मुगलों का काला सच, बाबर एक समलैंगिक था
मुगलों (Mughals)का शंहशाह और मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर एक समलैंगिक(Gay)था. अपनी इस विशेषता के बारे में बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा (Baabaranaama) में लिखा है. बाबरनामा में बताया गया है कि बाबर युवा और किशोर लड़कों (Young And Teenage Boys)पर मुग्ध था. बाबर के हरम में सैकड़ों पुरुष भी थे. युवा लड़कों को औरतों के कपड़े पहनाकर हरम (Mughal Haram) में नचाया जाता था.
Mughals : बाबर की आत्मकथा बाबरनामा का कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है. जिसमें बताया गया है कि बाबर ने कैसे मुगल साम्राज्य की स्थापना की साथ ही ये भी कि बाबर युवा और किशोर लड़कों पर मुग्ध था.
मुगलों का शंहशाह और मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर एक समलैंगिग था. अपनी इस विशेषता के बारे में बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में लिखा है. बाबरनामा में बताया गया है कि बाबर युवा और किशोर लड़कों पर मुग्ध था. बाबर के हरम में सैकड़ों पुरुष भी थे. युवा लड़कों को औरतों के कपड़े पहनाकर हरम में नचाया जाता था.
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बाबर ने माना है कि वो बाबरी नाम के एक किशोर पर मुग्ध था. बाबर लिखता है कि -रहने की शक्ति नहीं थी, ना भागने की शक्ति थी, मैंने तुम्हे जो बनाया, मेरे दिल का चोर हो गया.
द हिंदू में जिया उल सलाम के लेख में दिलीप हीरो की किताब बाबरनामा का हवाला देते हुए मुगल शासक बाबर के बारे में लिखा गया है कि कि वो पढ़ सकता था, वो लिख सकता था, वो प्यार कर सकता था, वो वासना कर सकता था और वो लड़ भी सकता था.
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बाबर, बाबरी नाम के युवा पर संमोहित था. वो बात अलग है कि बाबर की कई बीवियां और बच्चे भी थे. कई इतिहासकारों का भी मानना है कि बाबर समलैंगिक था और शायद इसी वजह से उसने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था.
बाबर ने बाबरी को लेकर सबकुछ बाबरनामा में खुलेआम लिखा है. ऐसा करने में कोई शर्म, झिझक या डर उसे लगा हो ऐसा नहीं लगता. इससे ऐसा लगता है कि मुगलों में इन भावनाओं से जुड़ी कोई भी चेतना अप्राकृतिक या प्रतिबंधित नहीं थी.
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ये इस बात से साबित होता है कि एक बार दाराशिकोह ने एक यहूदी को जिसका नाम सरमद था को मृत्युदंड की सजा सुनाई. सरमद पर बहुत से आरोप थे. सरमद पर मुहम्मद को नकारने और आधा कलमा पढ़ने का भी आरोप लगा था.
ये ही नहीं सरमद, थट्टा नाम के एक हिंदू युवक के प्रेम में दीवाना था. कहा जाता है कि इस लड़के से अपने दीवानगी की हद तक प्रेम के चलते सरमद ने सबकुछ छोड़ दिया और बिना कपड़ों के घूम घूम कर फकीर बन गया था. लेकिन जब उसे मृत्युदंड दिया गया तो समलैंगिगता आरोप की श्रेणी में ही नहीं था.
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सरमद की इस कहानी को इस बात के सबूत के तौर पर देखा जा सकता कि मुगलिया काल के दौरान समलैंगिगता को लेकर आज के जमाने से कहीं ज्यादा उदार दृष्टिकोण रहा होगा.
(आभार- अंग्रेजी के वेब पोर्टल डेली ओ, लेखक लुबना इरफ़ान)