अशोक गहलोत पर जब पहली बार सोनिया गांधी ने जताया था भरोसा, सौंपी थी ये बड़ी जिम्मेदारी
Ashok Gehlot News : राजस्थान की सियासत में जब 1998 में अशोक गहलोत ने अपने सियासी विरोधियों को पछाड़ कर पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए थे. उस वक्त सोनिया गांधी ने दिग्गजों के नाम के बीच से अशोक गहलोत का नाम आगे किया था.
Ashok Gehlot News : मरुधरा के धोरों के बीच सियासी जादूगरी से सूबे की सियासत पर तीन दशक से धाक रखने वोले अशोक गहलोत ने वक्त-बे-वक्त अपने सियासी विरोधियों को ठिकाने लगाया है. फिर चाहिए बात 2018 या 2008 की हो या फिर 1998 की. जोधपुर के साधारण से माली परिवार में जन्मे अशोक गहलोत आज कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित है. लेकिन पहला चुनाव हारने वाले गहलोत के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना इतना आसान भी नहीं था.
राजस्थान में विधानसभा चुनाव
यह किस्सा है साल 1998 का, जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने थे. इससे पहले का विधानसभा चुनाव कांग्रेस बुरी तरह हार चुकी थी, सामने भैरों सिंह शेखावत जैसे दिग्गज नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज थे, तब की तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पोकरण में परमाणु बम धमाके कर दुनिया में अपना लोहा मनवा चुकी थी. कांग्रेस के सामने चुनौती विधानसभा चुनाव में पार पाने की थी.
राजस्थान में हर ओर जाट आरक्षण के आंदोलन की गूंज थी. प्याज के दाम आसमान पर चढ़ चुके थे. तब जोधपुर से सांसद और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अशोक गहलोत ने सूबे की 200 विधानसभा सीटों में से 160 सीटों पर धुआंधार रैलियां की. जाट आरक्षण के मुद्दे को भुनाते हुए समीकरण अपने पक्ष में किया और भाजपा को प्याज के आंसू रुला दिया.
हांसिल किया प्रचंड बहुमत
चुनावी नतीजे आए तो कांग्रेस ने तीन चौथाई सीट पर कब्जा कर प्रचंड बहुमत हासिल कर लिया, लेकिन जाट आरक्षण के मुद्दे पर चुनाव जीतने वाली कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी दुविधा थी कि आखिर मुख्यमंत्री किसे बनाए. दो जाट नेता परसराम मदेरणा और नटवर सिंह जैसे प्रबल दावेदारों के साथ-साथ शिव चरण माथुर, नवल किशोर शर्मा और जगन्नाथ पहाड़िया जैसे दिग्गज भी कतार में थे. परसराम मदेरणा कांग्रेस के वफादार और कद्दावर नेताओं में शुमार थे तो नटवर सिंह गांधी परिवार के बेहद नजदीकी माने जाते थे. इस दौर में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान एक बार फिर गांधी परिवार के साथ में आ चुकी थी. सोनिया गांधी के पाले में गेंद थी.
इस मसले को सुलझाने के लिए 30 नवम्बर 1998 की सुबह दिल्ली से जयपुर कांग्रेस प्रभारी माधव राव सिंधिया के अलावा गुलाब नबी आजाद, मोहसिना किदवई और बलराम जाखड़ को भेजा गया. विधायक दल की बैठक शुरू होती उससे पहले होटल खासाकोठी में विधायकों को एक-एक कर राय जानने के लिए तलब किया गया. बलराम जाखड़ को एक मिशन के तहत बाहर भेजा गया.
गहलोत के हाथ ऐसे आई कुर्सी
कमरे में एक-कर विधायक अपने राय जाहिर कर रहे थे. साथ ही उन्हें आलाकमान की इच्छा भी बताई जा रही थी. इस बाद बैठक शुरू हुई तो जबरदस्त कानाफूसी का दौर जारी था. आलाकमान की इच्छा की चर्चा थी. बलराम जाखड़ जिस मिशन के लिए बाहर गए थे वो सफल रहा. जाखड़ ने परसराम मदेरणा को मैडम की इच्छा बता कर मना लिया था. तभी बैठक में अशोक गहलोत पहुंचे तो उन्हें सभी ने घेर लिया और बधाई का तांता लग गया. कोई मिठाई खिला रहा था तो कोई शॉल ओढ़ा कर अभिनन्दन कर रहा था और अशोक गहलोत के चेहरे की चमक देखते बन रही थी. क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष अब सूबे के नए मुख्यमंत्री बन चुके थे. इसके बाद साल 2008 और फिर साल 2018 में गहलोत ने राजस्थान के मुखिया के रूप में कमान संभाली.