Rajasthan Politics: अभी ना तो शैक्षणिक सत्र खत्म हुआ है और ना ही मौसमी बीमारियों से राहत की स्थिति है, लेकिन फिर भी प्रदेश में तबादलों पर से पाबंदी हटाने की मांग जोरों से उठ रही है.


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दरअसल पिछले दिनों ऑल इण्डिया सर्विस, स्टेट सर्विस और रूरल डेवेलपमेन्ट सर्विस में अलग-अलग स्तर पर तबादले हुए हैं. पुलिस अधिकारियों के साथ ही तहसीलदार के भी ट्रांसफर हुए, लेकिन कई विभागों के मंत्रालयिक कर्मचारी तबादलों से बैन हटने की आस लगाए बैठे हैं.



रविवार को हुई कैबिनेट की बैठक में भी यह मामला आया. इसके बाद सरकार में शीर्ष स्तर पर चिंतन चल रहा है. सवाल यह है कि क्या तबादलों की चाबी आगामी विधानसभा उपचुनाव में वोटों का ताला खोलने के लिए काम में ली जा सकेगी?



राज्य कर्मचारी के तबादलों पर अभी बन लगा हुआ है. साल 2023 के दिसम्बर में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद सरकार ने इस साल की शुरुआत में तबादलों से बैन हटाया था. कुछ विभागों में ट्रांसफर हुए भी, लेकिन उसके बाद पाबंदी लगा दी गई. इस सब में भी शिक्षा विभाग और चिकित्सा विभाग के अधिकांश कर्मचारियों को तबादलों से दूर रखा गया. देखा जाए तो प्रदेश में सबसे बड़ी वर्क फोर्स इन दोनों विभागों में ही मानी जाती है.



प्रदेश में सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. इन चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को जीत चाहिए. यही कारण है कि उपचुनाव से पहले एक बार फिर तबादलों से पाबंदी हटाने की मांग जोर पकड़ रही है. रविवार को कैबिनेट की बैठक में भी मंत्री किरोड़ी लाल मीणा समेत अन्य मंत्रियों ने इस मांग को रखा. साथ ही कर्मचारी संगठन भी तबादलों पर से पाबंदी हटाने की मांग कर रहे हैं.



कैबिनेट की मीटिंग में भी शिक्षा मंत्री और चिकित्सा मंत्री तबादलों पर चर्चा के दौरान चुप ही रहे. इन सबके बीच एक संभावना यह जताई जा रही है कि सरकार तबादलों से आंशिक पाबन्दी हटा सकती है. जिसमें शिक्षा के साथ ही चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को तबादलों से अलग रखा जा सकता है, लेकिन शिक्षा विभाग में कर्मचारियों के लिए काम करने वाले कई संगठन भी ट्रांसफर से बैन हटाने की मांग कर रहे हैं.



कांग्रेस राज में ट्रांसफर लिस्ट आने पर तबादला उद्योग के आरोप लगाने वाली बीजेपी अब सरकार में है.पार्टी के नेता ट्रांसफर शुरू करने की मांग कर रहे हैं तर्क दिया जा रहा है कि उपचुनाव में भी इसका फायदा मिल सकेगा, लेकिन सवाल यह कि...


क्या केवल उपचुनाव के फायदे के लिए ही तबादलों से बैन हटाना न्याय संगत होगा? 


क्या बिना ट्रांसफर पॉलिसी तबादले करना ठीक रहेगा?


क्या वाकई तबादले खोलने से उपचुनाव के नतीजों को पार्टी के पक्ष में किया जा सकेगा?


क्या गारन्टी की कांग्रेस सरकार में तबादला उद्योग था तो अब ऐसा नहीं होगा?