Navratri 2023: हजारों लोगों के लिए `देवी का स्वरूप` बनीं राजस्थान की ये बहू
Hanumangarh News: आज हम आपको राजस्थान की एक ऐसी बहू की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे लोग आयरन लेडी के नाम पुकारते हैं. ये बहू लोगों के लिए लोगों के लिए `देवी का स्वरूप` बनी हुई हैं.
Hanumangarh News: छोटे से गरीब परिवार और राजस्थान के भादरा के छोटे से बीरान गांव मे पैदा हुईं आयरन लेडी और शान-ए-हरियाणा से अपनी पहचान बना चुकी सुमन मेडल मेहरा आज हजारों बेसहारा लोगों के लिए सहारा और मददगार साबित हो रही हैं.
अपनों ने ठुकराया, सुमन ने अपनाया
आज हम आपको उस महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी जिंदगी का धेय है, सिर्फ और सिर्फ मानव सेवा हीं है, जो बिछड़ों को अपनों से मिलाती है, जो अपनों के दुत्कारे जाने वालों को अपनाती है. ऐसी हीं है आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्ध सुमन मेडल मेहरा हैं. सुमन की खुद की जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव लेकिन एक वाक्य ने सुमन की जिंदगी हीं बदल दी.
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बात साल 2018 की हरियाणा के हिसार की है, एक बार वो अपनी स्कूटी से हिसार के एक एरिये से निकल रही थी, तभी उसने एक जगह पर भीड़ लगी देखी तो हादसे में घायल एक व्यक्ति सड़क पर तड़प रहा था और लोग उसकी मदद करने की बजाय वीडियो बना रहे थे, तो कुछ मूकदर्शक बन देख रहे थे. सुमन नर्स थी तो उसने मृत प्राय व्यक्ति को प्राथमिक इलाज यानिकि CPR दिया, उससे बात नहीं बनी तो सुमन ने उसको अपने मुंह से ऑक्सीजन दी, जिससे उसकी जान बच गई.
वहीं, अगले ही दिन सुमन एक सेलिब्रिटी के रूप मे मीडिया के फ्रंट पेज पर थी. इसके बाद सुमन की जिंदगी बदल गई और उसने ऐसे कई लोगों की जान बचाई जो मौत के मुंह में जा चुके थे.
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हाल ही में सुमन राजस्थान के हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय टाउन के रावतसर रोड पर संतलाल खंडेलवाल, अविनाश छिम्पा की मदद से एक 'मानव सेवा अनाथ' आश्रम चला रही है और वर्तमान में करीब यहां 41 लोग है. इनकी देखभाल सुमन कर रही हैं, जिनको उनके परिवारों से मिलाने के प्रयास जारी हैं.
देवी का स्वरूप बन सुमन अब तक करीब 2000 लोगों को उनके परिवार से मिला चुकी है. सुमन के इस काम की आश्रम में रहने वाले लोग और क्षेत्र के लोग जमकर तारीफ करते हैं. आश्रम में रह रहे विशाल और अन्य लोग रोते-रोते अपनी कहानी बताते हुए कहते है कि अगर सुमन जैसे देवी औरत नहीं होती तो वे आज जिंदा नहीं होते.
आटा तक खत्म हुआ, लेकिन हिम्मत नहीं हारी
पति सुभाष, बहन रवीना और सुसराल वालों की मदद से आज इस मुकाम पर पहुंची भावुक होते हुए सुमन बताती हैं कि जब वो स्कूल में पढ़ने जाती थी तो गांव वाले उसको और उसके सुसराल वालों को ताने मारते थे कि इसको पढ़ाकर क्या मैडम बनाना है. लेकिन सुमन को मलाल और दरकार है तो बस सरकारी मदद की क्योंकि आमजन के सहयोग से चल रहे आश्रम में तो कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है कि आश्रम में आटा तक नहीं होता है.