Rajasthan Politics : संजीवनी घोटाला मामले में मुख्यमंत्री गहलोत जिस तरह की एग्रेसिव कैंपेन चला रहे हैं वो इस बात का साफ-साफ इशारा है कि गहलोत इस मामले को किसी भी सूरत में हाथ से नहीं जाने देना चाहते. इस बात में दो राय नहीं हो सकता की गहलोत राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी है वो अच्छी तरह जानते हैं कि किस मुद्दे को चबा लिया जाए और किस मुद्दे को इतनी हवा दी जाए कि मामला सुलग उठे. 


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इसी पॉलिटिकल स्ट्रेटजी के साथ गहलोत केन्द्रीय मंत्री और मारवाड़ बीजेपी के सबसे बड़े चहरे गजेन्द्र सिंह शेखावत को उनके कंफर्ट जोन में जाकर निशाना बना रहे हैं. संजीवनी घोटाला मामले में पहले शेखावत के माता पिता को घेरना उसके बाद घोटाले के असल पीड़ितों में राजपूत समाज के 80% लोग बताना साफ करता है कि गहलोत किस राह पर हैं.  यह बात किसी से छुपी नहीं है कि राजस्थान और खास तौर पर मारवाड़ के राजपूत समाज में गजेन्द्र सिंह शेखावत न सिर्फ पोस्टर हीरो हैं बल्कि समाज में उनका राजनीतिक हकूक भी है. 


गहलोत जानते हैं कि अगर किसी भी तरह वो गजेन्द्र सिंह शेखावत को समाज के भीतर हिचकोले दें, तो रही सही कसर शेखावत के विरोधी अंदरखाने पूरी कर देंगे. यही कारण है कि, वो शेखावत को घोटाले का न सिर्फ असल मास्टरमांइड प्रोजेक्ट करना चाहते हैं बल्कि उनका पूरा प्रयास है कि ये हवा बनाई जाए कि शेखावत ने अपने की घर को लूटा है. 


मारवाड़ की राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग ये बताती है राजपूत समाज जब दूसरी जातियों के साथ मिलकर वोट करता है तो नतीजे बदल सकते हैं. वहीं मारवाड़ के राजनीतिक ताने बाने में मोदी की दीवानगी भी अहम है. कुल मिलाकर ये एक ऐसा कॉकटेल है जो जीत का स्वाद दिलाने में बड़ी भूमिका निभाता है. गहलोत की कोशिश है कि किसी तरह इस तिलिस्म को तोड़ा जाए और शेखावत को घर की ही पॉलीटिक्स में उलझा दिया जाए.


शेखावत इस वक्त सीएम की रेस में सबसे प्रबल दावेदारों में से एक हैं. जोधपुर में वो सीएम गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को लोकसभा चुनाव बड़े अंतर से हरा चुके हैं. सिटिंग सीएम रहते गहलोत के लिए ये नतीजा शर्मनाक भी था. 


गहलोत कभी नहीं चाहेंगे कि जोधपुर और मारवाड़ से कोई नेता इतना बड़ा बन जाए कि आने वाले वक्त में सीएम बने. असल में ये गहलोत की यूएसपी है कि वो जातिगत राजनीति से अलग राजस्थान के इस खित्ते में इतना अच्छा इसलिये परफार्म करते है क्योंकि लोग उनमें नेता से ज्यादा सीएम देखते हैं और अगर कोई और इस जादूगरी को चुनौती देता है तो ये गहलोत के लिये चिंता की बात बन सकती है.


कुल मिलाकर गहलोत, शेखावत के खिलाफ जिस प्रकार कार्पेट बॉबिंग कर रहे हैं वो शेखावत की राजनीतिक जड़ों में मट्ठा डालने जैसा है. गहलोत रणनीतिक तौर पर न सिर्फ मोदी से दूर करना चाहेंगे बल्कि समाज में भी अलग थलग करना चाहेंगे.


राजस्थान में चुनावी साल है और मारवाड़ का दंगल शबाब पर है. गहलोत के हमलों से बीजेपी में सीएम बनने की आस लगाए शेखावत के प्रतिद्ववियों को बिल्ली के भाग्य का छीका फूटने की भले ही उम्मीद हो लेकिन सियासी हमलों के बीच मजेदार ये है कि शेखावत की ग्राउंड पोजीशन में कोई तब्दीली नहीं आई है. वो आरोपों को लेकर ना ही डिफेंसिव दिख रहे हैं और न ही फिक्रमंद.


वैसे भी अगर पूरी सरकारी मशीनरी गहलोत के पास होते हुए भी कार्रवाई की जगह बात सिर्फ आरोपों तक ही सीमित है, तो फिर राजनीति में आरोप तो नेताओं का गहना हैं ?


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