Dungarpur News: राज्य सरकार भले ही उच्च शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करती हो लेकिन डूंगरपुर जिले का सबसे बड़ा एसबीपी कॉलेज खुद सरकार के दावो की पोल खोल रहा है. जिले के सबसे बड़े एसबीपी कॉलेज में 8 हजार स्टूडेंट को पढ़ाने के लिए सिर्फ 16 लेक्चरर ही है.

 

राज्य सरकार भले ही उच्च शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करती हो,लेकिन डूंगरपुर जिले का सबसे बड़ा एसबीपी कॉलेज खुद सरकार के दावो की पोल खोल रहा है. जिले के सबसे बड़े एसबीपी कॉलेज में 8 हजार स्टूडेंट को पढ़ाने के लिए सिर्फ 16 लेक्चरर ही है. इसमें भी 2 लेक्चरर डेप्युटेशन पर दूसरी जगह लगे है. जबकि 65 लेक्चरर की पोस्ट वेंकेट है। वही कॉलेज का पुराना भवन खंडहर हो गया है. हालात ये है कि इन कमरों में बैठकर पढ़ाई करना तो दूर नजदीक से गुजरना भी खतरे से खाली नहीं है.

 

आदिवासी बहुत क्षेत्रों में सरकार उच्च शिक्षा को लेकर कई दावे करती है. तमाम सुविधाएं देने के लिए वादे लिए जाते है, लेकिन हकीकत कॉलेजों में स्टूडेंट को पढ़ाने के लिए लेक्चरर ही नहीं है. जिले का सबसे बड़ा एसबीपी कॉलेज की बात करे तो यहां 8 हजार स्टूडेंट हर साल रेगुलर एडमिशन लेते है. लेकिन कॉलेज में पढ़ाने के लिए प्रिंसिपल समेत सिर्फ 16 लेक्चरर ही पोस्टेड है. जबकि कॉलेज में लेक्चर के 81 पोस्ट सेंक्शन है. बावजूद कॉलेज में 65 पोस्ट वेंकेट है. हालात ये है कि कई सब्जेक्ट में पढ़ाने के लिए कोई लेक्चरर ही नहीं है. ऐसे में स्टूडेंट की पढ़ाई पूरी तरह से चौपट है.

 

एसबीपी कॉलेज में 16 लेक्चरर पोस्टेड है. लेकिन इसमें से 2 लेक्चरर डेप्युटेशन पर दूसरी जगह लगा दिए है. जबकि पहले से वेकेंट पोस्ट की भरमार है. ऐसे हालत में कॉलेज में सिर्फ 14 लेक्चरर ही कार्यरत है. एसबीपी कॉलेज के अधीन जिले के गामड़ी देवल, गामड़ी अहाड़ा कॉलेज भी है. ऐसे में प्रशासनिक कामों की वजह से इन लेक्चरर की ड्यूटी भी लगाई जाती है.

 

एसबीपी कॉलेज में 19 सब्जेक्ट है, जिसमें से 9 सब्जेक्ट में एक भी लेक्चरर नहीं है. हिंदी, अंग्रेजी, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, संस्कृत, लोक प्रशासन, ईएएफएम, एबीएसटी, भूगर्भ शास्त्र जैसे सब्जेक्ट में एक भी लेक्चरर ही नहीं है. ऐसे में सालभर में इन सब्जेक्ट में पढ़ाई ही नहीं होती है. हालांकि कुछ सब्जेक्ट में कॉलेज प्रशासन की ओर से संविदा लेक्चरर के माध्यम से पढ़ाई करवाई जाती है. लेकिन परमानेंट लेक्चरर के नहीं होने से रेगुलर क्लासेज नहीं लग पा रही है.

 

एसबीपी कॉलेज के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष तुषार ने बताया कि कॉलेज में लेक्चरर के खाली पदों को भरने 5 सालों से संघर्ष कर रहे है. पहले कांग्रेस ओर अब भाजपा सरकार को कई ज्ञापन दिए. लेकिन खाली पदों को नहीं भरा गया. इससे पढ़ाई चौपट हो गई है. वही कॉलेज प्रिंसिपल डॉ गणेश निनामा ने बताया कि लेक्चरर के खाली पदों की बात सही है. इसे लेकर सरकार को लगातार अवगत करवाया जा रहा है. कुछ पदों पर संविदा लेक्चरर से पढ़ाई हो रही है. लेकिन सरकार से ही परमानेंट भर्ती होगी.

 

उच्च शिक्षा के लिए सरकार की ओर 1961 में डूंगरपुर मुख्यालय पर श्रीभोगीलाल पंड्या (एसबीपी) कॉलेज की शुरुआत की गई. लेकिन समय के साथ ये भवन पूरी तरह से खंडहर हो गया है. आगे और सबसे पीछे के सिर्फ 20 कमरे ही नए है. बीच का पूरा भवन खंडहर है. पुराने भवन की हालत है कि इसकी छत, दीवारें सबकुछ खत्म हो गया है. प्लास्टर कभी भी गिर जाता है। छत टूटकर गिर सकती है तो दीवारें भी सुरक्षित नहीं है. इसके नीचे बैठकर पढ़ाई करना तो दूर नीचे से गुजरना ओर आसपास खड़े रहना भी खतरे से खाली नहीं है. कमरों की कमी की वजह से कई बार स्टूडेंट को बरामदे में बैठाकर परीक्षाएं लेनी पड़ रही है. वहीं एक साथ 8 हजार स्टूडेंट को बैठाने की भी की जगह नहीं है.

 

एसबीपी कॉलेज के प्राचार्य डॉ गणेश निनामा ने बताया कि कॉलेज के खंडहर भवन की जगह पर नया भवन बनाने के लिए नया प्रपोजल तैयार कर लिया है. नए भवन के लिए 125 करोड़ रुपए का प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेज दिया है. सरकार की ओर से मंजूरी आने पर नई बिल्डिंग बनाने का काम किया जाएगा. वही पुरानी बिल्डिंग को गिराकर मलबा हटाने की बात करे तो इसमें भी लाखों का खर्चा बताया जा रहा है.

 

बहरहाल राज्य सरकार उच्च शिक्षा को लेकर बड़े बड़े दावे करती हो लेकिन डूंगरपुर का सबसे बड़े एसबीपी कॉलेज सरकार के इन दावो की हकीकत बया कर रहा है. सालो से छात्र संगठन व्याख्याताओं के रिक्त पदों को भरने की मांग करते आए रहे है, लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही. वही कॉलेज का भवन भी खंडहर हो चुका है. जहां बैठकर पढ़ाई करना अपने जीवन को खतरे में डालने जैसा है.