राज्यपाल मिश्र ने गहलोत सरकार को दिखाया आईना, विधानसभा का सत्रावसान नहीं करने की परिपाटी गलत और असंवैधानिक
राज्यपाल ने कहा कि मैंने महसूस किया है कि कई बार सत्र का अवसान नहीं किया जाता. ऐसे में विधायकों के सवाल पूछने के अधिकार का हनन होता है. इसमें संवैधानिक प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती. राज्यपाल बोले, सत्र का अवसान हो और नया सत्र आहूत हो.
जयपुर: पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के समापन सत्र में राज्यपाल कलराज मिश्र ने राज्य सरकार और विधानसभा अध्यक्ष को आईना दिखाते हुए कहा कि विधानसभा का सत्रावसान नहीं करने की परिपाटी गलत और असंवैधानिक है. राज्यपाल ने कहा कि सरकार राज्यपाल को सत्र बुलाने के लिए आग्रह तो करती है, लेकिन कई बार सत्र आहूत किए जाने के बाद उसका अवसान ही नहीं किया जाता. ऐसा करना विधायकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है. उन्होंने कहा कि इसके चलते कई बार विधायक अपने सवाल सदन में नहीं पूछ पाते. राज्यपाल ने सत्रावसान नहीं करने की परिपाटी को गलत बताते हुए इस पर मंथन की जरूरत बताई.
सम्मेलन के समापन सत्र में राज्यपाल कलराज मिश्र ने भी अपने दिल की बात खुल कर रखी. राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि आमतौर पर विधानसभा के सत्र तीन बार आहूत किए जाते हैं. सरकार की अनुशंसा पर सत्र आहूत करने की शक्ति राज्यपाल में निहित होती है. राज्यपाल ने कहा कि मैंने महसूस किया है कि कई बार सत्र का अवसान नहीं किया जाता. उन्होंने कहा कि इस पर गंभीरता पूर्वक विचार किए जाने की जरूरत है.
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प्राइवेट मेंबर बिल को बढ़ावा देने की जरूरत
विधान सभा की बैठकों की घटती संख्या को लेकर भी राज्यपाल ने जताई चिंता. उन्होंने कहा कि प्राइवेट मेंबर बिल को भी ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाना चाहिए. राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि अगर सरकार के पास कानून बनाने या और कोई बिजनेस नहीं हो,तो जनता की समस्याओं पर भी सदन में चर्चा हो सकती है. विधायी कार्यों की सदन गंगोत्री है.
सदन में जनप्रतिनिधियों के व्यवहार पर भी राज्यपाल ने जताई चिंता
राज्यपाल ने सदन में जनप्रतिनिधियों के व्यवहार पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा कि सदन में मर्यादा और अनुशासन रखना भी बहुत जरूरी है. वे बोले कि कई बार किसी विधेयक पर सदन में इतना हंगामा और शोर-शराबा होता है कि पता ही नहीं लगता कि किस पर चर्चा हो रही है और विधेयक पारित हो जाता है. राज्यपाल ने कहा कि यह भी बड़ा चिंतनीय और गंभीर विषय है जिस पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए.
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राज्यपाल कलराज मिश्र के संबोधन की प्रमुख बातें
राज्यपालों के विधेयक को रोकने के मामलों पर कलराज मिश्र ने कहा कि जो विधेयक राज्यपाल को भेजा जाता है, उसे पूरी तरह से राज्यपाल को देखना होता है. राज्यपाल को विधेयक पर गहनता से विचार करना होता है. संवैधानिक आधार पर राज्यपाल को संतुष्टि होती है तभी वह स्वीकृति प्रदान करता है ऐसा नहीं होता है तो संशोधन कर उसे भेजने के लिए कह सकता है यही संवैधानिक व्यवस्था है.
विधानसभा का सत्र राज्य सरकार की अनुशंसा पर आहूत करने की शक्ति राज्यपाल में निहित होती है. तीन बार सदन आहूत किए जाते हैं उनमें बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र प्रमुख होते हैं. किसी विशेष कार्य से भी सत्र बुलाया जा सकता है . मैंने महसूस किया है कि सत्र आहूत करने के बाद सत्रावसान नहीं किया जाता है और सीधे सत्र बुलाने की परंपरा चली है. वह लोकतंत्र के लिए घातक है. विधायकों के अधिकारों का हनन होता है. सदन का सत्रावसान नहीं किया जाता है तो एक ही सत्र की कई बैठकर चलती रहती है. इससे विधायकों को प्रश्न पूछने से अधिकार से वंचित हो जाते हैं.
नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने भी जताई तीन सत्रों पर सहमति
नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने भी अपने संबोधन में विधानसभा के कम से कम तीन सत्रों पर सहमति जताई. उन्होंने कहा कि विधानसभा सत्र के साथ समितियों को भी गंभीरता से लिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि विधानसभा में कुछ मौके ऐसे भी रखे जाने चाहिए, जब सदन में विधान सभा की समितियों के कामकाज और उनकी रिपोर्ट पर चर्चा हो.