Indian Railways : भारत का रेल दुनिया में चौथे नंबर का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है. करीब सवा लाख किलोमीटर के नेटवर्क में पैसेंजर ट्रेन, मेल ट्रेन, एक्सप्रेस ट्रेनें शामिल है. भारत में रेलवे का पहला विचार साल 1832 में अंग्रेजों के राज में आया. करीब एक दशक बाद साल 1844 में गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने कारोबारियों को एक रेलवे नेटवर्क स्थापित करने की इजाजत दी. इसी के लिए साल 1845 में दो कंपनियां बनाई गई. ग्रेट इंडियन पेनिनुसुला और दूसरी ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी. 8 सालों की मेहनत के बाद साल 1853 में भारत में पहली ट्रेन चली. भारत में पहली ट्रेन 16 अप्रैल 1853 को चली. ये ट्रेन मुंबई और ठाणे के बीच चली. जिसकी लंबाई करीब 34 किलोमीटर थी.


बिना स्टीयरिंग कैसे चलती है ट्रेन


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रेल में स्टीयरिंग नहीं होता है. तो बिना बिना स्टीयरिंग कैसे चलती है ट्रेन. ट्रेन ड्राइवर को लोको पायलट कहते है. वो अपनी मर्जी से किसी भी ट्रेन को मोड़ नहीं सकता है. दरअसल ट्रेन के लोहे के पहिए इस तरह बनाए जाते है कि वो पटरियों से जकड़े रहें. पहियों में भीतर की तरह लोहे की कीलें होती है. जो पटरी के साथ पहिए को चिपकाए रखती है. ऐसे में जब ट्रेन को पटरी बदलनी होती है. तो ये काम एक अलग कर्मचारी का होता है. जिसे प्वाइंटमैन कहते है. वो पटरियों को ट्रेन की जरुरत के हिसाब से एडजस्ट करता है. प्वाइंटमैन स्टेशन मास्टर के निर्देश के हिसाब से काम करता है.


लोको पायलट का क्या काम होता है


लोको पायलट का काम ट्रेन के संचालन का होता है. कहां ट्रेन रोकनी है. कब ट्रेन को रवाना करना है. सिग्नल के हिसाब से ट्रेन चलाने का काम लोको पायलट ही करता है. लोको पायलट ट्रेन की स्पीड को कम या ज्यादा करने का काम भी करता है.


अंग्रेजों के कब्जे वाली रेल लाइन


महाराष्ट्र में एक रेलवे ट्रेक ऐसा भी है. जिस पर अंग्रेजों का अधिकार है. आजादी के बाद जब रेलवे का राष्ट्रीयकरण किया गया. तब इस ट्रेक पर ध्यान नहीं दिया गया. महाराष्ट्र के मरावती से मुर्तजापुर तक करीब 190 किलोमीटर का ट्रेक. जिस पर ब्रिटेन की प्राईवेट कंपनी सेंट्रल प्रोविंसेस रेलवे का कब्जा है. भारत सरकार हर साल 1.20 करोड़ की रॉयल्टी देती है.


रेलवे में 11 तरह के होते है हॉर्न


ट्रेन में बजने वाले हर हॉर्न का अलग मतलब होता है. जब ट्रेन धुलाई या सफाई के लिए जाने को तैयार होती है तो लॉको पायलट एक छोटा हॉर्न बजाता है. जब ट्रेन के चलने का समय हो जाता है तो पायलट दो हॉर्न देता है. जब कोई इमरजेंसी होती है तो तीन हॉर्न दिए जाते है. अगर कोई तकनीकी खामी आती है तो चार छोटे हॉर्न बजाए जाते है. गार्ड को ब्रेक पाइप सिस्टम सेट करने का संकेत देने के लिए एक लंबा और एक छोटा हॉर्न बजाया जाता है.


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ट्रेन में अगर कोई इमरजेंसी चेन खींच देता है या गार्ड वैक्यूम ब्रेक दे देता है तो पायलट दो छोट और एक लंबा हॉर्न बजाता है. अगर ट्रेन लंबा हॉर्न बजाती है तो ये ट्रेन में बैठी सवारियों के लिए संकेत होता है कि ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकेगी नहीं. लोगों को रेल लाइन से दूर रहने का संकेत देने के लिए दो बार रुककर हॉर्न बजाया जाता है. जब ट्रेक बदला जाता है तो दो लंबे और एक छोटा हॉर्न दिया जाता है. लेकिन जब ट्रेन किसी संकट में फंस जाती है. उस पर डकैतों का, लुटेरों का कब्जा हो जाता है तो पायलट 6 बार छोटे हॉर्न बजाता है. ये नजदीकी स्टेशन को सूचना देने  का तरीका होता है.


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