Jaipur: अनादरण के मामलों की सुनवाई अब संविदा पर लगे पूर्व न्यायाधीश करेंगे. फिलहाल प्रदेश की पांच जजशिप में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ये न्यायालय स्थापित किए जाएंगे. खास बात यह है कि इन न्यायालयों के पीठासीन अधिकारी से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश और रिटायर कर्मचारी होंगे. पीठासीन अधिकारी को जहां मासिक एक लाख रुपए का मानदेय दिया जाएगा, वहीं कोर्ट स्टाफ को चौबीस हजार रुपए से लेकर पैंतीस हजार रुपए का मानदेय मिलेगा.


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राजस्थान न्यायिक सेवा से सेवानिवृत्त हुए अधिकारी की चेक अनादरण की विशेष अदालत में पीठासीन अधिकारी के तौर पर नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश के बाद राज्य सरकार की ओर से की जाएगी. इसके लिए हाईकोर्ट की वेबसाइट पर आवेदन मांगे जाएंगे. इसमें 64 साल तक की उम्र वाले पूर्व न्यायाधीश आवेदन करेंगे। वहीं कोर्ट स्टाफ के मामले में कर्मचारी की उम्र 65 साल रखी गई है.


 बढ़ते मुकदमों को कम करने की कवायद
प्रदेश सहित देशभर में चेक अनादरण के मुकदमों की संख्या तेजी से बढ रही है. इनके त्वरित निस्तारण के लिए सुप्रीम कोर्ट ने स्व प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को निर्देश दिए थे कि वे अपने हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार के जिला न्यायालय में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर विशेष न्यायालय स्थापित करें और इनमें पूर्व न्यायिक अधिकारियों और कोर्ट स्टाफ को नियुक्त करें. इसके तहत हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से इसकी अधिसूचना को राजपत्र में प्रकाशित कराया गया है.


नियुक्ति से पहले विशेष प्रशिक्षण
पूर्व न्यायाधीशों को इन अदालतों में नियुक्ति देने से पहले प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. राज्य न्यायिक अकादमी की ओर से इन्हें चार सप्ताह की विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी. जिसमें एनआई कोर्ट की प्रक्रिया और साक्ष्य आदि के बारे में बताया जाएगा.


समन तामील हो चुके मुकदमों को ही सुनेगी
जानकारी के अनुसार इन अदालतों में उन्हीं मामलों को भेजा जाएगा, जिसमें विधिवत रूप से आरोपी पक्ष पर समन की तामील हो चुकी है और आरोपी या उसका वकील अदालत में पेश हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों का इन अदालतों में भेजने के लिए कहा है.


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विशेष न्यायालय फिर भी लाखों लंबित मुकदमे
गौरतलब है कि चेक अनादरण के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए कुछ सालों पूर्व विशेष न्यायालय गठित किए गए थे. इसके बावजूद लंबित मुकदमों की संख्या लाखों में होने के चलते इन विशेष अदालतों में भी मुकदमें तय होने में कई साल लग रहे हैं.


Reporter- Mahesh Pareek


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