Jaipur: राज्य में सरकारी महकमे सूचना अधिकार कानून के प्रति बेरुखी दिखा रहे हैं. इन महकमों में सबसे ज्यादा का भाव ग्रामीण विकास और पंचायत राज विभाग के अफसरों में है. पिछले पौने दो साल में सूचना आयोग में सुनवाई के लिए आए मामलों में 65 प्रतिशत से ज्यादा पंचायतीराज विभाग के थे. 


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गौरतलब है कि राज्य में सूचना का अधिकार कानून लागू है और सरकारी विभाग लोगों को निश्चित समय में सूचनाएं उपलब्ध कराने के लिए पाबंद है. इसके लिए प्रत्येक विभाग में लोक सूचना अधिकारी तक बनाए गए हैं. इसके बावजूद अधिकारी आवेदनकर्ताओं को सूचना देने में आनाकानी करते हैं. 


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इस पर आवेदनकर्ता सूचना के लिए सूचना आयोग में अपील करते हैं. राज्य सूचना आयुक्त नारायण बारेठ ने 21 माह में सूचना अधिकार कानून की अवहेलना करने के मामले में जिन 306 अधिकारियों पर जुर्माना लगाया है ,उनमे 211 पंचायतीराज महकमे के हैं. बारेठ ने इस दौरान 7 हजार से ज्यादा मामलों का निस्तारण किया है.    


जुर्माना राशि जमा कराने में भी बेपरवाह
​सरकारी विभागों के अधिकारी न केवल सूचनाएं उपलब्ध कराने में बल्कि सूचना आयोग से जुर्माना होने के बाद उसे भी जमा कराने में बेपरवाही दिखाते हैं. इन अधिकारियों में ज्यादातर या तो ग्राम विकास अधिकारी है या विकास अधिकारी है. आयोग को जब कुछ मामलों में लगा कि ये अधिकारी जुर्माने की राशि जमा कराने के प्रति भी बेपरवाह है तो आयोग ने तय सीमा में राशि जमा न कराने वाले अफसरों की सर्विस बुक में इसका उल्लेख करने का आदेश दिया. आयोग की इस कड़ाई का असर भी हुआ और सूचना आवेदनों को गंभीरता से लिया जाने लगा. कुछ मामलों में आयोग ने आवेदक को सूचना  उपलब्ध कराने के साथ ही उसे संस्थान विभाग के सूचना पटल पर प्रकाशित और  प्रसारित करने का भी आदेश दिया.


​जुर्माना भी सबसे ज्यादा पंचायतीराज अफसरों पर 
मांगी गई सूचना रोकने से परस्पर विवाद पैदा होते है और संदेह की दीवारें खड़ी होने लगती है. बारेठ के 21 महीने के समय में कानून की पालना करने में विफल रहने वाले जिन अधिकरियों पर जुर्माना लगाया है उनमे पंचायत राज के बाद सबसे अधिक 35 अधिकारी नगरीय विकास और स्वायत शासन के है. इसमें शिक्षा विभाग के 16 और चिकित्सा महकमें के 14 अधिकारी शामिल रहे. अधिकारियों पर लगे इस जुर्माने की राशि 9 लाख हजार अधिक की है.


अपील की सुनवाई ही नहीं करते अधिकारी 
आयोग ने इस मामले में कहा यह विडंबना है कि पंचायत राज के जन प्रतिनिधि अक्सर प्रथम अपील की सुनवाई नहीं करते और लोगो को द्व्तीय अपील के लिए आयोग तक आना पड़ता है. पंचायत प्रतिनिधि अपने अधिकारों के लिए तो स्वर उठाते है मगर एक नागरिक को मिले प्रथम अपील के अवसर को अनदेखा करते है. इनमें कुछ मामले नागौर जिले के भी है, जहां 1959 में तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व. नेहरू ने पंचायती राज प्रणाली की बुनियाद रखी थी.