World News: 10 साल तक रेलवे स्टेशन पर करता रहा मालिक का इंतजार, ये है दुनिया का सबसे वफादार कुत्ता
hachiko, hachiko dog, World News: हचिको के बारे में कहा जाता है कि उसने रेलवे स्टेशन पर 10 साल तक अपने मालिक का इंतजार किया. अपनी आखिरी सांस तक. hachiko के ऊपर फिल्में बनाई गईं, किताबें लिखी गईं और कविताएं भी रची गईं. उसे दुनिया का सबसे वफादार कुत्ता माना जाता है.
hachiko, hachiko dog, World News: कुत्तों को उनकी वफादारी के लिए एक बड़ी पहचान हासिल हो चुकी है. ऐसा ही असाधारण गुण 'हचिको' में भी था. इस अकिता कुत्ते (Akita dog) की कहानी हमें मनुष्यों और कुत्तों के बीच एक अद्भुत बंधन की याद दिलाता है. तो चलिए जानते हैं Hachiko को कहानी, और ये भी कि आखिर एक कत्ते को दुनिया 100 साल बाद भी क्यों याद कर रही है.
हचिकोएक क्रीम-सफेद अकिता कुत्ता था, 10 नवंबर 1923 को जापान के अकिता प्रीफेक्चर के ओडेट गांव में पैदा हुआ था, एक साल बाद उसे टोक्यो इम्पीरियल यूनिवर्सिटी (Tokyo Imperial University) के कृषि विभाग में प्रोफ़ेसर हिडेसाबुरो उएनो ने अपनाया. वह उसे टोक्यो में शिबुया ले गए.
शिबुया स्टेशन पर प्रोफ़ेसर उएनो का करता था वेलकम
प्रोफ़ेसर उएनो रोज काम पर जाते थे. और हचिको, प्रोफेसर का रोज शिबुया रेलवरे स्टेशन पर इंतजार करता था. ये सिलसिला 21 मई 1925 तक जारी रहा. बताया जाता है कि एक दिन प्रोफेसर उएनो लेक्चर दे रहे थे, तभी उनकी ब्रेन हेनरेज की वजह से जान चली गई, और वो कभी वापस नहीं लौटे. लेकिन 'हचिको' उनका बेताबी से इंतजार करता रहा. बताया जाता है कि वह रोज रोलवे स्टेशन जाता और घंटों उनका इतजार करता.
Hachiko के जीवनी लेखक प्रोफेसर मयूमी इटोह ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब लोग शोक सभा में जा रहे थे हाचिको को डॉ. उएनो की गंध आई और वह लिविंग रूम के अंदर चला गया. वह ताबूत के नीचे रेंगा और हिलने स्टेचू खा खड़ा रहा.
हचिको ने शिबुया स्टेशन के बाहर किया इंतजार
बताया जाता है कि हचिको ने शिबुया के बाहर कुछ महीनों कई परिवारों के साथ बिताए, लेकिन 1925 में उसने उएनो के माली किकुसाबुरो कोबायाशी के साथ रहना शुरू किया. इसके बाद उसने फिर से रेलवे स्टेशन के बाहर प्रोफेसर का इंतजार शुरू कर दिया, आगे के 9 साल, 9 महीने और 15 दिनों तक. हचिको ने हर दिन उएनो की प्रतीक्षा की. ट्रेन का भोपू बजते ही वो अलर्ट हो जाता, शाम तक इंतजार करता और लौट जाता.
टिकट गेट पर करता था इंतजार
शाम को, वह टिकट गेट पर खड़ा हो जाता, जैसे कि किसी को ढूंढ़ रहा हो, हर यात्री को देखता था. शुरुआत में लोग न को रास्ते का आवारा कुत्ता और गली का रोड़ा मानते थे, लेकिन 1932 में जापानी दैनिक Tokyo Asahi Shimbun ने हचिको के बारे में छपने के बाद उसे प्रसिद्धि मिलने लगी.
Hachiko पर बनी मूवी, लिखी गईं कहानियां
लोग जल्द ही उसके लिए खाना और ट्रीट लाने लगे ताकि वह लंबी प्रतीक्षा के दौरान कमजोर ना पड़े. स्टेशन को भी हर दिन हचिको के लिए चंदा मिलने लगा और दूर-दूर से आने वाले दर्शक उसे देखने के लिए आए. जानकारों का मानना है कि इस कुत्ते के 100 साल के इतिहास में इसके बारे में किताबों, फिल्में और कई कहानियां लिखी गईं. 1934 में, शिबुया स्टेशन पर तेरु आंदो द्वारा हचिको की पीतल की मूर्ति बनाई गई. जो आज भी मौजूद है.
हचिको 8 मार्च 1935 को 11 वर्ष की आयु में गुजर गया और उनकी मृत्यु की खबर कई प्रमुख अखबारों ने छापी. अगले दिन हजारों लोगों ने उसकी अंतिम यात्रा पर आए. बौद्ध महासाधु ने उसे प्रार्थनाएं समर्पित की. बताया जाता है कि हर साल 8 अप्रैल को शिबुया स्टेशन के बाहर हचिको के लिए एक स्मारक सेवा आयोजित की जाती है.