Dholpur: धौलपुर शहर से करीब 6 किलोमीटर दूर बसा ऐतिहासिक गांव छावनी में भगवान राम का मंदिर स्थित है. यह मंदिर तत्कालीन महाराजा कीरत सिंह के समय से यहां है. पहले गांव के नाम को ही कीरत सिंह के नाम से जाना जाता था. बाद में महाराजा धौलपुर पहुंच गए तो उनकी लाव-लश्कर (सेना) के ठहरने के लिए इसे छावनी बना दिया गया  था. जिस पर मंदिर का नाम छावनी हो गया. 


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इस मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति 9 जनवरी 1972 को चोरी हो गई थी. इसकी कोतवाली थाने में एफआईआर दर्ज हुई. बाद में दिल्ली एयरपोर्ट पर एक महीने बाद 10 फरवरी 1972 को पुलिस जांच के दौरान पंजाब निवासी चार युवकों को चोरी हुई मूर्ति के साथ पकड़ा. फिर मूर्ति चोरी केस की सुनवाई शुरू हुई. करीब 10 साल बाद भगवान की केस में जीत हुई आरोपितों को सजा सुनाई गई थी.


तीन रियासतों की सीमा पर निकली थी मूर्तियां
गांव छावनी के बुजुर्ग बताते हैं कि, मंदिर लगभग 300 साल से अधिक पुराना है. यहां विराजमान प्रभु राम की मूर्ति अष्टधातु से निर्मित बताते हैं. मंदिर में स्थित प्रभु राम की प्रतिमा के बारे में पुजारी विशंभर दयाल शर्मा ने बताया कि धौलपुर, भरतपुर और करौली की तत्कालीन संयुक्त रिसायत की सीमा पर खुदाई के दौरान उस समय तीन मूर्तियां निकली थी. इनमें भगवान श्रीराम की चतुर्भुज रूप में, माता जानकी और लक्ष्मण जी की मूर्ति भी थी. भगवान श्रीराम की मूर्ति धौलपुर के राजा, लक्ष्मण जी की मूर्ति को भरतपुर और माता जानकी जी की मूर्ति को करौली राजा लेकर गए थे. आज भी तीनों जिलों में उक्त मूर्तियां मंदिरों में स्थापित हैं. इसमें भरतपुर में लक्ष्मण मंदिर है.


मंदिर के पुजारी प्रभु राम की मूर्ति लेकर पहुंचे थे कोर्ट


प्रभु राम की अष्टधातु की मूर्ति जब चोरी हुई थी. उस समय स्थानीय पुजारी रामजीलाल शर्मा थे. जिन्होंने ही चोरी की रिपोर्ट कोतवाली में दर्ज कराई थी. मूर्ति बाद में मिलने पर उसे मंदिर के 15 फीट के कमरे में रखा गया था. जहां से प्रत्येक माह केस की तारीख पडऩे पर मंदिर पुजारी कपड़े में लपेट कर कोर्ट लेकर पहुंचते थे. ये प्रक्रिया करीब दस साल तक चली थी. जिसके बाद मजिस्ट्रेट ने 1982 में मुकदमे का फैसला भगवान के पक्ष में सुनाया. चोरी में सभी अभियुक्तों को सजा से दण्डित किया गया. उसके बाद भगवान राम छावनी स्थित हनुमान मंदिर में फिर से विराजित हुए.


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