Bisalpur lifeline shut down : जयपुर की लाइफ लाइन बीसलपुर परियोजना का फिर से शटडाउन किया जाएगा, क्योंकि बीसलपुर पाइपलाइन में फिर से छेद हो गया है, लेकिन सवाल ये है कि जयपुर की प्यास छीनने वाले इंजीनियर्स पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है, आखिर करोड़ों खर्च होने के बावजूद बार बार शटडाउन क्यों लिया जा रहा है.


जयपुरवासी खुद करे पानी की व्यवस्था


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जयपुर की लाइफलाइन एक बार फिर से वेंटीलेटर पर चली गई है. सालाना 66 करोड़ का खर्चा होने के बावजूद बीसलपुर परियोजना बार बार आईसीयू में जा रही है. एक बार फिर से बीसलपुर प्रोजेक्ट में सिस्टम का लीकेज होने से जलदाय विभाग शटडाउन लेगा. कल सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक सुरजपुरा से जयपुर तक शटडाउन रहेगा, जिससे कल शाम और 1 अक्टूबर को सुबह की सप्लाई आशिंक रूप से बाधित रहेगी. जयपुरवासियों को पानी की सप्लाई नहीं होगी, इसलिए आप अपनी व्यवस्था खुद कर ले. जलदाय विभाग के भरोसे बिल्कुल ना रहे.



सतीश जैन के कंधों पर जिम्मेदारी



बीसलपुर के जयपुर प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सतीश जैन के कंधों पर है. इनके पास डब्लूएसएसओ डायरेक्टर का चार्ज भी है. वैसे इस पद की जिम्मेदारी अतिरिक्त मुख्य अभियंता को दी जाती है,लेकिन क्या सतीश जैन पर राजनैतिक दबाव के कारण विशेष मेहरबानी बरस रही है. घटिया मॉनिटरिंग के बावजूद सतीश जैन को जनता से जुडे दो-दो महत्पूर्णण पदों की जिम्मेदारी दे रखी है.


सतीश जैन ना तो फील्ड में जाते और ना ही परियोजना का उन्हें ज्ञान है. अतिरिक्त मुख्य सचिव सुबोध अग्रवाल ने भी इसी बात पर फटकार लगाई थी. ये पहली बार नहीं है सतीश जैन का रूतबा जलदाय विभाग में सिर चढकर बोल रहा है. बल्कि एक्सईएन, एईएन रहते हुए भी इनकी पोस्टिंग जयपुर में ही रही है. सबसे हैरानी बात तो ये है कि घटिया मॉनिटरिंग को लेकर जलदाय मंत्री महेश जोशी भी सवाल उठा चुके, लेकिन उन्होंने भी अब तक सतीश जैन पर कोई कार्रवाई नहीं की.
 


शुद्ध पानी पर सरकार का खर्चा



सुरजपुरा में सरकार ने ट्रीटेट वाटर प्लांट लगाया हुआ है, जहां बीसलपुर से ट्रीट होकर पानी जयपुर को सप्लाई होता है. पानी को ट्रीटेट करने और जयपुर तक पहुंचाने में 3 करोड़ का बिजली का खर्च हर माह खर्च होता है. इसके अलावा बीसलपुर डेम पर 2.50 करोड़ के बिजली के बिल पर खर्च होता है. यानि 5 करोड हर महीने खर्च होते है.


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सरकार 1 एमएलडी पानी पर 2570 रूपए खर्च करती है. प्रतिदिन बीसलपुर से 650 एमएलडी पानी ट्रीटेट होता है. इस हिसाब से पानी को ट्रीटेट करने के लिए प्रतिदिन 16,70,500 रूपए, प्रतिमाह 5,01,15000 रूपए और सालाना 60,13,80,000 रुपए खर्च होते है. इसके अलावा जीसीकेसी कंपनी को रखरखाव के लिए 6 करोड़ सालाना भी दिया जा रहा है. अब ऐसे में सवाल ये है कि इसके बावजूद करोड़ों लीटर शुद्ध ट्रीटेट पानी की बर्बादी हो रही है.