में खलल डालेगा वो उनकी नेत्र ज्योति से भष्म हो जाएगा. तब मचकुंड महाराज थक कर गुफा मे सोने चले गए.


उधर चल रहे देवासुर संग्राम मे देवता जब असुरो  से युद्ध हारने लगे, तब उन्होंने प्रभु श्री कृष्ण की शरण ली, जहां श्री कृष्ण देवताओं को बचाने युद्ध मेम कूद पड़े. जहां कालयवन राक्षस से युद्घ लड़ते-लड़ते वे उस गुफा मे पहुंच गए, जहां मचकुंड महाराज आराम करने सो रहे थे तभी भगवान श्री कृष्ण ने अपना पीताम्बर मचकुंड महाराज को उड़ा दिया. 


इधर, कालयवन कृष्ण का पीछा करते-करते गुफा मे पहुंच गया, जहां मचकुंड महाराज सोये हुए थे. उसने कृष्ण के पीताम्बर को देख मचकुंड महाराज को लात मारकर जगा दिया, जिनके नेत्र की ज्योति से कालयवन भष्म हो गया. तब से ही श्री कृष्ण को यहां से छलिया का नाम दिया गया. इस पूरी घटना के बाद देवता युद्ध जीत गए तब मचकुंड महाराज ने यही विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया. इसी जगह सरोवर की स्थापना भी की गई, जहां आज भी लाखों श्रद्धालु स्नान करने दूर-दूर से आते है.


पंचमी व छठ के स्नान के बाद सभी लोग छठ की शाम को पास में स्थित अब्दाल शाह बाबा की मजार पर उर्स में भाग लेकर कब्बालियां सुनते है. तीन धर्मो की ये अनूठी मिशाल राजस्थान के धौलपुर जिले में ही मिलती है.


मेले को लेकर होने वाली भीड़ की सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन की और से पुख्ता बंदोबस्त किए गए है. मेले में चार सौ से ज्यादा पुलिस के जवानों के साथ आरएसी की कंपनिया भी तैनात की गई है. साथ ही सीसीटीवी कैमरों से भी नजर रखी जा रही हैं.