Ganesh Chaturthi 2023, Moti Dungri Ganesh Temple Jaipur News: इस साल देश भर में गणेश चतुर्थी 19 से 29 सितंबर तक मनाया जाएगा. यानी पूरे 10 दिनों के लिए बप्पा अपने भक्तों के घर विराज होने आ रहे हैं. गणेश चतुर्थी आते ही पूरा शहर भगवान गणेशजी के भक्ति में डूब जाता हैं.


प्रथम पूजनीय है भगवान गणेश 


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प्रथम पूजनीय है श्री गणेश हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान श्री गणेश प्रथम पूजनीय है. किसी भी पूजन कार्य को प्रारंभ करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है. पुराणों के अनुसार भगवान ब्रम्हा जी के द्वारा सभी देवताओं से कहा गया कि जो पहले पूरे ब्रम्हांड का चक्कर लगा कर पहुंचेगा उसकी सबसे पहले पजूा होगी. सभी देवता अपने वाहनो से पूरे ब्राम्हांड का चक्कर लगाने निकल पड़े. श्री गणेश जी प्रखर बुद्धि के धनी थे. गणेश जी ने अपने माता और पिता के चक्कर लगा कर पृथ्वी आकाश की परिक्रमा सबसे पहले पूरी कर ली और तब से वो सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय है. 


जयपुरवासियों की आस्था है मोती डूंगरी गणेश में


हिन्दू धर्म के किसी भी धार्मिक कार्य में विघ्नहर्ता श्रीगणेश की सबसे पहले पूजा होती है.आइए आपको इस गणेश चतुर्थी पर जयपुरवासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र मोती डूंगरी में स्थित भगवान श्रीगणेशजी के दर्शन करवाते हैं.


जयपुर में मोतीडूंगरी की तलहटी में विराजमान 


इस मंदिर में भगवान श्रीगणेश की बड़े आकार की भव्य मूर्ति के दर्शनों के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. लंबोदर इस दरबार में आने वाले हर भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं. बस ये ही कारण है की भगवान श्रीगणेश के प्रति आस्था का सैलाब दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. गणेश चतुर्थी की मोतीडूंगरी गणेश मंदिर की सन 1982 की दुलर्भ तस्वीर जिसमें आस्था में डूबे हुए भक्त नजर आ रहे हैं. लंबी-लंबी कतारों में लगकर लोग दर्शनों के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. पूर्व में इस मंदिर का स्वरूप श्रीगणेशजी महाराज का निज मंदिर और एक 14 बाय 12 के एक हॉल था लेकिन अब इसे गोल्डन टेंपल भी कहा जाता हैं क्योंकि मंदिर की गर्भगृह की दीवारों पर सोने की परत चढ़ी हुई हैं और अभी भी सोने की परत चढाने का काम जारी हैं.


बुधवार और पुष्य नक्षत्र पर भारी भीड़


आम से लेकर खास मंदिर में भगवान श्रीगणेश का आशीर्वाद जरूर लेने आता हैं. बुधवार और पुष्य नक्षत्र पर तो यहां आस्था देखते ही बनती हैं. जयपुर में ये मान्यता है कि यदि कोई भी व्यक्ति नया वाहन लेता है, तो उसे सबसे पहले मोती डूंगरी गणेश मंदिर में पूजन के लिए लाता है. मोती डूंगरी गणेश मंदिर में शादी के समय पहला निमंत्रण-पत्र मंदिर में चढ़ाने की परंपरा है.


मान्यता है कि निमंत्रण पर मोती डूंगरी गणेश उनके घर आते हैं और शादी-विवाह के सभी कार्यों को शुभता से पूर्ण करवाते हैं. ऐसे में इस मंदिर में जयपुर के आसपास से भी लोग दूर-दूर से शादी का निमंत्रण देने पहुंचते हैं. पढाई चल रही और सामने एग्जाम का खौफ हो तो भगवान श्रीगणेशजी को मनाकर रखने मे ही सब सिद्धि और कामयाबी मानी जाती हैं.


मेहंदी पूजन और सिंजारा उत्सव 


इतना ही नही गणेश चतुर्थी से पहले मेहंदी पूजन और सिंजारा उत्सव मनाया जाता हैं. भगवान श्री गणेश जी को मेहंदी धारण करवाने के बाद भक्तों को वितरित की जाती हैं. इस मेहंदी को लेने के लिए बड़ी संख्या में हजारों लोग मंदिर पहुंचे. मान्यता है कि ये मेहंदी बहुत ही शुभ होती है. अविवाहित युवक-युवतियां इस मेहंदी को लगाते हैं, जिससे उनकी जल्दी शादी हो जाए.


मोतीडूंगरी गणेश मंदिर महंत कैलाश शर्मा ने बताया की मोती डूंगरी में स्थित भगवान गणेश का मंदिर जयपुरवासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. गणेशजी की यह मूर्ति भी बडी चतम्कारी और दुर्लभ मानी गई हैं. गणेश प्रतिमाओं में प्राय दाहिनी ओर घूमी हुई सूंड देखने को मिलती हैं लेकिन मोतीडूंगरी गणेशजी की सूंड बाई ओर घूमी हुई हैं. इस कारण वाममार्गियों द्वारा इसे सिद्ध माना जाता हैं.


गणेश चतुर्थी के दिन ही विराजमान हुए


महंत कैलाश शर्मा बताते हैं की मोतीडूंगरी गणेश मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम की पटरानी के पीहर मावली से ईस्वी सन 1761 और संवत सन 1818 में लाई गई थी. मावली में यह प्रतिमा सिद्धि क्षेत्र मिरज महाराष्ट्र से लाई गई थी. उस समय यह पांच सौ वर्ष पुरानी थी. इस तरह से ये भव्य मूर्ति अब 762 साल पुरानी हो गई है. मोतीडूंगरी भगवान गणेश मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा ईस्वी सन 1761 और संवत सन 1818 में गणेश चतुर्थी के दिन ही विराजमान की गई थी.


भव्य मूर्ति अब 762 साल पुरानी 


उस जमाने बैलों के सग्गड़ में गणेश प्रतिमा कई महीनों के सफर के बाद जयपुर पहुंची. बैलों के चकडे इसी जगह फंसने के बाद यहां विराजमान किया. यह आलेख मूषक के आसन शिलालेख पर विद्यमान हैं. मावली के पल्लीवाल ब्राह्ण यह मूर्ति लेकर आए और उन्हीं की देख-रेख में मोती डूंगरी की तलहटी में इस मंदिर को बनवाया गया था. अथर्ववेद के प्रथम श्लोक अथर्वशीर्ष में की गई भगवान गणपति की व्याख्या के मुताबिक एकदंत चतुर्हस्तं पाशमंकुश धारिणम के मुताबिक ही प्रथम पूज्य मोतीडूंगरी मंदिर में विराजमान हैं.


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यहां गणेश जी एकदंत, चतुरहस्त, पाश और अंकुश धारण किए हुए हैं. मूषक ध्वज के साथ विराजमान हैं. भगवान का निज मंदिर रिद्धिसिद्धि पत्नी स्वरूप और शुभ लाभ पुत्र स्वरूप विराजमान हैं. संवत 1940 में महंत शिवनारायण को गद्दी देकर मंदिर में विराजमान किया गया. मोती डूंगरी के गणेश जी जयपुर की स्थापना के 34 साल बाद यानी ईस्वी सन 1761 और संवत सन 1818 में प्रतिष्ठापित किए गए. मंदिर का निर्माण राजस्थान के पत्थरों के साथ 4 महीने में पूरा हुआ था. यह वास्तुकला और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से व्यापक रूप से प्रशंसित है.


वास्तुकला और डिजाइनिंग की मुख्य जिम्मेदारी सेठ जयराम पल्लीवाल को दी गई थी. गणेश मंदिर अपने पत्थर के पैटर्न पर काम के लिए जाना जाता है जो विभिन्न विवरणों के साथ उत्कीर्ण हैं. मंदिर में तीन गुंबद हैं जो भारतीय, मुगल और पश्चिमी प्रतीकों के संयोजन का प्रतिनिधित्व करते हैं. मोती डूंगरी का शाब्दिक अर्थ ‘मोती का पर्वत’ है जो देखने में मोती की भांति लगता है. पहाड़ी के शिखर पर एक किला भी स्थित है. यह किला कभी महाराजा स्वाई मानसिंह (1922-1949) का निवास हुआ करता था, तभी से यह शाही परिवार के अधीन रहा.


ये है खास


1. मुख्य पर्व- श्रीगणेश जन्मोत्सव-प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेशजी महराज का जन्मोत्सव और मंदिर का पाटोत्सव के रूप में पहला पर्व हर साल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता हैं. जन्मोत्सव कार्यक्रम की शुरूआत सात दिन पहले पुष्प नक्षत्र में श्रीविग्रह का पंचामृत अभिषेक के साथ होती है.


2. मोदक झांकी-श्रीगणेश चतुर्थी से पहले बुधवार को मोदको की झांकी होती हैं. इस झांकी के मुख्य मोदक 251 किलो के 2 मोदक, 5 मोदक 51 किलो के, 21 मोदक 21 किलो के, 1100 मोदक 1.25 किलो के एवं अन्य छोटे मोदकों अर्पित किए जाते हैं. भगवान को विशेष मुकुट माणक और पन्ना युक्त मुकुट धारण करवाया जाता हैं.


3. सिंजारा और मेहंदी पूजन-गणेश जन्मोत्सव के तहत सिंजारा और मेहंदी पूजन होता हैं. भगवान श्रीगणेश का महंत परिवार की ओर से श्रृंगार किया जाता हैं. गणेशजी महाराज का विशेष नौलड़ी का नोलखा हार के भाव जैसा शृंगार होता हैं. जिसमें मोती, सोना, पन्ना, माणक आदि के भाव स्वरूप दर्शाए गए है. गणेश जी महाराज को स्वर्ण मुकुट धारण कराया जाता हैं और चांदी के सिंहासन पर विराजमान करवाया जाता हैं. मान्यता है कि ये मेहंदी बहुत ही शुभ होती है. अविवाहित युवक-युवतियां इस मेहंदी को लगाते हैं, जिससे उनकी जल्दी शादी हो जाए.


4. पुष्य अभिषेक- हर माह 27वे दिन पुष्य नक्षत्र के दिन मनोकामना दिवस और रक्षाकवच पूजन दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. इस दिन भगवान श्रीगणेश का पंचामृत अभिषेक और रक्षासूत्र के साथ हल्दी की गांठ वितरित की जाती हैं.
5. फागोत्सव-होलिका पर्व के पहले बुधवार को गुलाल गोटे से होली खेली जाती हैं.
6.पौषबडा उत्सव- पौष माह के प्रथम और अंतिम बुधवार को भगवान श्रीगणेशजी महाराज को पौषबडे का भोग लगाया जाता हैं.


भगवान श्रीगणेश की दिनचर्या


मंगला झांकी-भगवान श्रीगणेशजी महाराज को दूध का भोग


बाल भोग- मोदक, मूंग के लड्डू, बेसन के लड्डू का भोग


राजभोग-चपाती, बाटी, चूरमा, दाल,कढी, सब्जी का भोग


संध्या भोग-पुडी, दो सब्जी, चूरमा या हल्वे का भोग


शयन आरती- भगवान श्रीगणेशजी महाराज को दूध का भोग


बहरहाल, गणेश शुभारंभ की बुद्धि देते हैं और काम को पूरा करने की शक्ति भी. वे बाधाएं मिटाकर अभय देते हैं और सही- गलत का भेद बताकर न्याय भी करते हैं. भगवान श्री गणेश जी को ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता माना जाता है. संकट दूर करने की वजह से इन्हें विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है. कहा जाता है कि अगर जीवन में हर तरफ दुख और संकट हो और निकलने का कोई मार्ग न मिले तो भगवान गणेश की अराधना तुरंत फल देती है. कहा जाता है कि केवल मन में भाव होने मात्र से ही गणपति अपने भक्तों को हर संकट से बाहर निकाल देते हैं.