जयपुर: परीक्षा कोई भी हो वह परीक्षा देने वाले के लिए कड़ी चुनौती होती है लेकिन राजस्थान में सिर्फ परीक्षा देने वाले ही नहीं बल्कि भर्ती करने वाली ऐजेन्सियों और सरकार के लिए भी यह पिछले दिनों कई दुश्वारियां खड़ी कर चुकी है लेकिन अब सरकार के मुखिया भर्ती परीक्षा में पर्चा लीक करने वालों पर पहले से ज्यादा सख्ती बरतने के मूड में दिख रहे हैं.


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सख्त कानून लाने के संकेत  


यही कारण है कि सीएम अशोक गहलोत ने आगामी विधानसभा सत्र में पर्चा लीक करने वालों पर सख्त कानून लाने के संकेत दिए हैं. सरकार की मंशा है कि कानून इतना सख्त लाया जाए कि पर्चा लीक करने वालों पर हत्या के बराबर का अपराध माना जाए और उम्र कैद की सज़ा के प्रावधान हों.


पर्चा लीक के मामलों में वाकई में देखा जाए तो लाखों युवाओं के सपनों की हत्या होती है. शायद इसी सोच से उम्र कैद के प्रावधान लाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन क्या युवाओं का नजरिया भी सरकार की इस कोशिश के मामले में ऐसा ही है?


पर्चा कोई भी हो. उसे लेने वाला और देने वाला दोनों ही सजग होते हैं. सब अपनी-अपनी तैयारी करते हैं और परीक्षा में पास होने के लिए मेहनत भी करते हैं और अगर यह परीक्षा किसी नौकरी के लिए होने वाली भर्ती परीक्षा हो तो उसकी अहमियत और ज्यादा बढ़ जाती है.


सवाल पूरे सिस्टम पर 


अगर ऐसी भर्ती परीक्षाओं के पर्चे लीक हो जाते हैं तो सवाल पूरे सिस्टम पर खड़े होते हैं. सवाल यह उठता है कि नौजवानों के अरमानों की हत्या करने वाले ऐसे पेपर लीक गिरोह के साथ क्या किया जाए?


सवाल यह उठता है कि ऐसे पर्चा लीक के घटनाक्रम को कैसे रोका जाए? और सवाल यह उठता है कि क्या कानून बनाकर पर्चा लीक करने वालों पर लगाम लगाई जा सकती है?.दरअसल सरकार का एक धड़ा मानता है कि पेपर लीक करने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. 


अगर ऐसा हुआ और सख्त कानून बनाया गया तो ही पेपर लीक गिरोह को रोका जा सकता है. सरकार के मन्त्री प्रताप सिंह खाचरियावास कहते हैं कि राजस्थान सरकार ने बहुत सख्त कार्रवाई पहले भी की है और आगामी सत्र में भी पेपर लीक गिरोह पर कार्रवाई करने के लिए उम्रकैद के प्रावधान वाला कानून लाने जा रहे हैं.


 सरकार की इस तैयारी पर बीजेपी ने सवाल उठाये हैं. नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ कहते हैं कि मौजूदा सरकार 16 बार पेपर लीक होने का अनोखा रिकॉर्ड बना चुकी है. पहली भी सरकार कानून लाई लेकिन उसके बाद भी सरकार की नाक के नीचे पेपर लीक हुए.


बीजेपी ने कहा कि सरकार सबसे पहले यह बताए कि नये कानून के तहत अब तक कितने पेपर लीक के आरोपियों को पकड़ा और कितनों को सजा दिलाई है ? कितने आरोपियों की? संपत्ति जब्त की? और किन-किन संस्थाओं की? मान्यता रद्द की?


बीजेपी ने कहा कि साढ़े चार साल तक युवाओं के सपनों का खून करने वाली सरकार को अब आचार सहिंता के तीन महीने पहले युवाओं की याद आ रही है. बीजेपी का कहना है कि अब इन दांव-पेंचों से कांग्रेस की सरकार को नहीं बचाया जा सकता.


यह सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं  क्योंकि कानून तो पहले भी थे. आरपीएससी सदस्य बाबूलाल कटारा उन कानूनों की गम्भीरता भी समझते थे.. दरअसल पेपर लीक के मामलों में दोषी को उम्र कैद के प्रावधान वाले बिल से पहले सरकार इस पर कानून ला चुकी है. पिछली बार राजस्थान विधानसभा में पारित कानून में दोषियों को 10 साल की सजा के साथ ही 10 करोड़ रुपए तक के जुर्माने के प्रावधान भी किये गए थे.


मन्त्री प्रताप सिंह कहते हैं कि सरकार ने पेपर लीक करने वालों की सम्पत्ति ध्वस्त करने जैसी कार्रवाई भी की है.  लेकिन अब पहले के मुकाबले ज्यादा सख्त कानून लाया जा रहा है. यही कारण है कि मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत ने इस बारे में मुख्य सचिव उषा शर्मा को निर्देश दिए हैं. इसके साथ ही उन्होंने इस मामलें RPSC, कार्मिक विभाग और अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड से भी बातचीत करके ज्यादा बेहतर प्रक्रिया तैयार करने के लिए भी कहा है.


दरअसल मुख्यमन्त्री की तरफ़ से पेपर लीक के मामलों में सख्त कानून लाने और उम्र कैद के प्रावधानों का बयान सामने आने के बाद एक धड़ा इसे सचिन पायलट से सुलह के संकेत के रूप में भी देख रहा है.  लेकिन क्या वाकई ऐसा माना जा सकता है? दरअसल सचिन पायलट ने 11 से 15 मई तक निकाली अपनी पदयात्रा के समापन के मौके पर सरकार के सामने तीन मांगे रखी थी. जिसमें बेरोजगार युवाओं को मुआवजे, आरपीएससी भंग और वसुंधरा सरकार के भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग थी. लेकिन कानून लाने की मांग तो उसमें थी ही नहीं. 


ऐसे में सवाल यह उठता है? कि अगर सख्त कानून का मैसेज पायलट से सुलह के लिए नहीं है? तो क्या बेरोजगारों से सुलह का संकेत माना जा सकता है?


सवाल यह भी कि क्या उम्र कैद देने के प्रावधान वाला कानून लाने के बाद पेपर लीक पूरी तरह रुक जाएंगे?


और सवाल यह कि क्या इस कानून के आने के बाद भर्ती परीक्षा में बैठने वाले युवा सरकार को अपना संरक्षक और हित चिन्तक मानने के लिए तैयार होंगे?


और सवाल यह भी कि क्या यह सब युवाओं को साथ लेने की कवायद के लिए हो रहा है?


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