Rajasthan POCSO Cases: नाबालिगों को त्वरित और प्रभावी न्याय दिलाने के लिए पॉक्सों कानून को अस्तित्व में लाया गया था, लेकिन अब इस कानून के तहत भी पीड़ितों को न्याय नहीं मिल रहा है. राजस्थान में बीते छह माह की बात की जाए तो करीब 26 फीसदी मुकदमों में ही अपराधियों को सजा मिल पाई है, यानि करीब 74 फीसदी मामलों में आरोपी बरी हुए हैं.


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विधि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार बरी होने वाले पचास फीसदी मामलों में पीड़िता नाबालिग ही साबित नहीं हो पाती है. ऐसे में संबंधित आरोपी पॉक्सो अधिनियम हट जाता है. इसके अलावा करीब 22 फीसदी मामलों में चिकित्सीय साक्ष्य के प्रभावी नहीं होने के कारण आरोपी बरी हो रहे हैं. जबकि 29 फीसदी मामले ऐसे हैं, जिनमें पीडित पक्ष और गवाहों के विरोधाभासी बयानों का फायदा उठाकर आरोपी बरी हुए हैं. वहीं आरोपी के बरी होने का एक बड़ा कारण पीडिता का पक्षद्रोही होना भी है.


ट्रायल के दौरान होती हैं गलतियां


विधि विशेषज्ञों के अनुसार जहां पुलिस जांच में कई कमियां छोड़ती है, वहीं ट्रायल के दौरान भी सरकारी वकीलों से गलतियां हो रही है. यदि सरकारी वकील इन गलतियों को दूर कर ले तो राजा का प्रतिशत काफी बढ़ सकता है.


इस तरह की हो रही है गलतियां


- अल्प आयु के गवाह के बयान लेते समय शिशु मनोवैज्ञानिक व्यवहार या प्रशिक्षित व्यक्ति की उप स्थिति का अभाव
- चिकित्सीय साक्ष्य के दौरान चिकित्सा विधि शास्त्र के सिद्धांतों की विवेचना का अभाव


- अंतिम बहस के समय अभियोजन साक्ष्य के व्यापक विश्लेषण, लिखित बहरा और न्यायिक निर्णयों को प्रस्तुतिकरण का अभाव
- सजा के बिंदु पर सुनवाई के दौरान विधिक त्रुटियों की और कोर्ट का संज्ञान लाने का अभाव


- सरकारी मशीनरी के बीच सहयोग और समन्वय का अभाव


इनका कहना है


सरकारी वकील आरोपी को सजा दिलाने का हर संभव प्रयास करता है, लेकन कई बार खुद पीडिता ही अपने बयानों से मुकर जाती है और चिकित्सीय साक्ष्य के अभाव में आरोपी बरी हो जाता है. विजया पारीक, पॉक्सो मामलों में प्रदेश में सबसे अधिक सजा दिलाने के लिए विधि विभाग से सम्मानित विशेष लोक अभियोजक.


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