Jaipur News: राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व शोध छात्रसंघ अध्यक्ष डॉ० रामसिंह सामोता ने पत्रकार वार्ता का आयोजन किया. छात्र नेता ने राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति राजीव जैन पर गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ० राजीव जैन ने चयन समिति और राजभवन को अंधेरे में रख अपनी योग्यता के फर्जी कागज पेश कर कुलपति के पद पर आसीन है. डॉ. राजीव जैन 1 अप्रैल 1984 से 30 जुलाई 2011 तक माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय उदयपुर में राज्य सरकार द्वारा सृजित एवं अनुदानित व्याख्याता के पद पर कार्यरत रहकर सरकारी कोष से वेतन प्राप्त किया और राज्य सरकार द्वारा 29 जुलाई 2011 को इनका आमेलन राजकीय सेवा में व्याख्याता पद पर कर लिया गया.


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राज्य सरकार द्वारा 25 मार्च 2012 को डॉ० जैन को व्याख्याता के पद पर वरिष्ठ एवं चयन वेतन श्रृंखला का लाभ दिये जाने का आदेश जारी किया गया था. फिर डॉ. जैन ने किस आधार पर ख़ुद को 2007 से प्रोफ़ेसर मान लिया और वीसी के लिए किए गए आवेदन पत्र में भी झूठी जानकारी दी गई. जबकि 8 अगस्त 2012 को कोटा विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर पद पर नियुक्ति मिली थी. जहां से 13 दिसम्बर 2017 को वहां से सेवा निवृत हो गए. डॉ० जैन ने राजस्थान विद्यापीठ प्रशासन से मिलीभगत करके एसोसियेट प्रोफेसर पर 7 अप्रैल 1997 और 25 अगस्त 2007 को प्रोफेसर पद पर पदोन्नति आदेश जारी करवा लिए.


जबकि 2012 राजकीय महाविद्यालय डूंगरपुर ने इनके रिलीविंग ऑर्डर में इन्हें व्याख्याता माना गया है. डॉ० जैन ने राजस्थान विद्यापीठ प्रशासन द्वारा जारी किए गये आदेशों को राज्य सरकार को नहीं भेजा क्योंकि सरकार से किसी भी प्रकार की पदोन्नति आदेश नहीं प्राप्त हुए थे. डॉ० जैन जेईसीआरसी विश्वविद्यालय जयपुर से मिलीभगत करके प्रोफ़ेसर के पद पर 3 जनवरी 2018 को जॉइन करने के आदेश जारी करवाये जिसमें शर्त थी कि इन्हें साठ वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी. जबकि डॉ० जैन 13 दिसंबर 2017 को ही यह उम्र पार कर चुके थे.


राजस्थान विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जारी आवेदन पत्र में भी काट छांट करके नया ऑफलाइन फॉर्म बनाकर सबमिट किया. इस फॉर्मेट में से डेट ऑफ जॉइनिंग और वास्तविक कार्य अनुभव एवं डिक्लेरेशन बाय द कैंडिडेट के क्रमांक तीन में उल्लिखित सूचना असत्य पाये जाने पर नियुक्ति रद्द कर दी जाएगी वाली लाइन को हटा दिया गया था. कोटा विश्वविद्यालय में 2012 में प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के दौरान भी तत्कालीन आर यू के कुलपति जे पी सिंघल की अध्यक्षता में बनी कमिटी ने भी इनकी नियुक्ति में गंभीर अवैधानिकताए बताई थी.


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राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति ने तथ्य छिपाकर सर्च कमिटी को गुमराह किया और आधे अधूरे तथ्यों के साथ कुलपति बने है. इनके आवेदन पत्र और इनकी योग्यता की जांच होनी चाहिए. डॉ० जैन ने न केवल सर्च कमिटी बल्कि राजभवन को भी गुमराह किया और कुलपति का नियुक्ति पत्र जारी करवा लिया. नैतिकता के नाते इनका पद पर बने रहने का हक नहीं है इन्हें तत्काल प्रभाव से बर्खास्त किया जाये.