Heerak Jayanti: तनसिंह और क्षत्रिय युवक संघ की कहानी, सिर्फ चार साल की उम्र में जागीर संभाली
Heerak Jayanti: राजस्थान ही नहीं, पूरे भारत में क्षत्रिय समाज के बीच सम्मान के साथ लिया जाना वाला नाम तनसिंह. बाड़मेर निवासी तनसिंह (Tansingh) जिन्होंने सिर्फ चार साल की उम्र में जागीर संभाली. 1949 में देश के आजाद होने के ठीक बाद बाड़मेर नगर पालिका के अध्यक्ष बने. 1952 में और 1957 में बाड़मेर से विधायक बने. 1962 और 1977 में बाड़मेर से सांसद बने लेकिन तनसिंह के लिए ये छोटा परिचय है. क्योंकि तनसिंह को आज जिस वजह से समाज याद करता है वो है क्षत्रिय युवक संघ.
Heerak Jayanti: राजस्थान ही नहीं, पूरे भारत में क्षत्रिय समाज के बीच सम्मान के साथ लिया जाना वाला नाम तनसिंह. बाड़मेर निवासी तनसिंह (Tansingh) जिन्होंने सिर्फ चार साल की उम्र में जागीर संभाली. 1949 में देश के आजाद होने के ठीक बाद बाड़मेर नगर पालिका के अध्यक्ष बने. 1952 में और 1957 में बाड़मेर से विधायक बने. 1962 और 1977 में बाड़मेर से सांसद बने लेकिन तनसिंह के लिए ये छोटा परिचय है. क्योंकि तनसिंह को आज जिस वजह से समाज याद करता है वो है क्षत्रिय युवक संघ. वो संगठन जिसके जरिए तनसिंह ने क्षत्रिय समाज को संस्कारित और संगठित करने का सपना देखा.
तनसिंह का शुरुआती जीवन
तनसिंह का जन्म 25 जनवरी 1924 को हुआ. बाड़मेर का रामदेरिया गांव के रहने वाले थे लेकिन जन्म अपने ननिहाल जैसलमेर के बैरसियाला में हुआ. पिता रामदेरिया के ठाकुर बलवंत सिंह महेचा और मां मातीकंवर सोढ़ा. जन्म के चार साल बाद ही पिता की मौत हो गई और एक छोटा बच्चा तणेराज बन गया ठाकुर तनसिंह. एक गांव के ठाकुर जिनकी साला इनकम सिर्फ 90 रुपए. मां ने छोटी उम्र में ही गांव से 80 किलोमीटर दूर बाड़मेर पढ़ने भेजा.
व्यक्तित्व निर्माण में मां की भूमिका
जब छोटी उम्र में पिता की मौत हो गई. तो विरासत तनसिंह के कंधों पर थी लेकिन जिम्मेदारी छोटे बच्चे से ज्यादा मां मोती कंवर पर थी. मां ने बेटे तनसिंह को शिक्षित और सशक्त बनाने का फैसला लिया और गांव से दूर शहर में पढ़ने भेजा. खुद गांव में ही रुककर खेती का काम कराया. उस दौर में पति का निधन, बच्चे को शिक्षित करने का फैसला, छोटे बच्चे को भी अकेले बाड़मेर में छोड़ना. इस भरोसे के साथ कि मुश्किलों का सामना अपने आप करेगा. और खुद गांव में जिम्मेदारियों को संभाला. मां के इन कड़े और बड़े फैसलों, मुश्किलों से मुकाबला हिम्मत और हौसलें के साथ लेकिन संस्कारों की परीधी में. इसी ने तनसिंह के व्यक्तित्व के निर्माण में अहम भूमिका निभाई.
संघर्ष और शिक्षा और सियासत
बाड़मेर में पढ़ाई के बाद सिर्फ 14 साल की उम्र में ही जोधपुर चले गए. चोपासनी स्कूल में दसवीं तक पढ़ाई की. फिर कॉलेज की पढ़ाई करने 1942 में झुंझुनूं में पिलानी चले गए, जहां बिरला कॉलेज में पढ़ाई की. यहां से बीए पास कर 1946 में नागपुर चले गए. वहां वकालत की पढ़ाई पूरी की और फिर बाड़मेर आकर वकालत करना शुरु किया. यहां से सियासत में एंट्री हुई. 1949 में नगर पालिका के अध्यक्ष बने. फिर 1952 और 1957 में विधायक बने. 1962 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में तनसिंह ने सिर्फ 9 हजार रुपए खर्च किए थे. और बड़े अंतर से चुनाव जीता था.
क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना
इसका स्थापना दिवस 22 दिसंबर को मनाया जाता है. क्योंकि इसके वर्तमान स्वरूप की स्थापना 22 दिसंबर 1946 को हुई थी लेकिन कॉलेज के दिनों में ही उनके अंदर समाज के लिए कुछ करने की कुलबुलाहट थी. तनसिंह में भी छोटी उम्र से ही समाज को मजबूत करने. क्षत्रिय समाज को संस्कारवान करने जैसे विचारों की ज्वाला का शुरुआती स्वरुप चिंगारी के रुप में हमेशा उनके जहन में जलता रहता था. इसी बीच 1944 में पिलानी में कॉलेज पढ़ाई करते समय राजपूत छात्रावस में रहते हुए ही दिवाली के दिन क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की.
5 और 6 मई 1945 को इसका पहला अधिवेशन जोधपुर में हुआ. फिर झुंझुनूं के कालीपहाड़ी गांव में 11 और 12 मई 1946 को दूसरा अधिवेशन हुआ लेकिन संगठन जिस तरह से काम कर रहा था. जिस दिशा में जाता हुआ दिख रहा था. उससे वो संतुष्ट नहीं थे. इसी बीच वो नागपुर चले गए. वहां चिंतन करते करते उन्हौने एक नई प्लानिंग तैयार की कि संगठन कैसा होना चाहिए? कार्यप्रणाली कैसी हो और लक्ष्यों तक कैसे पहुंचेंगे?
21 दिसंबर 1946 को जयपुर में संघ के उस वक्त जो भी सक्रिय कार्यकर्ता थे. उनकी बैठक बुलाई और अपनी योजना सामने रखी कि किस सोच के साथ आगे बढ़ना है, लक्ष्य क्या होगा और वहां तक कैसे पहुंचना है. सभी सदस्य सहमत हुए. तो अगले ही दिन यानि 22 दिसंबर के दिन ही संगठन के नए स्वरूप की स्थापना की. तीन दिन बाद यानि 25 दिसंबर से श्री क्षत्रिय युवक संघ के नए स्वरूप का पहला शिविर हुआ.
तनसिंह को यहां पहले शिविर में संघ प्रमुख चुना गया. 1949 में संघ के फिर चुनाव हुए. फिर तनसिंह ही संघप्रमुख बने. इधर 1949 में ही उनकी सियासत में एंट्री हो चुकी थी. बाड़मेर नगर पालिका अध्यक्ष. फिर विधायकी और फिर दो बार की सांसदी. 1949 में खुद को संघ प्रमुख के पद से अलग किया और अपने करीबी आयुवान सिंह हुडील को संघ प्रमुख बनवाया. आयुवान सिंह हुडील 1959 में फिर संघ प्रमुख बने. लेकिन जब आयुवान सिंह ने राजनीति से संन्यास ले लिया तो फिर यही जिम्मेदारी तनसिंह ने वापिस संभाली और 1969 तक तनसिंह ही इसी पद पर रहे.
1969 में नारायणसिंह रेड़ा को संघप्रमुख बनाया गया. अक्टूबर 1989 में जब नारायणसिंह जी का निधन हो गया. तो उसके बाद से अब तक भगवान सिंह रोलसाहबसर संघ प्रमुख है. भगवान सिंह संघ के चौथे प्रमुख है. सीकर के रोलसाहबसर गांव में जन्मे भगवान सिंह 1963 में रनतगढ़ में हुए एक शिविर के बाद संघ से जुड़े. 1967 में जब बाड़मेर के सिवाना में अपना कारोबार शुरु किया. तो भगवान सिंह ही उनके प्रथम सहयोगी के तौर पर सामने आए थे. हालांकि इसी साल जुलाई में वो खुद को मार्गदर्शक की भूमिका में ले गए. और लक्ष्मण सिंह बैण्यां का बास को जिम्मेदारी दी.
RSS के समर्थक रहे हैं तनसिंह
क्षत्रिय युवक संघ का प्रमुख कोई भी बने लेकिन संघ और संघ प्रमुख, सभी तनसिंह के आदर्शों पर ही चलते हैं. तनसिंह ने गांधी जी की हत्या के बाद RSS पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ हुए आंदोलन में भी शामिल हुए थे. आजाद भारत में जब जमीनों के अधिग्रहण को लेकर सरकार ने कानून बनाए तो उसके खिलाफ हुए आंदोलन का भी नेतृत्व किया और जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के साथ चर्चा में समाज का पक्ष रखने की बारी आई तो तनसिंह ने ही पक्ष रखा. तनसिंह जिन्होंने डेढ़ दर्जन किताबों की रचना की.
तनसिंह ने अपना जीवन इस कोशिश में खपाया कि क्षत्रिय समाज के हितों की रक्षा कैसे हो. क्षत्रिय समाज को संगठित और संस्कारवान कैसे बनाया जा सके. तनसिंह ने खुद डेढ़ दर्जन रचनाएं लिखी थी. उनके विचारों और संघर्षों पर भी अगर विस्तार से लिखा जाए तो एक किताब लिखी जा सकती है. संघ के 75 साल पूरे हो गए. इस मौके पर जयपुर में पूरे देश से क्षत्रिय समाज जुट रहा है.