हनुमानगढ़ के किसान फसल बेचने के लिए कर रहे संधर्ष, जानें क्यों है माथे पर चिंता की लकीरें
हनुमानगढ़ के किसानों को सरकारी खरीद में हर बार पंजीकरण, गिरदावरी, उठाव, आधार कार्ड जैसी तकनीकी समस्याओं से किसान को दो चार होना पड़ता है. कृषि उपज मंडी सचिव सीएल वर्मा का कहना है कि किसान गेहूं की सरकारी खरीद शुरू करवाने की मांग को मंडी कार्यालय में धरना लगा रखा हैं, जिस पर किसानों को ऑनलाइन पंजीकरण में आ रही समस्याओं को लेकर खाद्य आयुक्त को एक पत्र भेजा गया है.
Hanumangarh News: किसान कई महीनों तक खून पसीना एक कर धरती की छाती से खाने के लिए अन्न पैदा कर अन्न दाता कहलाता है, इसी अन्न दाता को सुविधा देने का दावा तमाम सरकारें करती है लेकिन जमीनी हकीकत दावों के ठीक उल्टा है. खेत से फसल कटने के बाद किसान को कुछ राहत महसूस होती है लेकिन जैसे ही फसल बेचने के लिए किसान मंडी में पहुंचता है उसकी परेशानियां वापस शुरू हो जाती है.
हर साल किसान को फसल को एमएसपी पर बेचने के लिए सिस्टम की अव्यवस्थाओं का शिकार होना पड़ता हैं. सरकारी खरीद में हर बार पंजीकरण, गिरदावरी, उठाव, आधार कार्ड जैसी तकनीकी समस्याओं से किसान को दो चार होना पड़ता है. इन्हीं परेशानियों के बीच कोढ़ में खाज का काम करती है अचानक से आई आंधी और बरसात. जब सरकारें नए उद्योगों और निवेश बढ़ाने के लिए सिंगल विंडो जैसी सुविधा दे सकती है तो कृषि प्रधान देश में सरकारी दाम पर फसल बेचने के लिए हर बार किसान को संघर्ष क्यों करना पड़े?
मंडी में फसल बेचने आए किसान अवतार सिंह बराड़ का कहना है कि सरकार हर बार किसानों को भ्रमित करती है कि उनकी फसलों को एमएसपी पर खरीदा जाएगा, जबकि किसान अपनी फसलें लेकर दो तीन दिन तक खुले में बैठने को मजबूर है. खरीद के लिए किसानो पर इतनी कागजी कार्रवाही थोप दी जाती है जिसे किसान पूरा नहीं कर पाता. इसी सरकारी ढुलमुल रवैये के चलते किसान अपनी फसल को ओने पौने दामों में निजी क्षेत्र के लोगों को बेचने के लिए मजबूर है.
इसी के चलते अब की बार भी लगभग 90 प्रतिशत तक सरसों सरकारी खरीद शुरू होने से पहले ही बिक चुकी है, जिसमें किसानोx को 100-150 रुपए प्रति क्विंटल नुकसान होता है. सरकारें किसानो को समृद्ध करने के दावे तो करती है लेकिन सरकारी खरीद शुरू करवाने के लिए हर बार किसानों को आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ता है. मंडी में खुले में पड़ी फसलों को आंधी, बारिश आने का खामियाजा भी किसान को भुगतना पड़ता है. मंडी में ना तो फसलों के लिए पूरे शैड बने हुए हैं और ना ही किसानों के लिए कोई सुविधा.
वहीं किसानों को समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए हर साल संघर्ष करना पड़ता है प्रदर्शन और धरने करने पड़ते हैं जिसके बाद जाकर सरकारी खरीद शुरू हो पाती है. बराड़ का कहना है कि अगर सरकार सच में किसानो को समृद्ध और सुविधा देना चाहती है तो नियमों का सरलीकरण करे.
वही किसानों को हर साल आने वाली इस समस्या के बारे में पूर्व मंत्री डॉ रामप्रताप ने कहा कि मौसम विभाग ने जिस तरह से दो-तीन दिन तक मौसम खराब रहने की और आंधी और बारिश की चेतावनी दे रखी है इस सबके बीच किसान फसल को लेकर मंडी में खुले में बैठा हुआ है, उसके लिए पर्याप्त शैड तक की व्यवस्था नहीं है. किसान को ऑनलाइन के फेर में 100 से 150 रुपए का प्रति क्विंटल नुकसान हो रहा है. सरकार को चाहिए कि एक फुलप्रूफ तरीका इजाद किया जाए ताकि किसान की मेहनत जाया नहीं जाए.
एक ऐसा तरीका होना चाहिए कि किसान को मंडी में फसल लाने के बाद तुरंत बेचान हो जाए, अभी दो दिन पूर्व आई तेज आंधी और बरसात ने किसान की दो तीन दिन से खुले में पड़ी फसल को नुकसान पहुंचाया है. सरकार कुछ ऐसा सिस्टम इजाद करें कि किसान की फसल का तुरंत बेचान हो, फसल का पूरा दाम मिले और ऑनलाइन गिरदावरी, आधार कार्ड, पंजीकरण जैसी तकनीकी बाधाओं का स्थाई निवारण हो सके.
कृषि उपज मंडी सचिव सीएल वर्मा का कहना है कि किसान गेहूं की सरकारी खरीद शुरू करवाने की मांग को मंडी कार्यालय में धरना लगा रखा हैं, जिस पर किसानों को ऑनलाइन पंजीकरण में आ रही समस्याओं को लेकर खाद्य आयुक्त को एक पत्र भेजा गया है. जिसका जवाब मिलने के बाद आगे के निर्देशों के अनुसार किसानों को नियमों में ढील देकर फसल खरीद करवाई जाएगी. मंडी सचिव वर्मा ने बताया कि ऑनलाइन पंजीकरण किसान को परेशानियों से बचाने के लिए ही शुरू किया गया है ताकि किसान अपने घर से ही ऑनलाइन पंजीकरण करवाने के बाद मिली तारीख पर ही मंडी में अपनी फसल लेकर आए ताकि फसल की तुरंत खरीद हो जाए और किसान को भी परेशान ना होना पड़े.
इस समय खेतों में बड़ी संख्या में गेहूं कटाई के लिए मशीनें लगी हुई है, जिसके चलते एक साथ भारी आवक होने से अव्यवस्थाएं हो जाती है, इसी अव्यवस्था को रोकने और किसानो को असुविधा ना हो इसी के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधा शुरू की गई थी ताकि किसान अपने नियत समय पर ही मंडी पहुंचे और परेशानियों से बचें अचानक आवक बढ़ने से खरीद प्रक्रिया बाधित होती है और किसान को इंतजार करना पड़ जाता है इसी दौरान बारिश और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से भी किसान को नुकसान उठाना पड़ता है.
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तमाम सरकारें किसानों को समृद्ध और मजबूत करने के दावे और वादे तो करती है, लेकिन अपनी खून पसीने से सींची हुई फसल को लेकर जब किसान मंडी पहुंचता है तो तमाम सरकारी दावों की पोल खुल जाती है. किसान को अपनी फसल बेचने के लिए सरकारी सिस्टम से तो दो-चार होना ही पड़ता है, वहीं इसके साथ ही प्राकृतिक आपदा भी किसान को सताने में पीछे नहीं रहती. सरकार को चाहिए कि फसलों की सरकारी खरीद के लिए ऐसा सिस्टम या तरीका इजाद करे ताकि ऑनलाइन पंजीकरण, गिरदावरी, आधार कार्ड आदि की समस्याओं का स्थाई निराकरण हो सके. जिस तरह सरकारें नए उद्योगों और निवेश के लिए सिंगल विंडो जैसी सुविधाएं स्थापित करने में जुटी है ठीक उसी तरह कृषि प्रधान देश में किसानों के लिए भी सुविधा शुरू हो सके.