Jaipur news: राजस्थान के जयपुर मेट्रो की स्थाई लोक अदालत ने कहा है कि उपभोक्ता का लोन स्वीकृत करने के बाद उसे स्वीकृत हुए लोन की पूरी राशि नहीं देना फाइनेंस कंपनी का सेवादोष है. ऐसे में फाइनेंस कंपनी से उसने जितनी लोन राशि ली है वह उतनी ही राशि चुकाने के लिए जिम्मेदार है, फिर चाहे फाइनेंस कंपनी ने उसे उससे ज्यादा राशि का लोन ही क्यों न दिया हो. वहीं अदालत ने परिवादी को कहा है कि वह लोन की बकाया राशि 17520 रुपए विपक्षी फाइनेंस कंपनी को जमा कराए.


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स्थाई लोक अदालत के अध्यक्ष हरविन्दर सिंह व सदस्य शंभू दयाल शर्मा ने यह आदेश महेश सैनी के परिवाद पर दिए. परिवाद में कहा गया कि आदित्य बिरला फाइनेंस कंपनी ने 28 फरवरी 2019 को उसका 2.40 लाख रुपए का लोन मंजूर किया था. परिवादी की स्वीकृति मिलने पर कंपनी ने उसके बैंक खाते में एनईएफटी के जरिए 109520 रुपए भेज दिए, लेकिन स्वीकृत लोन की बकाया राशि 130480 रुपए उसे नहीं दी. परिवाद में कहा गया कि फाइनेंस कंपनी उससे मासिक किस्त लोन राशि 2.40 लाख रुपए पर ही ले रही है.


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जबकि मासिक किस्त  109520 रुपए पर ही लेनी चाहिए थी. इस पर उसने लोन अकाउंट बंद करने के लिए कहा तो कंपनी ने एक साल के लॉक इन पीरियड का हवाला देकर मना कर दिया. इसने स्थाई लोक अदालत में चुनौती देते हुए कहा कि उसे स्वीकृत लोन राशि के बजाय कम राशि दी गई है. ऐसे में मासिक किस्त स्वीकृत लोन के आधार पर लेना गलत है. इससे परिवादी को मानसिक संताप हो रहा है. इस पर अदालत ने कहा कि परिवादी लिए हुए लोन के 92 हजार रुपए दे चुका है, इसलिए वह बकाया 17520 रुपए ही फाइनेंस कंपनी में जमा कराएगा.