Chaitra Navratri 2023: 22 मार्च 2023 बुधवार से चैत्र नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो रहा है. नवरात्रि 9 दिनों का पावन पर्व है, जिसमें मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना होती है. चैत्र नवरात्रि का समापन राम नवमी को होता है. आइये जानते हैं चैत्र नवरात्रि मनाने का क्या है कारण.


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इस साल चैत्र नवरात्रि पर काफी शुभ योग बन रहा है. वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चैत्र नवरात्रि का दिन काफी खास है. क्योंकि इस दिन एक ही राशि में पांच-पांच ग्रहों की युति हो रही है, जिससे कई महायोग भी बन रहे हैं. 


चैत्र नवरात्रि मनाने के पीछे की मान्यता (Reason for celebrating Chaitra Navratri 2023) 


रम्भासुर का पुत्र था महिषासुर, जो अत्यंत शक्तिशाली था. उसने कठिन तप किया था. ब्रह्माजी ने प्रकट होकर कहा- 'वत्स! एक मृत्यु को छोड़कर, सबकुछ मांगों. महिषासुर ने बहुत सोचा और फिर कहा- 'ठीक है प्रभो. देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो. किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें.' ब्रह्माजी 'एवमस्तु' कहकर अपने लोक चले गए. वर प्राप्त करने के बाद उसने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा कर त्रिलोकाधिपति बन गया. सभी देवता उससे परेशान हो गए.


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तब सभी देवताओं ने आदिशक्त जगदंबा (अंबे) का आह्वान किया और तब देवताओं की प्रार्थना सुनकर मातारानी ने चैत्र नवरात्रि के दिन अपने अंश से 9 रूपों को प्रकट किया. इन 9 रूपों को देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र देकर महिषासुर को वध करने का निवेदन किया. शस्त्र धारण करके माता शक्ति संपन्न हो गई. कहते हैं कि नौ रूपों को प्रकट करने का क्रम चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नवमी तक चला. इसलिए इन 9 दिनों को चैत्र नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है.


चैत्र नवरात्र का महत्व (Importance of Chaitra Navratri 2023)


हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था और मां दुर्गा के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू वर्ष शुरू होता है. इसके अलावा कहा जाता है भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्‍म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था. इसलिए धार्मिक दृष्टि से भी चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है.


चैत्र नवरात्रि मनाने के पीछे एक और पुरानी कहानी है. जिसके अनुसार दशानन रावण की ताकत के बारे में सभी देवी-देवताओं को पता था. इसलिए सीता को लंका से वापस लाने के लिए जब श्रीराम रावण से युद्ध करने जा रहे थे, तो उन्हें देवताओं ने मां शक्ति की उपासना और आराधना कर उनसे विजय का आर्शीवाद लेने की सलाह दी. 


भगवान राम ने मां शक्ति की विधिवत पूजा प्रारंभ कर दी. मां को फूल अर्पित करने के लिए 108 नीलकमल की व्यवस्था की. इसके साथ ही मंत्रोच्चारण के साथ पूजा शुरू कर दी. जब रावण को इस बात का पता जला कि श्री राम मां चंडी की पूजा कर रहे हैं, तो उसने भी मां की पूजा शुरू कर दी.


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रावण तो बड़ा शक्तिशाली था ऐसे में किसी भी हाल में अपनी हार नहीं चाहता था, इसलिए उसने राम के 108 फूलों में से एक चुरा लिया और अपने राज्य में मां चंडी का पाठ करने लगा. राम को इस बात का पता चला और उन्होंने कम पड़ रहे एक नीलकमल की जगह अपनी एक आंख मां को समर्पित करने का प्रण लिया, लेकिन जैसे ही श्रीराम अपनी आंखें निकाल मां को समर्पित करने जा रहे थे तभी मां प्रकट हुईं और उन्होंने भगवान राम को जीत का आशीर्वाद दिया.


जब रावण चंडी पाठ कर रहा था. तभी हनुमान जी वेश बदलकर ब्राह्मण के रूप में रावण के पास पहुंचे. पूजा कर कहे रावण से गलत मंत्र का उच्चारण करवा दिया जिससे मां चंडी क्रोधित हो गईं और रावण को श्राप दे दिया. जिसके परिणामस्वरूप राम-रावण युद्ध में रावण का अंत हो गया. नवरात्रि के आखिरी दिन को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है.