समाज संगठित और शक्तिशाली नहीं तो शस्त्र भी कुछ नहीं कर सकते, स्वयंसेवकों ने शस्त्र पूजन के बाद निकाला पथ संचलन
जयपुर न्यूज: स्वयंसेवकों ने शस्त्र पूजन के बाद पथ संचलन निकाला.राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना 1925 में नागपुर में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने कुछ स्वयंसेवकों के साथ की थी.
जयपुर न्यूज: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से विजय दशमी उत्सव मनाया गया. संघ ने अपनी स्थापना के 98 वर्ष पूरे कर लिए और दो साल बाद 100 वर्ष का हो जाएगा. आरएसएस की ओर से राजधानी जयपुर के 27 नगरों में विजयदशमी कार्यक्रम आयोजित किए गए. संघ के स्वयंसेवकों ने शस्त्र पूजा के बाद पथ संचलन कर समाज में शक्ति जागरण का संदेश दिया.
इस मौके पर वक्तओं ने कहा कि समाज संगठित औरा शक्तिशाली नहीं होगा तो शस्त्र भी कुछ नहीं कर सकते और कोई भी देश सामर्थ्यशाली नहीं बन सकता है. विश्व पटेल पर भारत शक्तिशाली देश के रूप में अपना स्थान बना रहा है, लेकिन इसके लिए हमसब का योगदान आवश्यक है.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना 1925 में नागपुर में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने कुछ स्वयंसेवकों के साथ की थी. नागपुर से अंकुरित हुआ संघ का बीज आज वटवृक्ष बन गया है. 98 वर्ष की इस यात्रा में आरएसएस को कई उतार चढ़ाव से होकर गुजरना पड़ा. देश में आज आरएसएस की 60 हजार से ज्यादा शाखाएं लगती है. न केवल भारत बल्कि विश्व के कई देशों में भी संघ शाखाएं लगती है. संघ अपना स्थापना दिवस नहीं मनाता, लेकिन बरसों से विजयदशमी पर शक्ति की साधना की संस्कृति चली आ रही है. ऐसे में संघ ने भी इस दिन को अपने छह प्रमुख उत्सवों में शामिल करते हुए शस्त्र पूजन और संचलन के जरिए समाज में शक्ति जागरण का संदेश दे रहा है.
राजधानी जयपुर में संघ की ओर से 27 नगरों में 41 तथा सांगानेर को मिलाकर 50 स्थानों पर शस्त्र पूजन और संचलन के कार्यक्रम रखे गए. इस बार बस्ती के स्तर पर संचलन निकाले गए, जिनमें एक नगर की चार या पांच बस्तियों का सामूहिक कार्यक्रम रखा गया. संघ स्थापन पर सबसे पहले स्वयंसेवकों ने शारीरिक प्रदर्शन किए. इसके बाद बौद्धिक में वक्ताओं ने आजादी के पहले गुलामी के कालखंड से लेकर वर्तमान हालात पर शक्ति की जरूरत के बारे में जानकारी दी.
इसके बाद शहर के विभिन्न मार्गों से होकर संचलन गुजरे, घोष की स्वर लहरियों ने स्थानीय लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित किया. विभिन्न मोहल्ला विकास समिति और संगठनों की ओर से पथ संचलन पर पुष्प वर्षा करते हुए स्वागत किया. इससे पहले संघ स्थान स्वयं सेवकों ने वर्ष भर चलने वाले शारीरिक कार्यक्रम दंड योग सूर्य नमस्कार और नियुद्ध का प्रदर्शन किया. कार्यक्रमों में शस्त्र पूजन के साथ शुरुआत हुई.
तीन पीढ़ियों ने किया शस्त्र पूजन-संचलन -
संघ की ओर से किए गए शस्त्रपूजन और पथ संचलन में तीन पीढ़ियां तक शामिल हुई. पौंड्रिक उद्यान सहित कुछ जगहों पर तीन पीढ़ियों को एक साथ कार्यक्रम में शामिल होते हुए देखा गया. संचलन में युवा, विद्यार्थी, व्यापारी, कर्मचारी सहित विभिन्न वर्गों से जुड़े स्वयंसेवक शामिल हुए. इनके अलावा समाज के गणमान्य लोग भी विजयदशमी उत्सव में पहुंचे.
संचलनों का संगम भी हुआ
संघ की ओर से निकाले गए पथ संचलनों में ज्यादातर सुबह निकले, वहीं आधा दर्जन स्थानों पर अपराह्न में शस्त्र पूजन के बाद संचलन निकाले गए. विद्याधर नगर में शाम को एनबीएफ स्कूल तथा गोकुलपुरा करधनी से संचलन रवाना हुए. दोनों संचलन अलग अलग मार्गों से होकर रवाना हुए तथा बजरंग द्वार पर दोनों संचलनों का संगम हुआ. इस दौरान बड़ी संख्या में मौजूद लोगों ने फूल बरसाकर उत्साह वर्धन किया. संगम के बाद दोनों संगमों का करधनी थाना होते हुए करधनी सेंट्रल पार्क में जाकर समापन हुआ.
मानसरोव में हेमू कालाणी पार्क में आयोजित शस्त्र पूजन कार्यक्रम में मुख्य वक्ता मानसिंह चौहान ने कहा कि सनातन धर्म में प्रत्येक देवी देवताओं के हाथ में शस्त्र रहे जो शक्ति के प्रतिरूप में माने जाते हैं. शास्त्रों की रक्षा के लिए भी शस्त्र उठाने पड़ते हैं. समाज जब-जब भी सोया तब तब हमारे देश और समाज की यह दशा हुई है. हम वर्षों तक गुलामी काल संघर्ष सतत संघर्ष करते रहे हैं. समाज हो या कोई भी देश हो, हमेशा शक्तिशाली की ही बात सुनता है, जो कमजोर राष्ट्र होते हैं गुलाम राष्ट्र होते हैं उनकी बात कोई नहीं सुनता.
केवल शास्त्रों से ही काम नहीं चलता समाज को भी संगठित होना पड़ता है. समाज अगर संगठित नहीं है शक्तिशाली नहीं है सामर्थ्यशाली नहीं है तो केवल शस्त्र भी कुछ नहीं कर सकते हैं. आवश्यकता है समाज की संगठित होकर सामार्थ्यशाली होने की. चौहान ने कहा कि व्यक्ति की पहचान याद रखना जरूरी है. संघर्ष कल के दौरान हमें हमारी पहचान भुला दी गई. ईश्वर को भूल गए गौरवशाली इतिहास को योजना बंद तरीके से भुला दिया गया. हमें इतिहास को तोड़ बराबर कर पढ़ाया गया. हो सकता है अपने स्वाभिमान को जगाने की जब तक अपने आप को नहीं पहचानेंगे तब तक हमारा यह समाज राष्ट्रीय शक्तिशाली नहीं हो सकता.
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