Indian Law: जब किसी महिला पर मायके या ससुराल वालों की तरफ से किसी भी तरह की हिंसा होती है, तो उसे कानून की नजर में घरेलू हिंसा ( Domestic violence ) माना जाता है. देश में महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने को कई तरह के कानून बनाए गए हैं. इनमें सबसे पहला कानून दहेज निषेध अधिनियम 1961 ( Dowry Prohibition Act ) है. जिसके तहत किसी भी तरह के दहेज का लेन-देन अपराध है. साथ हि, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 भी महिलाओं की रक्षा के लिहाज से बनया गया है. इसी तरह घरेलू हिंसा अधिनियम के सेक्शन 3 में घरेलू हिंसा के प्रकार और इससे संबंधित लोगों की परिभाषा उल्लेखित की गई है. आइए इन नियमों के बारे में जानते हैं कुछ खास बातें:-


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घरेलू हिंसा के तहत यह रिश्ते आते हैं-


  • खून के रिश्ते, जैसे मां, पिता, भाई, बहन आदि.

  • शादी और ससुराल से संबंधित लोग, जैसे पति, पत्नी, सास, ससुर, बहू, देवर, भाभी, ननद और ससुराल वाले आते हैं.

  • बच्चों के संबंधित, मतलब जिनकी उम्र 18 साल से कम है. इसमें खुद के जन्म दिए हुए, गोद लिए हुए और सौतेले बच्चे शामिल हैं.

  • शादी जैसे रिश्ते, जैसे लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े और ऐसे युगल, जिनकी शादी कानूनी तौर पर अमान्य है.

  • महिलाओं को इन सभी रिश्तों के विरुद्ध घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत गुहार लगाने का अधिकार है.


ये हैं घरेलू हिंसा के प्रकार


  • शारीरिक शोषण– शारीरिक दर्द, आपराधिक शक्ति दिखाना, मारपीट करना, महिला के जीवन के लिए खतरा पैदा करना आदि.

  • यौन शोषण– महिला की गरिमा को गिराना, और नीचा दिखाना आदि.

  • मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग– भद्दे मजाक करना, अपमानित करना, धमकाना, मानसिक शोषण करना आदि.

  • आर्थिक परेशानी जैसे- महिला और उसके बच्चों के भरण-पोषण के लिए चीजें ना देना, मौद्रिक संसाधन जैसे पैसे आदि नहीं देना, महिला की हिस्सेदारी वाली संपत्ति का निपटारा ना करना आदि.



ये हैं पीड़िताओं के लिए कानूनी सहायता


  • शेल्टर होम्स- जरूरतमंद पीड़िताएं देश की सरकार से आश्रय घर/ शेल्टर होम्स भी ले सकती हैं.

  • चिकित्सा सुविधाएं- पीड़ित महिलाओं को सरकार की ओर से फ्री मेडिकल सुविधा दी जाती है है.

  • घर में रहने का अधिकार- अगर महिला को घरेलू हिंसा की वजह से उसके हस्बैंड के या उसके अपने घर से निकाल दिया गया है. तो ऐसी दशा में सरकार महिला को वहां रहने का अधिकार दिलाती है. घर से निकाले जाने से महिला का वहां रहने का अधिकार समाप्त नहीं होता है. महिला को अपने पिता और पति के घर में रहने का पूरा अधिकार है.

  • सुरक्ष- घरेलू हिंसा से पीड़िता को सरकार की ओर से सुरक्षा भी दी जाती है.

  • इन्टरिम मेंटेनेंस- इन्टरिम मेंटेनेंस का मतलब वह पैसा है जो मुकदमें के दौरान सरकार महिला को उनसे दिलवाती है, जिनके साथ महिला का मुकदमा चल रहा है. ताकि, केस के दौरान महिला को परेशानी ना हो.

  • कस्टडी ऑर्डर्स- इस एक्ट के अंतर्गत पीड़िता सरकार की ओर से अपने बच्चों के कस्टडी ऑर्डर्स ले सकती है.

  • नुकसान की भरपाई- जिसने महिला पर घरेलू हिंसा की है, उसे पीड़िता को कम्पेन्सेट करना होता है. यह कंपेनसेशन, प्रॉपर्टी या किसी अन्य रूप में भी दिया जा सकता है.