जयपुर: राजधानी में दीपावली का मतलब ही आतिशबाजी है और गुलाबी नगर जयपुर की आतिशबाजी राजा-महाराजों के समय से ही विख्यात रही है. जयपुर के शोरगर आतिशबाजी के लिए दूर-दूर तक बुलाए जाते रहे हैं, लेकिन आज की चमक-दमक में जयपुर की परम्परागत आतिशबाजी की कला दम तोड़ रही है, वहीं शोरगर कहीं गुम हो गए हैं.


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रजवाड़ों के समय से प्रसिद्ध रही जयपुर की परम्परागत आतिशबाजी कला दम तोड़ रही है, वहीं शोरगर आज के शोरगुल में कहीं खो गए हैं. राजा महाराजाओं के समय राजतिलक, सिल्वर जुबली, जन्मोत्सव सहित अन्य उत्सवों के समय आतिशबाजी कर खुशी व्यक्त की जाती थी. रजवाड़े गए तो तो कम्पनी अर्थात अंग्रेजों का राज आया और उन्होंने भी समय समय पर उत्सवों के दौरान आतिशबाजी की परम्परा को बरकरार रखा.


तीन सौ साल पहले शोरगरों को बसाया गया 


इधर देश की आजादी के बाद शाही शादी, ब्याह जैसे कार्यक्रमों में आम लोगों के लिए आतिशबाजी की जाने लगी. इससे आतिशबाजी शाही जगहों से बाहर आकर आम हो गई.आतिशबाजी का आलम यह है कि जयपुर में शोरगरों का मोहल्ला तक हुआ करता था. तीन सौ साल पहले शोरगरों को बसाया गया, लेकिन धीरे धीरे लोगों की बेरूखी के कारण आतिशबाज दूसरे काम धंधों से जुड़ गए और दूसरी जगह जाकर बस गए.


आजादी के कुछ सालों बाद सरकारी महकमों की ओर से सार्वजनिक रूप से आतिशबाजी करवाई जाने लगी. दशहरे में रावण दहन के समय या अन्य उत्सवों पर कई संस्थाओं की ओर से भी सार्वजनिक आतिशबाजी होने लगी तो लोगों की रूचि इस तरफ बढ़ी. जयपुरी आतिशबाजी की खास विशेषता है कि एक जगह आतिशबाजी होने पर उसके नजारे करीब एक किलोमीटर दूर तक दिखाई देते हैं. ऐसे में एक बार में लाखों लोग एक साथ आतिशबाजी देख पाते थे.


जयपुर स्थापना दिवस या कई मामलों में नगर निगम की ओर से एसएमएस स्टेडियम, चौगान स्टेडियम आदि जगहों पर आतिशबाजी करवाई गई. पुरानी आतिशबाजी की खास विशेषता यह भी है कि वो ज्यादा समय तक चलती है. आतिशबाजी में ज्यादा चटख रंग बिखरते हैं जिनकी खूबसूरती अलग ही दिखाई देती थी. आतिशबाजी में साउंड के बजाय आसमानी नजारे ज्यादा दिखाई पड़ते थे. आतिशी नजारों में सितारे, झरने अशर्फियां, सूरजमुखी, कमल के फूलों के साथ ही किसी के नाम ही अशर्पियां सूरजमुखी कमल के फूल खिलते हैं, वहीं किसी का नाम भी आकाश में दिखाई देना है तो वो भी नजर आता है. इनमें बड़ी संख्या में जनता आतिशबाजी देखने उमड़ी. वहीं दूसरी ओर शिवकाशी से आने वाली आतिशबाजी बच्चों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है जो ज्यादा दूर से नहीं दिखाई देती. आज भी शादी ब्याह व कार्यक्रमों में आतिशबाजी होती है तो अलग ही छटा दिखाई देती है.


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सरकार को ध्यान देने की जरूरत


जहीर खान ने कहा कि परम्परागत आतिशबाजी में चमक दमक नहीं होती है, वहीं शिवकाशी की आतिशबाजी में पैकेजिंग में भी चमक दमक होती है, जो ग्राहकों को आकर्षित करती है. इसके अलावा वहां बडे स्तर पर आतिशबाजी का निर्माण होता है जिससे लागत भी कम आती है. वहीं तमिलनाडू सरकार ने शोरगरों को जमीन, लोन सहित कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करा रखी है. दूसरी ओर राजस्थान सरकार ने इस प्रकार की कोई सुविधा शाेरगरों को नहीं दी गई है.


यदि सरकार शोरगरों को तमाम जरूरी सुविधाएं उपब्ध कराए तो सरकार को टैक्स तो मिलेगा ही, जनता को अच्छी क्वालिटी और सस्ती आतिशबाजी मिलेगी, वहीं शोरगर एक बार फि उठ खड़े होंगे. जयपुर की आतिशबाजी आज भी पसंद की जाती है. यही कारण है कि तमिलनाडू, केरल, गोवा सहित कई शहरों में शादी विवाह व अन्य आयोजनों में आतिशबाजी करने जयपुर से शोरगरों को बुलाया जाता है.