Holi 2023: होली किस तारीख और दिन को पड़ रही है? जानें होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
Holi 2023 date: 28 फरवरी को होलाष्टक लगेगा और साल 2023 की होली 08 मार्च को मनाई जाएगी. इस बार होली बुधवार को पड़ रही है. इस साल 28 फरवरी से होलाष्टक लगेगा. इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है.
Holi 2023 date: 28 फरवरी को होलाष्टक लगेगा और साल 2023 की होली 08 मार्च को मनाई जाएगी. इस बार होली बुधवार को पड़ रही है. यानी होली के अगले दो दिन ऑफिस रहेगा. ऐसे में लोग अपनी छुट्टी को लेकर अभी से रणनीति तैयार कर रहे है. हालांकि 2 दिन बाद ही वीकेंड रहेगी ऐसे में लंबी छुट्टी का प्लान कर रहे लोगों के लिए भी अच्छी खबर है. रंगों के इस त्योहार खेलने से एक दिन पहले होलिका दहन मनाने की परंपरा है. देश के अलग-अलग क्षेत्रों में रंगों के त्योहार होली को मनाने की भी अलग- अलग परंपरा है.
इस साल 28 फरवरी से होलाष्टक लगेगा. इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है. हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है और उसके अगले दिन यानि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होली खेली जाती है. इस साल होलिका दहन की तिथि पर सुबह में भद्रा रहेगी. ऐसे में जानते हैं कि होली कब है? होलिका दहन कब है और होलिका दहन का समय क्या है?
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त (Holika Dahan Shubh Muhurat 2023)
होलिका दहन तिथि- 07 मार्च (मंगलवार) होलिका दहन शुभ मुहूर्त- शाम को 06 बजकर 24 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट रहेगा.
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 06 मार्च दिन मंगलवार को शाम 04 बजकर 17 मिनट पर प्रारंभ होगी और इस तिथि का समापन 07 मार्च दिन बुधवार को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर होगा. फाल्गुन पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में होलिका दहन होती है. ऐसे में इस साल होलिका दहन 07 मार्च दिन मंगलवार को है.
होलिका दहन की विधि (Holika Dahan Puja Vidhi)
होलिका दहन में किसी पेड़ की शाखा या लकड़ी को जमीन में गाड़कर उसे चारों तरफ से लकड़ी, कंडे या उपले लगाकर चारों तरफ से ढक दिया जाता है. इन सारी चीजों को शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है. इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां और उबटन डाले जातें है. ऐसी मान्यता है कि इससे साल भर व्यक्ति को आरोग्य कि प्राप्ति हो और सारी बुरी बलाएं इस अग्नि में भस्म हो जाती हैं. होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है. होलिका दहन को कई जगह छोटी होली भी कहते हैं.
विभिन्न क्षेत्रों की अलग-अलग होली (Holi Celebrations in Different States of India)
देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से होली मनाई जाती है. मध्य प्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है. ये मुख्य होली से भी अधिक जोर-शोर से मनाई जाती है. ब्रज क्षेत्र की होली पूरे भारत में मशहूर है. खास तौर पर बरसाना की लट्ठमार होली देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. हरियाणा में भाभी द्वारा देवर को सताने की परंपरा है. महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से खेलने की परंपरा है. दक्षिण गुजरात के आदि-वासियों के लिए होली बहुत बड़ा पर्व है. वहीं छत्तीसगढ़ में इस दिन लोक-गीतों का प्रचलन है.
होली से जुड़ी पौराणिक कथा (Holi signficance & Katha)
होली से कई कथाएं प्रचलित हैं. पुराणों में हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कथा सबसे खास है. इसके अनुसार असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल पसंद नहीं थी. हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद को सबक सिखाना चाहते थे. जब सारी कोशिशों के बाद भी हिरण्यकश्यप प्रहलाद को विष्णु की भक्ति करने से रोक और उसे बदल नहीं पाए तो उन्होंने उसे मार देने की ठान ली.. फिर उन्होंने एक दिन प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली. होलिका को भगवान शंकर से वरदान मिला हुआ था. उसे वरदान में एक ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी. होलिका उस चादर को ओढ़कर और प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई लेकिन वह चादर उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गई और प्रहलाद की जगह होलिका ही जल गई. अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा.