सदन में आदिवासी विधायकों की खरी–खरी, बोले- आदिवासी क्षेत्रों के स्कूलों में धार्मिक गतिविधियां बंद हों
राजस्थान विधानसभा में भारतीय ट्राइबल पार्टी के विधायक राजकुमार रोत ने भी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों को धार्मिक प्रयोगशाला बनाए जाने के आरोप लगाते हुए कहा कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कहीं ईसाई मिशनरियों का प्रचार हो रहा है.
Jaipur News: बुधवार को राजस्थान विधानसभा में यूं तो शिक्षा विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा थी, लेकिन इस दौरान धर्म से जुड़े मामलों की गूंज भी सुनाई दी. विधायक अमीन खां ने भारत को सेक्युलर मानने से इनकार कर दिया तो सफिया जुबेर ने खुद समेत मेव समाज को भगवान राम और कृष्ण का खून बताया.
इसी कड़ी में भारतीय ट्राइबल पार्टी के विधायक राजकुमार रोत ने भी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों को धार्मिक प्रयोगशाला बनाए जाने के आरोप लगाते हुए कहा कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कहीं ईसाई मिशनरियों का प्रचार हो रहा है.
यह भी पढे़ं- राजस्थान के 17 शहरों के हजारों लोगों को घर देगी गहलोत सरकार, ऑनलाइन आवेदन शुरू
रोत बोले कि कहीं हिंदुत्व का, तो कहीं अलग-अलग बाबाओं का प्रचार हो रहा है. इन सबसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र एक धार्मिक प्रयोगशाला में तब्दील हो गया है.
क्या बोले विधायक राजकुमार रोत
विधायक राजकुमार रोत ने कहा कि हम धर्मनिरपेक्ष और पंथनिरपेक्ष की बात करते हैं, ऐसे में विद्यालयों के अंदर जो धार्मिक गतिविधियां चल रही है उन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मेरा कई विद्यालयों में जाना हुआ वहां बच्चे यह तो नहीं जानते कि पहली शिक्षिका ज्योतिबा फुले थी या फिर हमारे स्वतंत्रता सेनानी कौन थे? लेकिन उन्हीं बच्चों को काल्पनिक देवी-देवताओं के बारे में पूछेंगे तो सारी जानकारी मिल जाती है.
विधायक राजकुमार रोत ने कहा कि अगर इन धार्मिक गतिविधियों का उदाहरण देखना है तो सोमवार को देखा जाए, जब हमारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति 30 से 40% ही मिलती है, तो वही बालिकाओं की उपस्थिति तो सोमवार को 20% भी नहीं होती, क्योंकि जिन दिनों में धार्मिक गतिविधियों के लिए व्रत किए जाते हैं उन दिनों में बच्चियां स्कूल नहीं आती.
आदिवासी इलाकों में बच्चों के ड्रॉपआउट की वजह
उन्होंने कहा कि चाहे नवरत्रि हो या दशा माता की पूजा हो बच्चे 12 से 15 दिन तक स्कूल नहीं आते क्योंकि उनकी शुरुआत उसी धार्मिक माहौल वाले स्कूल से हुई है. वहीं, राजकुमार रोत ने बच्चों के ड्रॉप आउट होने पर भी सरकार को सुझाव दिया कि आदिवासी इलाकों में बच्चों के ड्रॉपआउट होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्हें स्थानीय भाषा में नहीं पढ़ाया जाता, ऐसे में पांचवी तक की शिक्षा बच्चों को उनकी स्थानीय भाषा में दी जाए.